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शबरी की साधना

शबरी की साधना
शबरी भगवन राम की परम भक्त थी| वह ”शबर” जाती की एक भोली भाली लड़की थी| शबर जाती के लोग देखने में बहुत कुरूप होते हैं| लेकिन शबरी इतनी कुरूप थी की शबर जाती के लोग भी उसका तिरस्कार करते थे|
शबरी के माँ-बाप को शबरी के विअवः की बहुत चिंता होती थी| वे दिन रात बस इसी चिंता में डूबे रहते थे की आखिर शबरी के वैवाहिक जिवन का क्या होगा|
आख़िरकार शबरी के माता पिता को शबर जाती का एक विअवः योग्य लड़का मिल गया| माता-पिता के रात्री में शबरी का विवाह कर उसे रात्रि में ही विदा कर दिया| उन्हें डर था की कहीं लड़का शबरी को देखकर विवाह के लिए इंकार न कर दे|
शबरी अपने पति के साथ रात्रि में ही निकल गई| आगे-आगे शबरी का पति चल रहा था और पीछे-पीछे शबरी| चलते-चलते वे दण्डकवन में आ पहुंचे| वहां उन्हें सुबह हो गई| लड़के ने सोचा देखूं तो सही मेरी स्त्री कैसी दिखती है|
लड़के ने पीछे मुड़कर देखा तो शबरी की कुरूपता देखकर वह डर गया| उसे लगा यह तो कोई राक्षश कुल ही है जो मुझे यहीं खा जाएगी| यह सोचकर लड़का शबरी को वहीँ छोड़कर भाग गया|
अब शबरी दण्डकवन में अकेली रह गई| वह पीहर से तो आ गई थी लेकिन उसे अपने ससुराल का कोई पता न था| अब शबरी जाए तो कहाँ जाए|
दण्डकवन में रहने वाले ऋषि शबरी को अछूत मानकर उसका तिरस्कार करने लगे| उसी वन में “मतंग” नाम के एक ऋषि महात्मा रहते थे| मातंग ऋषि को शबरी को देख कर उस पर दया आ गई| उन्होंने शबरी पर कृपा कर उसे अपने आश्रम में रहने के लिए शरण दे दी|
दुसरे ऋषि-मुनियों ने जब यह सब देखा तो उन्होंने इस बात का बहुत विरोध किया की उन्होंने एक कुरूप और अछूत जाती की लड़की को अपने आश्रम में शरण दे दी| लेकिन मतंग ऋषि ने किसी की भी एक बात न सुनी|
उन्होंने प्रेम से शबरी के सर पर हाथ रखा और कहा – “बेटा! तुम घबराओ नहीं, जैसे कोई पुत्री अपने माँ बाप के पास रहती है वैसे ही तुम मेरे पास रह जाओ| शबरी अब ख़ुशी-ख़ुशी मतंग ऋषि के आश्रम में रहने लगी|
शबरी को ऋषि-मुनियों की सेवा करने में बड़ा आनंद आता था| सब ऋषि-मुनि शबरी का तिरस्कार करते थे इसलिए शबरी छिप-छिप कर उनकी सेवा किया करती थी|
रात में जब सब सो जाया करते थे तो शबरी रात में ऋषियों के स्नान के लिए पम्पा सरोवर जाने वाले रास्ते को जा कर बुहार देती थी| जहाँ कंकड़-पत्थर पड़े होते थे उन्हें हटा कर वहां बालू बिछा देती थी| ऋषियों के लिए इंधन ला कर रख देती थी|
अगर कोई शबरी को देख लेता तो वह वहां से डर के मारे भाग जाती थी| उसे डर था की कहीं मेरी छाया ऋषि-मुनियों पर पद गई तो वह अशुद्ध हो जाएँगे| बस इसी प्रकार ऋषि-मुनियों की सेवा में उसका समय बीतता गया|
आखिर एक दिन वह समय भी आ पहुंचा जो सबके लिए अनिवार्य है| मतंग ऋषि का समय छुटने का समय आ गया था| जैसे माँ-बाप के मरते समय बालक रोता है वैसे ही शबरी भी फुट-फुट कर रोने लगी थी| रोने के सिवा वह कर भी क्या सकती थी|
मतंग ऋषि ने शबरी को अपने पास बुलाया और कहा, बेटा! तुम चिंता न करो, एक दिन तुम्हारे पास भगवान् राम आएँगे| बस इतना कहकर मतंग ऋषि शरीर छोड़कर चले गए|
अब शबरी दिन रात भगवन राम की प्रतीक्षा करने लगी| रात में किसी जानवर के चलने से पत्तों की खडखडाहट भी होती तो शबरी बहार आ कर देखने लगी की कहीं भगवान् राम तो नहीं आ गए|
वह प्रतिदिन कुटिया के बाहर पुष्प बिछाती और तरह-तरह के फल लाकर रख देती थी| फलों में भी बढ़िया-बढ़िया फल राम जी के लिए चखकर रख देती थी| फिर राम जी नहीं आते तो अगले दिन फिर नए फल ले आती| राम जी को भोजन करने का उसके मन में बहुत उत्साह था|
प्रतीक्षा करते-करते एक दिन शबरी की साधना सफल हुई| मतंग ऋषि के वचन सत्य हुए| भगवान् राम शबरी की कुटिया में पधारे|
कई बड़े-बड़े ऋषि मुनियों ने भगवान् राम से उनके आश्रम में चलने के लिए प्रार्थना की लेकिन भगवान् राम केवल शबरी की कुटिया में आए| जैसे शबरी को भगवान् राम से मिलने की तीव्र इच्छा थी ठीक वैसे ही भगवान् राम भी को भी शबरी से मिलने की उत्कंठा थी|
भगवान् राम शबरी की कुटिया में पहुंचे! शबरी के आनंद की सीमा नहीं रही| वह भगवान् के चरणों में लिपट गई| जल लाकर उनसे भगवान् के चरण धोए| फिर आसन बिछाकर भगवन को बैठाया| फल लाकर शबरी ने भगवान् के सामने रखे और प्रेम पूर्वक उनको खिलाने लगी|

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