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सच्चा शिक्षक- कहानी

शिक्षक दिवस के अवसर पर आज हम आपके लिए सच्चा शिक्षक- कहानी लाये हैं। जो एक शिक्षिका और एक छात्र के सम्बंध पर आधारित है। यह कहानी निश्चित रूप से आपको भावुक कर देगी।


यह कहानी बताती है कि एक शिक्षक का कार्य केवल पढ़ाना ही नहीं होता बल्कि बच्चों के व्यक्तित्व का विकास भी शिक्षकों का दायित्व है।

शहर के प्राथमिक विद्यालय में एक शिक्षिका थीं। उनका नाम मिस मंजू था। वह प्रतिदिन क्लास में घुसते ही मुस्कुराकर सभी बच्चों से बोलती थीं- आई लव यू आल। जबकि वह जानती थीं कि वे झूठ बोल रही थीं।

कक्षा में एक बच्चा था। जिसे वे बिल्कुल प्यार नहीं करती थीं। उसके व्यवहार और रहन सहन ने उनके मन में उस लड़के के प्रति नफरत भर दी थी। उस लड़के नाम राजू था। राजू बेतरतीब और मैले कपड़े पहनकर आता था। उसके बाल भी बिना कंघी किये हुए होते थे।

जबकि अन्य बच्चे अच्छे से तैयार होकर स्कूल आते थे। क्लास में भी वह खोया खोया से रहता था। जब मिस मंजू उससे कुछ पूँछती तो वह चौंक जाता था और खाली खाली नजरों से उन्हें देखता रहता था।

गुस्से में मैडम उसे डाँटतीं, सारे बच्चे उसपर हंसते। लेकिन वह सिर झुकाए चुपचाप सबकुछ सुनता और सहता रहता। बुरे, लापरवाह, गन्दे बच्चे के सारे उदाहरण देने के लिए राजू को लक्ष्य किया जाता था। यह प्रतिदिन का नियम बन चुका था।

प्रथम त्रैमासिक परीक्षा के बच्चों की प्रगति रिपोर्ट बनाते समय मैडम जो भी बुरा राजू के बारे में लिख सकती थीं, उन्होंने लिख दिया। ऐसा नहीं था कि मिस मंजू स्वभावतः बुरी थीं। वे बहुत अच्छी थीं। सभी बच्चे उनसे बहुत प्यार करते थे।

बस राजू के व्यवहार से उन्हें चिढ़ हो गयी थी। जोकि धीरे-धीरे नफरत में बदल गयी। जब राजू की रिपोर्ट प्रिंसिपल मैडम के सामने पहुंची। तो उन्होने मिस मंजू को बुलाकर कहा, “मैडम, कुछ तो अच्छा लिखिए राजू के बारे में वरना उसके पिता को बहुत ठेस पहुंचेगी।”

मिस मंजू कुर्सी से खड़े होते हुए बोलीं, “कुछ अच्छा हो तभी तो लिखा जाएगा।” यह कहकर वे तुरंत वहां से बाहर निकल आईं। अगले दिन प्रिंसिपल मैडम ने राजू की पिछली कक्षाओं की प्रगति रिपोर्ट मिस मंजू की टेबल पर रखवा दीं।

जब मिस मंजू ने अपनी मेज पर राजू की पिछली रिपोर्ट देखीं तो मन ही मन में बोलीं, “पिछली कक्षाओं में भी इसने कौन सा अलग किया होगा। यही सोचते हुए उन्होंने राजू की कक्षा तीन की रिपोर्ट खोली।

रिपोर्ट देखकर मैडम चौंक पड़ीं। समवन लिखा था- “हर बार की तरह राजू इस बार भी कक्षा में प्रथम आया। वह बेहद प्रतिभावान, तेज, विनम्र और मिलनसार है। सभी शिक्षकों एवं सहपाठियों से उसका व्यवहार बहुत अच्छा है।”

आश्चर्य की अवस्था में मैडम ने कक्षा चार की रिपोर्ट खोली। उसमें लिखा था- “राजू की माँ बीमार हैं। राजू की देखभाल करने वाला घर में दूसरा कोई नहीं है। राजू की मां को लास्ट स्टेज का कैंसर है। राजू बेहद संवेदनशील है। माँ की बीमारी का असर राजू की पढ़ाई पर पड़ रहा है।”

आगे लिखा था- “राजू की मां मर चुकी हैं। राजू टूट चुका है। अब वह पहले जैसा नहीं रहा। उसका मन अब पढ़ने में नहीं लगता। वह किसी से बात भी नहीं करता। काश ! राजू इस गम से बाहर निकल पाता।”

आखिरी लाइन पढ़ते पढ़ते मैडम की आंखों से आंसू बहने लगे। उनका मन ग्लानि से भर उठा। बिना कारण जाने ही वे आज तक उससे नफरत करती रहीं। उन्होंने दृढ़ निश्चय किया कि वे राजू को इस स्थिति से निकालकर पहले जैसा बनायेंगीं।

उस दिन कक्षा में उन्होंने सबको आई लव यू आल बोला। लेकिन आज भी उन्हें लगा कि वे झूठ बोल रही हैं। कक्षा में बैठे मैले-कुचैले भावहीन राजू के बराबर वे सबको प्यार नहीं करती हैं।

आज फिर उन्होंने राजू से प्रश्न पूछा। राजू चुपचाप सिर झुकाकर मैडम की डांट और बाकी बच्चों की हंसी की प्रतीक्षा करने लगा। कुछ समय बीतने पर जब दोनों बातें नहीं हुईं तो उसने हैरानी से सिर उठाकर खाली खाली आंखों से मैडम की ओर देखा।

मैडम ने मुस्कुराकर उसे अपने पास बुलाया। सही उत्तर बताकर उन्होंने राजू से उसे दोहराने के लिए कहा। तीन-चार बार कहने के बाद राजू ने उत्तर दोहराया। जिसके बाद मैडम ने खुद भी ताली बजायी और बच्चों से भी बजवाई।

उसके बाद मैडम रोज यही करतीं। साथ ही छोटी छोटी बातों पर राजू की तारीफ करतीं। धीरे धीरे राजू में परिवर्तन दिखने लगा। अब मैडम को जवाब खुद से नहीं बताना पड़ता था। राजू स्वयं जवाब देता था। अब उसका हुलिया भी पहले से सुधर चुका था।

अब उसके कपड़े पहले से साफ सुथरे होते थे। शायद उसने अपने कपड़े खुद धोने शुरू कर दिए थे। वार्षिक परीक्षा में राजू ने कक्षा में द्वितीय स्थान प्राप्त कर लिया था। अब उसे आगे की पढ़ाई के लिए दूसरे विद्यालय जाना था।

अंतिम दिन सभी बच्चे मैडम के लिए सुंदर सुंदर गिफ्ट पैक कराकर लाये थे। मैडम की मेज पर उपहारों का ढेर लगा था। उन्हीं के बीच में पुराने से अखबार में बेतरतीबी से पैक एक पैकेट रखा था। सबको पता था कि वह राजू का गिफ्ट है।

मैडम ने ढेर में से ढूंढकर वह पैकेट निकाला। सारे बच्चे राजू की ओर देखकर हंसने लगे। राजू ने शर्म से नजरें नीची कर लीं। मैडम ने पैकेट खोला तो उसमें आधी भरी हुई इत्र के शीशी और एक साधारण सा कंगन था। राजू अपनी मां का सामान गिफ्ट के रूप में लाया था।

मैडम ने सबके सामने वहीं थोड़ा सा इत्र निकालकर लगाया और कंगन पहन लिया। यह देखकर राजू भी आश्चर्यचकित हो गया। वयः धीरे धीरे चलकर मैडम के पास पहुंचा और थोड़ी देर एकटक उन्हें देखता रहा फिर धीरे से बोला, “आज आपसे मेरी माँ जैसी खुशबू आ रही है।” यह सुनकर मैडम की आंख भर आयी।

समय बीतता गया। राजू एक एक करके कक्षाएँ अच्छे नंबरों से पास करता गया। हर साल के अंत में मैडम को राजू का एक पत्र मिलता। जिसमें वह अपनी प्रगति बताता और साथ में यह भी लिखता कि मुझे बहुत से शिक्षक मिले। लेकिन आप जैसा कोई नहीं है।

कुछ समय बाद राजू की पढ़ाई खत्म हो गयी साथ ही उसके पत्रों का सिलसिला भी खत्म हो गया। मैडम मंजू भी रिटायर हो चुकी थीं। एक दिन अचानक उन्हें राजू का एक पत्र मिला। जिसमें लिखा था कि वह मुम्बई में है और अगले हफ्ते शादी कर रहा है। जिसमें उन्हें अवश्य आना है। नीचे लिखा था- डॉ0 राजू।

साथ में हवाई जहाज का आने जाने का टिकट भी था। पत्र पढ़ते ही उन्हें सारी पुरानी बातें याद हो आईं। उन्होंने राजू के दिये हुए कंगन की ओर देखा जो वे आज भी पहने हुए थीं। उन्होंने राजू की शादी में जाने का निश्चय किया।

निर्धारित दिन पर वे वहां पहुंचने में थोड़ा लेट हो गईं। उस पार्टी में बड़े-बड़े बिजनेसमैन, नेता और अफसर थे। आज राजू देश का प्रसिद्ध हार्ट सर्जन बन चुका था। सारे मेहमान और वर-वधू सब उनका इंतजार कर रहे थे।

राजू एकटक गेट की ओर देख रहा था। जैसे ही मैडम मंजू ने प्रवेश किया वह दौड़कर उनके पास पहुंचा। उनका हाथ पकड़कर वह स्टेज पर ले गया और माइक लेकर बोला, “दोस्तों ! आप हमेशा मुझसे मेरी माँ के बारे में पूछते थे। यह मेरी माँ हैं।”

मैडम और राजू दोनों डबडबायी आंखों से एक दूसरे को देख रहे थे। मैडम की आंखों में आज माँ का वात्सल्य नजर आ रहा था। राजू मुस्कुराते हुए बोला, “आज आप बिलकुल मेरी माँ जैसी लग रही हैं।”

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