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तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम:

सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे!
तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम: !

हे सत् चित्त आनंद! हे संसार की उत्पत्ति के कारण! हे दैहिक, दैविक और भौतिक तीनो तापों का विनाश करने वाले महाप्रभु! हे श्रीकृष्ण! आपको कोटि कोटि नमन.

सच्चिदानंद स्वरूप भगवान् श्री कृष्ण को हम नमस्कार करते हैं , जो इस जगत की उत्पत्ति , स्थिति और विनाश के हेतु तथा आध्यात्मिक , आधिदैविक और आधिभौतिक – तीनों प्रकार के तापों का नाश करनें वाले हैं!

हे लीलाधर! हे मुरलीधर! संसार आपकी लीलामात्र का प्रतिबिंब है |

हे योगेश्वर! आप अनन्त ऐश्वर्य, अनन्त बल, अनन्त यश, अनन्त श्री के स्वामी हैं लेकिन इसके साथ साथ आप अनंत ज्ञान और अनंत वैराग्य के भी दाता हैं |

हे योगिराज कृष्ण! आपके महान गीता ज्ञान का आलोक आज तक हमारा पथप्रदर्शक है लेकिन हम मर्त्य प्राणी आपके इस अपार सामर्थ्य को भूलकर उस माया में डूबे हुए हैं जो हमें आपके वास्तविक स्वरुप का भान नहीं होने देती है |

हे अनंत कोटि ब्रह्मांड के स्वामी! हम भक्तजन आपके योद्धा कृष्ण, नीतीज्ञ केशव, योगिराज माधव स्वरुप की शपथ लेते हैं, कि हम सदैव आपके चरणकमलों का अनुगमन करते हुए धर्म के मार्ग पर चलेंगे |

श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे..हे नाथ नारायण वासुदेवाय…पितु मात स्वामी सखा हमारे..हे नाथ नारायण वासुदेवाय

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