जंगल के एक बड़े से पेड़ की खोल में बहुत सी छोटी-छोटी चिड़िया रहती थी। उसी पेड़ की जड़ में एक साँप भी रहता था। वह चिड़ियों के छोटे-छोटे बच्चों को खा जाता था।
एक बार चिड़िया साँप द्वार बार-बार बच्चों के खाये जाने पर बहुत दुःखी और विरक्त सी होकर नदी के किनारे आ बैठी। उसकी आँखों में आँसू भरे हुए थे | उसे इस प्रकार दुखी देखकर नदी किनारे रहते मेंढक ने पूछा, “क्या बात है, आज रो क्यों रही हो?”
चिड़िया ने और जोर से रट हुए कहा, “बात यह है कि मेरे बच्चों को साँप बार-बार खा जाता है। कुछ उपाय नहीं सूझता, किस प्रकार साँप का नाश किया जाय। यदि आपके पास कोई उपाय है तो कृपया मुझे बताएं।”
मेंढक ने चिड़िया का एक अच्छे दोस्त ने नाते उसे एक अच्छी योजना दी और कहा, “एक काम करो, मांस के कुछ टुकड़े लेकर नेवले के बिल के सामने डाल दो। इसके बाद बहुत से टुकड़े उस बिल से शुरु करके साँप के बिल तक बखेर दो। नेवला उन टुकड़ों को खाता-खाता साँप के बिल तक आ जायगा और वहाँ साँप को भी देखकर उसे मार डालेगा।”
चिड़िया ने ऐसा ही किया। नेवले ने साँप को तो खा लिया, किन्तु साँप के बाद उस वृक्ष पर रहने वाले चिड़ियों को भी खा डाला। चिड़िया ने उपाय तो सोचा, किन्तु उसके अन्य दुष्परिणाम नहीं सोचे। अपनी मूर्खता का फल उसे मिल गया।