“अरे! बेटी जरा चाय तो बना दो . खाली बैठे चाय की तलब लग आती है .”
बहु ने सुना और फिर व्यस्त हो गई मोबाइल पर . समय का पता ही नहीं रहा . ससुर ने देखा तो बाहर से दरवाजा बंद कर पास की दुकान पर चले गए . चाय पी और कुछ देर इधर उधर की बातें कर लौट आये . मगर यह क्या बहू अभी भी मोबाइल पर ही लगी थी . कुछ देर बाद बच्चे भी आने वाले थे स्कूल से अतः उन्होंने भी अपना मोबाइल लिया और बाहर की सड़क पर इंतज़ार करने लगे . तभी उनके दिमाग में एक शरारत सूझी . पास से गुजरते एक नौजवान को रोका और बोले -“यार ! एक फोटो निकाल दो मेरा .”
युवक ने मोबाइल से फोटो खींच दी . “ये जगह बहुत अच्छी है . आओ मैं तुम्हारा एक फोटो खींचता हूँ .” और उन्होंने तुरंत उसका फोटो खींच लिया .
कुछ देर बाद बच्चों की स्कूल बस आई तो बच्चो को लेकर घर की तरफ चलने लगे . दादा जी अपना फोन दो जरा गेम खेलना है
“मोबाइल तो दे दूंगा पर मेरा अकाउंट बनाना है फेसबुक पर और मेरे असली नाम वाला .”
“आपका नकली नाम है क्या ये ?”
“नहीं मेरा नाम असली है पर मेरे दोस्त मुझे सुधाकर के नाम से भी पुकारते थे . मैं कविता भी लिखता था , इसलिए उसी नाम से .”
पोते ने मोबाइल हाथ में लिया और कुछ ही देर में उनका अकाउंट बना दिया.
“मैं गेम खेल रहा हूँ आपका पासवर्ड है सुधाकर XXX याद रख लेना और बढ़िया सी फोटो भी लगा लेना .” पोता बोला .
घर पहुंचकर सब अपने-अपने काम में लग गए तब वह भी आराम करने लगे तभी पोती माँ का फोन लेकर आई और बोली- “दादाजी ! इसने अपनी बारी तो खेल लिया लेकिन मुझे नहीं खेलने दे रहा है .”
“अरे ! बेटा …ऐसा नहीं करते . बहिन को भी खेलने दे . अभी इसकी माँ मांग लेगी मोबाइल और ये फिर रह जायेगी .” तभी फोन पर नोटिफिकेशन आया . क्लिक किया तो फेसबुक का था . उन्होंने नाम और फोटो को नोट कर लिया .
अब प्लान के मुताबिक़ उन्होंने उस नौजवान की फोटो लगाईं और फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी . फिर और भी लोगों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी . एक ही घंटे में बीस मित्र बन चुके थे . उन्होंने अपना पहला स्टेट्स एक लड़की की तस्वीर के संग डाला और लिखा ….अकेले हैं चले आओ …
तभी नोटिफिकेशन आया जो दिखा रहा था कि अब दोस्ती पक्की हो गई . उन्होंने तुरंत मेसेज बॉक्स में लिखा – “नवाजिश आपने हमें कबूल किया .”
“आप तो शायर हैं . आपके ज्यादा दोस्त नहीं हैं .”
“हम तो चुनकर दोस्त बनाते हैं . आप बहुत ख़ास लगीं हमें इसलिए ….”
“ओह ! आपकी प्रोफाइल पिक तो बहुत खूबसूरत है . क्या करते हैं ?”
“गोल्ड का काम है मेरा . आजकल बहुत इधर-उधर आना -जाना रहता है काम के सिलसिले में . कहें तो आपके लिए भी कुछ ….”
“अरे! नहीं , अभी तो दोस्ती हुई है . ऐसा कैसे हो सकता है .”
“कोई बात नहीं , वैसे हमने आप को देखा है . हम आपके ही इलाके के हैं . इस दोस्ती की शुरुआत अगर फूलों से हो तो क्या ही अच्छा हो .”
“नहीं , रहने दीजिये . घर में सब होते हैं . सौ सवाल खड़े होंगे बेकार ही .” तभी मेसेज बॉक्स में एक खूबसूरत कविता आ गई .
“अरे! वाह …सो ब्यूटीफुल …आप तो बहुत रोमांटिक लिखते हैं .”
“हा हा हा …ये उम्र ही ऐसी है और उस पे आप कि ये खूबसूरती …बहुत फुर्सत से बनाया है उपरवाले ने . सिंगल हैं क्या ?”
“हा हा हा ….नहीं , मेरी शादी हो गई .”
“ओह ! तब तो हम लेट हो गए …हा हा हा …रियली आपको देख के लगता ही नहीं है .”
काफी देर तक बातें होती रहीं . अब यह सिलसिला चल निकला था . एक रोज घर में कोई फूल लेकर आया तो दादाजी ने ख़ुद लिया और बहु को देते हुए बोले-
“बेटी ! ये किसी सुधाकर का गिफ्ट आया है .”
“पर मेरा तो कोई दोस्त नहीं है , लगता है सुधा ने भेजा होगा . गलती से सुधाकर लिखा होगा . बहुत शरारती दोस्त है मेरी . फेसबुक पर भी है .” और वह फूलों को लेकर अन्दर चली गई . उसने फूलों के साथ सेल्फी ली और तुरंत मेसेज कर दी.
दादाजी मुस्कुराने लगे . अब शरारती दिमाग ने फिर चाल चली . सुनार की दुकान पर गए और कुछ गहनों के फोटो लेकर बहू को भेज दिए .
“हाय ! इनमें से कोई पसंद है तो कहो .” बहू तो ख़ुशी से पागल हो गई . मगर अगले ही पल लिखा . मेरी शादी एक मध्यमवर्गीय घर में हुई है . मैं इसका सपना भी नहीं ले सकती . पर वो मंगलसूत्र कितने का होगा ?”
“अरे! क्या बात करती हैं . सिर्फ दो लाख का है . पेंडेंट में डायमंड भी है .”
“ओह ! बहुत ही सुन्दर है . पर दो लाख बहुत ज्यादा हैं मेरे लिए .”
“आपके लिए चार क़िस्त करवा देता हूँ . पचास हजार ट्रांसफर करवा दीजिये …मंगलसूत्र के साथ मुझे फोटो भेजिए . आपकी खूबसूरती चार गुणी हो जायेगी . ये सिर्फ आपके लिए है . मैं अकाउंट नंबर भेज रहा हूँ और मेरा डिलीवरी बॉय आप तक आपकी अमानत पहुंचा देगा …फोटो जरुर भेजिएगा …आप पर खूब फबेगा .”
कुछ देर बाद बहू तैयार होकर आई और बोली-
“पापा जी ! मुझे जरा बाहर काम है मैं आधे घंटे में आती हूँ .” बहू ने मुस्कुराते हुए कहा .
“ठीक है बेटी ! क्या मेरी दवाई ले आओगी ये ?” और उन्होंने पर्चा आगे बढ़ा दिया पैसों के साथ .
” ठीक से रखना पैसे . आजकल लोग बहुत धोखेबाज हो गए हैं .”
“जी, पापाजी , मैं ख्याल रखूंगी .” और बहु बाहर चली गई .
कुछ देर बाद उनके मोबाइल पर मेसेज था पचास हजार रुपये जमा हो गए हैं . वह मुस्कुराते हुए गुनगुनाने लगे . बहू भी कुछ देर बाद वापिस आ गई और आते ही पूछा –
“पापाजी ! क्या मेरा कोई पार्सल आया है ?”
“नहीं तो , कोई नहीं आया . मैं तो घर में ही बैठा हूँ . चाय भी ख़ुद ही बनाकर पी ली मैंने .” और वह फिर गुनगुनाने लगे .
धीरे-धीरे शाम होने लगी थी . बहू के चेहरे की रंगत फीकी पड़ती जा रही थी . किसी मेसेज का कोई जवाब नहीं आ रहा था . कुछ देर बाद अकाउंट भी बंद हो चुका था .
तभी बेटा भी काम से लौट आया था . उसने नमस्ते की और पिताजी के पास बैठ गया .
“पापा ! ये कहाँ है ?”
“बेटा ! बहू तो अन्दर ही होगी . जा तू ही देख . बहुत देर से बाहर नहीं आई . पूछ तबियत तो ठीक है न .”
बेटा भी अन्दर चला गया . अब कमरे से रोने की आवाज आने लगी . दादाजी तुरंत कमरे की तरफ चल पड़े और खांसने के बाद बोले-
“अरे! बहू रो क्यों रही है ? क्या किया तूने ?”
“पापा ! कुछ बता नहीं रही है . बस रोये जा रही है .”
दादाजी तुरंत कमरे में प्रवेश कर गए .
“क्या हुआ बेटी ! रो क्यों रही हो ? क्या कोई जरुरी सामान आना था . अरे! आज नहीं तो कल आ जाएगा . इसमें रोने की क्या बात है ?”
अब तो रुलाई और जोर से निकलने लगी . दादाजी बाहर आ गए .
“बेटा ! तुम जरा बाहर आओ . एक जरुरी काम है .” और बेटे के बाहर आते ही उसे बाहर चलने को कहा . दोनों निकलकर सीधे सुनार की दुकान पर पहुंचे उस मंगलसूत्र को खरीदा और घर वापिस आ गए .
“बहू ! जरा चाय तो देना बेटा . आज तुम्हारी दोस्त सुधा से भेंट हो गई सुनार की दुकान पे .”
बहू की तो सिट्टीपिट्टी गम हो गई. वह सोचने लगी कि सुधा तो उसकी कोई दोस्त नहीं है , फिर ये सुधा कौन है ? उसने कोई जवाब नहीं दिया और चाय बनाने लगी .
चाय लेकर जैसे ही बहू आई तो उसे बैठ जाने को कहा दादाजी ने . सभी चाय पीने लगे . जब चाय पी ली तब दादाजी ने बेटे से कहा –
“बेटा ! वो जो बहू के लिए गिफ्ट लिया है उसे पहना दो . बेचारी को तुम गिफ्ट भी नहीं देते हो . देखा कितनी उदास है . नालायक पति हो तुम .”
बेटे ने मंगलसूत्र निकालकर पत्नी के गले में डाल दिया . “वाह ! कितनी सुन्दर लग रही है मेरी बेटी …वाह ….लाजवाब डिजाइन है . बेटा तुम्हारी पसंद बहुत ही अच्छी है .”
बहू ने जैसे ही गौर किया तो पाया कि ये तो वही डिजाइन है जैसा उसे सुधाकर ने भेजा था .
“पापाजी ! ये किस दुकान से ख़रीदा है ?”
“क्या हुआ ? पसंद नहीं आया ?”
“नहीं….वो बात ….”
“हाँ, क्या बात है ? क्या तुम कोई और मंगलसूत्र पसंद करने गईं थी ?”
बहू चुप हो गई . वह बर्तन उठाकर जाने लगी तो पापाजी ने रोक दिया .
“बेटी! सुधाकर को कितने पैसे दिए ?”
“सुधाकर” का नाम सुनते ही बहू के पैरों तले जमीन निकल गई. उसे लगा कि अब कोई चारा नहीं बचा है . लगता है इन्हें सब मालूम हो गया है .
“पचास हजार .”
“इस दोस्ती से क्या मिला तुम्हें ? क्या कोई भी जरा सी तारीफ़ कर के तुमसे पचास हजार हड़प सकता है ? ये बेबकूफी नहीं है तो क्या है ? जो समय बच्चों का है उसमें तुम ऐसी दोस्ती निभाओ ये क्या ठीक बात है ? तुम ससुर को चाय देना भूल जाओ क्या ये ठीक है ?”
“माफ़ कर दीजिये पापा जी अब मुझसे गलती हो गई है . मैं आज ही इस बबाल को ख़त्म करती हूँ .” और वह अन्दर जाने लगी .
“जाओ ! मगर एक बात याद रखो . सुधाकर को फिर कभी सुधा मत कहना और न ही कभी लालच में आना . ये दो लाख का नहीं है ढाई लाख का है पर तुम करोड़ों की हो . अपना मन अपने घर में लगाओ . तुम्हारे आँगन में दो-दो कार्टून चैनल हैं और ये तीसरा दूरदर्शन भी .”
“पर पापाजी ये सुधाकर कौन है ? आप जानते हैं क्या ?”
“हाँ , तुम्हारे बच्चों के बाप का बाप और तुम्हारा भी …..हा हा हा “