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श्रीमद्भागवत महापुराण

भगवान का विराट शरीर कैसा हैं? कितना बड़ा हैं?
यहाँ तो केवल एक ब्रह्माण्ड की दृष्टि से बताया गया है। ऐसे अनेक ब्रह्माण्ड हैं।
तुलसी रामायण में मंदोदरी ने रावण से कहा – रामजी को आप एक साधारण पुरुष मत समझिये। ‘पद पाताल सीस अजधामा’ ( रामचरितमानस १.६.१५ )- पाताल उनके चरण स्थानीय है तो ब्रह्मलोक शिर स्थानीय। वह वर्णन इन्हीं श्लोकों पर आधारित है।

पातालमेतस्य हि पादमूल पठन्ति पार्ष्णिप्रपदे रसातलम्।
महातलं विश्वसृजोऽथ गुल्फौ तलातलं वै पुरुषस्य जंघे।। ( श्रीमद्भागवत महापुराण २.१.२६ )
यहाँ संक्षेप मे एक कल्पना करा देते हैं। कहते हैं- भगवान के पैर से लेकर कटि भाग तक सप्त अधो लोक हैं। कटिभाग में भूलोक है, नाभि रूप आकाश है, हृदय स्वर्गलोक है, इसी क्रम में ऊपर सिर तक सप्त उर्द्धव लोक हैं। इस प्रकार विराट पुरुष में चौदह लोक हैं। फिर दाँत है, हाथ हैं। नाड़ियाँ, रोम हैं। उसका भी वर्णन किया गया है। पाताल भगवान का पादमूल है, तलवा है। एड़ियाँ और पंजे रसातल है। महातल कहाँ है?
टखना यानी (Anklet) जहाँ पर घुंघरू बाँधते हैं, वह महातल है। घुटने के नीचे का भाग तलातल है। भगवान के घुटनों में सुतल लोक है। जाँघें अतल-वितल लोक हैं। उनका कटिभाग (पेडू) भूलोक है यानि महीतल है। नाभि आकाश है। उनकी छाती स्वर्गलोक है और ग्रीवा महर्लोक है, मुख जनलोक है, कपाल तपोलोक है। और शीर्ष ही ब्रह्मलोक है। भगवान का सिर कहाँ है? ढूँढते रहो। तो यह भगवान का विराट रूप है। इसके आगे और भी वर्णन आता है। इन्द्र आदि देवता इनकी भुजाएँ हैं। पंचतत्त्व और उनके अधिष्ठाता देवता इन्द्रिया हैं। दाँत यमराज हैं। हास्य भगवान की माया है।
भगवान की हँसी ध्यान देने योग्य है। भगवान की हँसी यानी माया दो प्रकार की होती है। एक तो स्वजनमोहिनी-जो भक्तों को मोहित करती है। और दूसरी विमुखजनमोहिनी-जो अभक्तों को मोहित करती है। भगवान के जो भक्त-जन हैं। उन्हें भी भगवान हँसकर मोहित करते करते हैं। इनता ही नहीं, भगवान हँसते हैं तो कभी मोहित भी करते हैं, और कभी मोह को दूर भी कर देते हैं।
अर्जुन को मोहित कर दिया। परीक्षित जी को मोहित कर दिया, नारदजी को मोहित कर दिया। लेकिन, इन भक्तों के मोह से दूसरे लोगों का भी कल्याण होता है, ओर उनका अपना भी कल्याण हो जाता है। इसके विपरीत भगवान जब अभक्तों की ओर देखकर हँसते हैं, तो पूछना ही क्या है? जैसे हम लोग हैं, हम सब भगवान की दूसरी माया में पड़े हुए हैं। यदि देह के प्रति आसक्ति बढ रही है, लोगों से ममता बढ़ रही है, तो समझ लेना चाहिए कि यह भगवान की दूसरी माया का प्रभाव है।
जब इनसे (देह आदि से) वैराग्य होने लगे, तब समझना चाहिए कि वह भगवान की पहली माया का प्रभाव है। कभी-कभी भक्तों को जो मोह हो जाता है वह दूसरी माया को दूर करने के लिए ही हुआ करता है। आगे कहा कि लज्जा भगवान का ऊपरी होंठ है और लोभ नीचे का होंठ है।

फिर कहते हैं ‘धर्मः स्तनोऽधर्मपथोऽस्य पृष्ठम्’ ( श्रीमद्भागवत महापुराण २.१.३२ ) – भगवान का हृदय-वक्षःस्थल धर्म है और अधर्म उनकी पीठ है। इसलिए अधर्म का आश्रय भी भगवान ही हैं। लोग में भी प्रायः सामने-सामने सब अच्छा काम होता है और बुरा काम पीठ पीछे होता है

भागवत जी का पहला श्लोक क्या है?

एतद् श्रीमद्भागवतम् पुराण कथितं श्रीकृष्ण लीलामृतम्।। अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्ण:दामोदरं वासुदेवं हरे। श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकी नायकं रामचन्द्रं भजे।। सुबह जल्दी नहाकर, साफ वस्त्र पहनकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें।

श्रीमद् भागवत का क्या अर्थ है?

श्रीमद् भागवत का क्या अर्थ है?श्रीमद्भागवत का शाब्दिक अर्थ क्या है? ज्ञान वैराग्य नहीं है, नारद जी का अवतारों में तीसरा अवतार है। … उन्होंने कहा कि भागवत का अर्थ है भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और तारण

भागवत कथा सात दिन की ही क्यों होती है?

श्रीमद्भागवत कथा का क्रम कितने दिनों का होता है? महाभारत के अनुसार, जब सम्राट परीक्षित (अर्जुन के पोते) को सांप के काटने से 7 दिनों में मरने का श्राप मिला था, तो उन्हें पश्चाताप हुआ और उन्होंने हस्तिनापुर के सिंहासन को त्यागने और भगवान की प्राप्ति के लिए जंगल में जाने का फैसला किया।

श्रीमद् भागवत कथा में कुल कितने अध्याय हैं?
भागवत में 18 हजार श्लोक, 335 अध्याय तथा 12 स्कन्ध हैं। इसके विभिन्न स्कंधों में विष्णु के लीलावतारों का वर्णन बड़ी सुकुमार भाषा में किया गया है।

भागवत पुराण में क्या लिखा है?
इस पुराण में सकाम कर्म, निष्काम कर्म, ज्ञान साधना, सिद्धि साधना, भक्ति, अनुग्रह, मर्यादा, द्वैत-अद्वैत, द्वैताद्वैत, निर्गुण-सगुण तथा व्यक्त-अव्यक्त रहस्यों का समन्वय उपलब्ध होता है। ‘श्रीमद्भागवत पुराण’ वर्णन की विशदता और उदात्त काव्य-रमणीयता से ओतप्रोत है। यह विद्या का अक्षय भण्डार है।

श्रीमद्भागवत का दूसरा नाम क्या है?
भागवतकथा का दूसरा नाम सत्य है। भागवत कथा के पहले ही श्लोक में सत्य का महत्व बताया गया है। श्लोक में सच्चिदानंद शब्द में ही मनुष्य जीवन की व्याख्या छिपी है। सत, चित, धन और आनंद से मिलकर सच्चिदानंद शब्द बना है।

भागवत जी का मूल मंत्र क्या है?
एतद् श्रीमद्भागवतम् पुराण कथितं श्रीकृष्ण लीलामृतम्।। अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्ण:दामोदरं वासुदेवं हरे। श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकी नायकं रामचन्द्रं भजे।।

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