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संतुष्टि

कालोनी में गलियों में बनी सड़क पर खूबसूरत टाइल्स बिछाने का काम प्रगति पर था आज बिरजू की गली का नम्बर आ गया था बाहर मजदूरों की आवाजाही से ही बिरजू समझ चुका था वह नहाकर फैक्ट्री जाने के लिए तैयार हो चुका था बाहर जाने से पहले उसने अपनी पत्नी सुधा से कहा….सुधा ….ये बाहर जो मजदूर टाइल्स बिछाने का काम कर रहे हैं उनको दिन में ठंडा पानी दे देना… बाहर गर्मी के साथ साथ धूप भी तेज हो रही है ऐसे में ठंडा पानी बहुत राहत देता है

हां यही काम रह गया मुझे…..पता नहीं कैसे रसोईघर में खड़ी होती हूं इस गर्मी में पसीने से भीग जाती हूं और तुम्हें…..शुक्र हैं पिछले साल एसी लगवा लिया था वरना इस गर्मी में तो भगवान ही मालिक…. मुंह बनाकर वो रसोईघर में समान समेटते हुए बुदबुदाई

बिरजू को लंचबॉक्स देने लगी तो बिरजू ने फिर से कहा…. यार फ्रिज है और हम ठंडा पानी पीने वाले केवल तीन लोग मैं तो अब शाम तक ही लौटूंगा और आराध्या दोपहर तक स्कूल से तो इन को ठंडा पानी दे देना इतनी गर्मी में जरा सी ठंडक भी सुकून दे देती है सुधा कुछ बोली नहीं बस झूठी हंसी हंसते हुए बोली आपको देर हो रही है बिरजू के फैक्ट्री जाने के चंद मिनटों बाद ही वह अपने कमरे को बंद करके एसी चलाकर लेट गई

आह…. कितना आनन्द आता है इस एसी में …. अभी बमुश्किल दस मिनट ही बीते थे कि लाइट चली गई और एसी बंद हो गया..उफ्फ…. कितना मजा आ रहा था

सुधा ने इंवर्टर में पंखा चलाया मगर एसी जैसी ठंडक कहा मिलती दस मिनट बाद ही उसने गुस्से में बिजली दफ्तर फोन किया वहां से पता चला ब्रेकडाउन काम कर रही लगभग तीन से चार घंटे लाइट बंद रहेगी

वह बड़बड़ाते हुए दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल आई तो उसकी नजर गली में काम कर रहे मजदूर पुरुष और महिलाओं पर गयी …. लगभग सभी पसीने से लथपथ हो रहें थे मगर उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी हंसते मुस्कुराते हुए वह टाइल्स बिछाने में लगे हुए थे

भगवान ने इन्हें क्या शक्ति दी है मेरे जैसे ऐसे में बाहर निकल जाएं तो मुझ जैसे को लू लग जाती है और फिर ये…. हां ये लोग तो इन सबके आदी होते है यही सोचकर सुधा वापस अंदर आ गई और फिर से बिस्तर पर लेट गई मगर आज उसे एसी के बिना बहुत गर्मी महसूस हो रही थी वरना एसी चलाकर वह कब सो जाती थी उसे पता ही नहीं लगता था कभी कभी तो आराध्या स्कूल वैन से जब वापस आकर बेल बजाती तो उसकी नींद खुला करती

घड़ी में लगभग साढ़े बारह बज चुके थे पंखे में भी उसे पसीना आ रहा था तो वो फिर उठ कर बाहर गई दरवाजे पर खड़ी होने पर ही उसे अपना चेहरा लू से जलता हुआ महसूस हो रहा था तभी उसे कुछ मजदूर एक गोल घेरा बनाकर अपना अपना खाने का डिब्बा खोलकर दिखाई दिए जो कागज में लिपटी हुई सूखी रोटी प्याज और नमक मिर्च निकालकर खाने के रख रहे थे …. पीने को वहीं पास के नल से गर्म पानी बोतल में भरकर रखें हुए थे

सुधा को एकदम झटका सा लगा वो और उसकी बेटी आराध्या कितने नखरें करतीं हैं जब उनकी मनपसंद सब्जी ना बनी हो कयीबार तो थोड़ा बेस्वाद होने पर या एक दिन पहले की बनी होने पर वह सब्जी बाहर तक रख देती है और ये केवल प्याज मिर्च नमक के साथ उन्हें ठंडा पानी ना मिले तो उन्हें ठंडक नहीं मिलती और यहां ये जैसे तैसे गर्म सादा पानी पीकर खुश हैं….

वह बाहर निकल कर आई और बोली …रुको भैया मैं आप लोगों के लिए सब्जी लाती हूं कहकर फ्रिज में सुबह बनाकर रखी सब्जी लाकर उन्हें दे दी और फिर अचानक उसे अपने पति बिरजू की कहीं हुई सुबह वाली बात याद आई…. सुधा ये जो मजदूर बाहर टाइल्स बिछाने का काम कर रहे हैं इन्हें फ्रिज का ठंडा पानी दे देना ऐसी गर्मी में ठंडा पानी बहुत राहत देता है वह तुरंत अंदर गयी और फ्रिज में लगी ठंडे पानी की दो बड़ी बोतलें उन मजदूरों को लाकर देते हुए बोली…वो नहीं ठंडा पानी पियो

ठंडा पानी देखकर मजदूरों के चेहरे खिल गए अपना अपना खाना खाने के बाद वह जब ठंडा पानी पी रहे थे तो उनके चेहरे पर बड़ी संतुष्टि सी झलक रही थी

तभी लाइट आने का हूटर बजा ….और सुधा अंदर कमरे में आ गई लेकिन अंदर आकर उसने एसी चालू नहीं किया बल्कि पंखा ही चलाया और स्वयं भी फ्रिज में से एक गिलास पानी निकालकर पिया पानी पीकर उसे ठंडक तो रोज महसूस होती थी मगर जो राहत दे दे वो संतुष्टि आज महसूस हो रही थी

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