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खेल तमाशा

बहुत समय पहले की बात है किसी नगरी में एक राजा रहता था। वह बहुत सख्त अनुशासन और न्याय प्रिय था। चारों तरफ सुख शांति थी। पर वह खेल तमाशे के खिलाफ था। उसका मानना था कि ये सब बेकार की कलाकारी हैं। तमाशकार बेवजह लोगों को बहलाकर उनका अन धन ले जाते हैं। राजा के आदेशानुसार कोई किसी को पैसे नहीं देगा तमाशकार को। अगर किसी ने दिया तो उसको सजा मिलेगी।

राजा के फैसले का सब पालन करते, पर मन ही मन क्रोध भी था राजा के प्रति। दबी जबान से सब भला बुरा कहते राजा को। पर विवश थे। लेकिन प्रजा में सुकून भी था कि राजा हमारा ख्याल रखता है क्या हुआ कि खेल तमाशा नहीं होता। एक बार पड़ोसी राज्य से एक मदारी खेल तमाशा दिखाने उस राज्य की तरफ आ रहा था। लोगों ने बताया कि वहाँ मत जाओ आपको कुछ नहीं मिलेगा। मदारी ने कहा कि जो किस्मत में है उसे कोई छीन नहीं सकता।

नगरी में आने के बाद एक चौक में डेरा जमा दिया ।डमरू, डफली बजाने लगा। नगर वासियों को पता चला तो सब काम छोड़ तमाशा देखने पहुंचे। बहुत भीड जमा हो गयी। नगर साधु, राजकुमार, राजकुमारी भी पहुंच गये। राजा को खबर लगी । राजा ने आदेश दिया कि तमाशा देखो लेकिन कोई भी उसको उपहार नहीं देगा।

तमाशा शुरू हो चुका था। हर तरह के करतब होने लगे। लोग तालियाँ बजा रहे थे। चारो तरफ खुशी झलक रही थी प्रजा के चेहरे पर। लेकिन जब खेल का आखरी पड़ाव शुरू हुआ तो खेल करते करते एक टोकरी लेकर जनता के आगे घूमने लगा कि अब कुछ दान टोकरी में डाल दो। किसी ने कुछ नहीं दिया। जनता के साथ साथ मदारी के चेहरे पर मायूसी भरी सिकन छाने लगी।

अब मदारी ने अपना खेल थोड़ा सा सुस्त कर दिया और गाने लगा

“घणी जा ली थोड़ी रह गयी या भी बीती जा
पाखर कहै पाखरी कदे तूं ताल चूक ना जा “

इसका मतलब था कि ज्यादा समय बीत गया है बहुत कम बाकी रह गया है। सबर रखें। भगवान सब ठीक ही करेगा।

खेल खत्म हो गया, पर लोग डटे रहे ।सब सोच की मुद्रा में खड़े थे। तभी पता नहीं क्या सोचा नगर साधु ने, खुश हो कर अपना कंबल दान में दे दिया, कुछ देर सोचने के बाद राजकुमार ने गले से हार निकाल के दे दिया। राजकुमारी ने अंगुठी दे दी। जब राज घराना दान दे रहा था तो जनता क्यूं पीछे रहती। फिर तो खुश हो कर जनता ने दान उपहारों का सैलाब ला दिया। बहुत सालों बाद तमाशा देखने को मिला था। मदारी सब धन ले कर रवाना हुआ।

राजा के गुप्तचर राजा के सामने पेश हुये और बोले, राजन अनर्थ हो गया। आपके आदेश का पालन नहीं हुआ। मदारी को अन धन सब कुछ दिया गया। राजा ये सुनकर बहुत क्रोधित हुआ । प्रजा को दंड देने के बारे में सोचने लगा। कुछ देर चुप रहकर राजा ने गुप्तचरों से कहा कि ये बताओ वो पहले तीन आदमी कौन थे जिन्होंने देने की शुरुआत की। बताया गया कि नगर साधु, राजकुमार, राजकुमारी। राजा हैरान हुआ।

अगले दिन राजदरबार में तीनों को हाजिर होने का फरमान भेजा गया। अगले दिन तीनों के साथ नगर वासी भी आ गये।सबसे पहले राजा ने नगर साधु को कहा, हमने आप के सम्मान में कोई कसर नहीं छोड़ी ,फिर भी आप ने आदेश का पालन नहीं किया। आपके कारण ही दान देने की शुरुआत हुई। आपको सजा मिलेगी। अपनी सफाई में कुछ कहना चाहते हो तो बताओ।

साघु बोला, महाराज, मेरा सब कुछ खत्म होने वाला था, जिंदगी में कोई साधु संत पर विश्वास नहीं करता, कलंक लगने वाला था मुझ पर। मैनें सारी उम्र तपस्या की। पर अब जिंदगी के आखरी पड़ाव पर कुछ दिनों से मेरा आत्मविश्वास डगमगा रहा था। मैं किसी साध्वी से संसर्ग करने की सोच रहा था। पर फैसला नहीं ले पा रहा था। पर जब कल मदारी ने गाना गाया तो मेरी अंतर्रात्मा को झकझोर के रख दिया उस गाने ने। मैने सोचा जब सारी उमर बीत गई तो अब ये पाप का कलंक अपने माथे पर और साधु जमात पर नहीं लगने दूंगा। मुझे उसके गीत से शिक्षा मिली है। मैने मदारी को अपना गुरु मान लिया। और गुरु को गुरुदक्षिणा देना शास्त्रों के नियमानुसार है। अब आप जो भी सजा देंगे मुझे मंजूर है।

फिर राजकुमार को पेश किया गया, राजकुमार ने बताया कि महाराज, प्रजा आपके कई नियम कानून से परेशान थी आपको भलाबुरा कहती। ये बात मुझे अच्छी नहीं लगी, सोचा राजा को मारकर मैं राजा बन जाऊँ तो प्रजा जो चाहती है वो नियम कानून बनाऊँ जिससे वे खुश रहें। पर मदारी के गीत ने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि आप बूढ़े हो गये हो। आज नहीं तो कल आप मर ही जाओगे, राजा तो मैं फिर भी बन जाउँगा। उसके गीत ने ये महाअपराध होने से मुझे बचा लिया। उसको मैने गुरु मान लिया और दक्षिणा दे दी। मैं सजा भुगतने को तैयार हूँ।

फिर राजकुमारी को पेश किया गया। उसने बताया कि मेरी शादी की उमर निकलती जा रही है। आप को रानीमाता ने बताया तो आपने कहा मै अभी बच्ची हूँ। मै पडोसी राज्य के राजकुमार से प्रेम करती हूँ और उसके साथ भागने की फिराक में थी। कुछ रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। जब मदारी ने गीत गाया कि बहुत समय बीत चुका है थोड़ा बाकि है सबर रखो। ये बात मै समझ गई कि आज नहीं तो कल शादी हो ही जाएगी, कम से कम आपके उपर दाग तो नहीं लगेगा कि राजा की लड़की भाग गयी। तो मैने भी दान दक्षिणा दे दी।

अब राजा ने विद्वानों को बुलाया और विचार विमर्श किया। सभी ने कहा कि खेल तमाशा अकेला मनोरंजन का साधन नहीं है बल्कि शिक्षाप्रद भी होते हैं। राजा ने पुरे राज्य में खेल उत्सव कराने, मेले लगाने को मंजूरी दे दी। राजकुमारी की शादी की और राजपाठ छोड़ राजकुमार को राजा घोषित कर दिया। वास्तव में खेल तमाशा हमारे जीवन का अभिन्न अंग है।

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