१. साँस और मन जुड़े हुए हैं , साँस और विकार ज़्यादा गहराई से जुड़े हे
२. मन में जो कुछ उत्पन्न होता है शरीर पर प्रकट होता है यानी mind ( मन) matter ( शरीर ) में बदल जाता है
सारा खेल शरीर और चित का ही हे मनुष्य की सारी आसक्तियाँ इनसे ही हे
३. शरीर ( पूरा भौतिक जगत) अष्टकलपो से बना हे जिस में सदा आठ चीजें जुड़ी होती हे
वो एक क्षण में खरबो बार उत्पन नष्ट होते रहते हे जिसके कारण सब रूप आकृति होने का भास होता हे सभी चीजें वस्तुयें शरीर केवल परमाणु से भी नन्हे अष्टकलाप से बने हे
४. राग द्रेष और मोह से किए गए कर्म ही नए नए जन्म देते हे
५. ३ मुख्य लोक हे जिसके अंतर्गत ३१ लोक होते हे
१ कामावचर भूमि जिस में शरीर चित दोनो होते हे और शरीर ठोस होता हे
२ रूपा वचर भूमि जिसमे शरीर वायव्य होते हे और चित होता हे
३ अरुपावचर भूमि जिस में शरीर नहि होता केवल चित होता हे
३१ लोकों तक जीवन मरण का चक्र होता हे कोई इस के पार जाए उसे लोकोतेर अवस्था कहते हे
५. आठ प्रकार की लौकिक ध्यान समाधियाँ और उसका पूरा ब्योरा किस समाधि में क्या घटता हे कोनसी समाधि पाने वाले का जन्म कहाँ होता हे क्योंकि ये आठ समाधि पाने से भी मुक्ति नहि होती हे
५ १२१ प्रकार के चित होते हे और ५२ प्रकार की वृतिया होती हे
८ प्रकार के लोभ २ प्रकार के द्रेष और २ प्रकार के मोह मूल चित होते हे
६ कार्य कारण का १२ कड़ी वाला ज्ञान क्या होने से क्या होता हे
अविद्या के कारण कर्म के संस्कार बनते हे कर्म के संस्कार से लेके दुःख पेदा होने तक १२ कड़ी होती हे उसका पूरा ज्ञान
७ कौनसे कर्म अधिक करने से कहा जन्म होता हे क्या क्या फल भुगतने पड़ते हे उसका ज्ञान
८ साढ़े तीन हाथ की काया में संसार चक्र केसे चलता हे और संसार चक्र को काट ने वाला धर्म चक्र केसे काम करता हे
९ शील समाधि और प्रज्ञा वाले आठ अंगो वाला अष्टांगिक मार्ग का पूरा ज्ञान
१०. चित को एकाग्र करने के लिए आलम्बन केसा होना चाहिए केसा नहि होना चाहिए
११. चोरी नहि करना हिंसा नहि करना नसा पता नहि करना सम्पूर्ण मौन ना लिखना ना पढ़ना ना इसारे में बाते ना किसी की आँख में देखना ना सात फ़िट देखना ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए जब कोई विपस्सना करता हे महीनो तक तब ही कोई साधक गहराई में पड़े विकारों को निकाल सकता हे वरना सब ऊपरी ऊपरी ध्यान होगा
१२. तृष्णा विज्ञान मुखत्वे ३ प्रकार का तृष्णा होती हे जो भव बंधन में जकड़े रखती हे उसके नाश का पूरा विज्ञान
१३. कितने प्रकार के मुक्त पुरुष होते हे क्या भेद होता हे उसकी मुक्ति में और भी बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त हुआ था बुद्ध को ५०००० से ज़्यादा पृष्टो की बुद्ध वाणी हे जिसको अड़ोस पड़ोस के ४ से ५ देश के महान विपस्सना आचार्यों और सैधांतिक पक्ष का अभ्यास करने वालों ने २५०० साल से सम्भाल कर रखा | कृतज्ञता बनती हे एसे लोगों के प्रति जिस के बिना बुद्ध की शुद्ध वाणी और विपस्सना ना मिल पाती
सबका मंगल हो सब की मुक्ति हो |