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दयालु राजा की कहानी !!

एक समय केशवपुर नामक नगर में कृष्ण देव राजा का शासन चलता था। राजा काफी धार्मिक और दयालु था। वो राज्य में आने वाले हर साधु-संत की खूब मन लगाकर सेवा करता था। उसका आदेश था कि कोई भी साधु राज्य में आए, तो सबसे पहले उसे बताया जाए। राजा के आदेशानुसार राज्य में कभी भी कोई साधु या साधु मंडली आती, तो सबसे पहले राजा को बताया जाता।

राजा के साथ ही नगरवासी भी साधुओं की अच्छे से सेवा करते थे, जिस कारण साधुओं के आशीर्वाद से केशवपुर के लोग खुशहाल और संपन्न थे। पूरे राज्य में शांति थी और लोग हर सुख-दुख में एक दूसरे का साथ निभाते थे। खेती के दिनों में सभी मिल-जुलकर कृषि कार्य करते थे। ऐसे ही भाईचारे की वजह से केशवपुर दिन-ब-दिन खूब तरक्की कर रहा था।

केशवपुर के पास में ही सूरजपुर था। उस पड़ोसी राज्य में कंस देव नाम का राजा शासन करता था। वो अपनी प्रजा को खूब सताता था और नए-नए कर यानी टैक्स लगाकर उन्हें परेशान करता ​था। राजा अपना सारा समय नाचगान करने वालों के बीच में बिताता और शराब के नशे में डूबा रहता था। राजा की यह हालत देखकर उसके सिपाही भी प्रजा पर जुल्म करते थे।

सूरजपुर में खेती-बाड़ी भी ठीक तरह से नहीं हो रही थी, जिस कारण वहां की जनता भुखमरी से जूझ रही थी। यहां तक की जानवरों को खिलाने के लिए भी पर्याप्त चारा नहीं मिल पा रहा था। फिर भी राजा ​कर वसूली में कमी नहीं करता था। राजा के अत्यचार से पीड़ित जनता केशवपुर में आश्रय लेने के बारे में सोचने लगे। इसी सोच को लेकर सूरजपुर के हजारों निवासी केशवपुर की सीमा पर खड़े थे।

सूरजपुर की जनता के सीमा के पास खड़े होने की सूचना सिपाहियों ने राजा कृष्ण देव को दी। राजा सूचना पाते ही तुरंत सीमा पर पहंचे और सूरजपुर की जनता की दशा देखकर दुखी हो गए।

राजा कृष्ण देव ने सूरजपुर के लोगों का सम्मानपूर्वक स्वागत करते हुए उन्हें अपने राज्य में रहने की इजाजत दे दी। साथ ही उनके लिए खाना और उनके जानवरों के लिए चारे का भी प्रबंध कराया। भूख से पीड़ित लोगों को कृष्ण देव ने स्वयं खाना परोसा। भोजन करने से पहले और करने के बाद जनता जोर-शोर से महाराज की जय-जयकार करने लगी।

जवाब में राजा ने कहा कि आप लोगों को मेरी जय-जयकार करने की जरूरत नहीं है। मेरे पास जो भी है, वो भगवान का है, इसलिए जो भी मैंने दिया है, उसके लिए जय जयकार के हकदार भगवान हैं। ऐसे में आप सभी मेरी जगह भगवान की जय-जयकार करें, क्योंकि वही हम सब के पालनहार हैं।

कुछ दिनों बाद सूरजपुर की बची हुई जनता भी केशवपुर की तरफ पलायन करने लगी और धीरे-धीरे सूरजपुर के ज्यादातर लोग केशवपुर में बस गए। देखते-ही-देखते पूरा राज्य खाली हो गया और राजा कंस देव और उनके कुछ ही सिपाही नगर में रहने लगे। भुखमरी के कारण पशु-पक्षी मरने लगे और उनकी लाशें नगर में ही सड़ने लगी। इसी के चलते पूरे सूरजपुर में बीमारी फैल गई।

राज्य में बचे लोग भूख व बीमारी से परेशान रहते थे और अधिकतर लोग मरने लगे। एक दिन राजा कंस देव की पुत्री को हैजा हो गया, जिससे कुछ ही दिनों में हैजा से उसकी मृत्यु हो गई। राजा लाचार हो गया और वह बार-बार सोचने लगा कि उन्होंने जनता पर काफी अत्यचार किया है। यह सोचकर राजा कंश देव भगवान से क्षमा की भीख मांगने लगा।

कुछ दिन बिताने के बाद राजा कृष्ण देव के राज्य में साधुओं की टोली पहुंची, जिसकी सूचना राजा को सिपाहियों ने तुरंत दी। उन्होंने राजा को बताया कि इस मंडली में दो महिला साधु व युवक हैं, जिनमें से एक युवक राजकुमार जैसा और एक युवती राजकुमारी के समान दिख रही है।

राजा यह सुनते ही सब काम छोड़कर तुरंत सीमा पर पहुंचे और उन सभी को सम्मान के साथ राजमहल में ले आए। राजा ने उन सभी की खूब सेवा की। कुछ दिनों बाद साधुओं ने राजा से उनके नगर घूमने व वहां की जनता से मिलने की इच्छा जताई। राजा भी साधुओं की बात सुनकर उनके साथ नंगे पांव नगर की ओर निकल पड़ा। साधुओं ने देखा की केशवपुर का हर नागरिक खुश है और जहां से वो गुजरते हैं, वहां राजा की जय-जयकार होने लगती है।

सभी प्रजावासियों ने राजा व साधुओं को फूल-मालाओं से सम्मानित किया। जनता द्वारा राजा के लिए इतना आदर सत्कार देखकर एक साधु ने कहा, ‘राजन! आप धन्य हैं। आपके बारे में जितना सुना था आप उससे भी बढ़कर हैं। मैं साधु नहीं हूं, बल्कि आपके पड़ोसी राज्य सूरजपुर का राजा हूं। मैंने अपनी जनता पर बहुत अत्याचार किया है, जिस कारण वो आपके राज्य में बस गए हैं। मेरे अत्यचार के चलते पूरे राज्य में भुखमरी व बीमारी बढ़ गई, जिसकी शिकार मेरी एक बेटी भी हो गई। अब मैं अपने पापों को धोने के लिए भगवान की भक्ति करने लगा हूं।’

उसने आगे बताया कि मैं जिस राह पर चल रहा हूं, उस पर अपनी पत्नी, बेटी और बेटे को चलने के लिए नहीं बोला है। मगर ये कहते हैं कि ये मेरे पाप में बराबर के भागीदार हैं, जिस कारण ये भी वैराग्य जीवन जी रहे हैं। हम अब सबकुछ छोड़कर तीर्थ के लिए निकलने वाले थे, लेकिन तीर्थ पर जाने से पहले अपनी प्रजा का हाल देखने की चाहत हुई। अब मैं अपनी प्रजा को खुश देखकर संतुष्ट हो गया हूं। मैं आपका आभारी रहूंगा कि आपने मेरे राज्य की जनता और अपने  राज्य की जनता के बीच किसी तरह का भेदभाव नहीं किया। अब हम भगवान की भक्ति में अपना जीवन सुकून के साथ व्यतीत कर सकते हैं।

कंस देव की बातें सुनकर राजा ने उन्हें गले लगाया और कहा कि आप धन्य हैं, जो आपको इतना अच्छा परिवार मिला। आपका परिवार सुख के साथ ही दुख में भी आपके साथ है। मुझे अफसोस है कि आपकी जनता ने आपको बुरे समय में अकेला छोड़ दिया। राजा कृष्ण देव की बात सुनकर कंस देव कहता है कि मुझे अपनी प्रजा से किसी तरह की शिकायत नहीं है। फिर राजा कृष्ण देव ने कंस देव से कहा कि आप अपने पुत्र को मेरा दामाद और अपनी बेटी को मेरी बहू बना दीजिए।

राजा कृष्ण देव की बातें सुनकर कंस देव की आंखों में आंसू आ गए और मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला। किसी तरह से कंस देव ने कहा कि राजा कृष्ण देव आप धन्य हैं। मैं आपके इस प्रस्ताव को स्वीकार करता हूं। आपने मेरी चिंता दूर कर दी है।

फिर राजा ने दोनों की शादी बड़ी धूमधाम से की और कंस देव व उसकी पत्नी कुछ दिन बाद तीर्थ यात्रा के लिए रवाना हो गए। थोड़े दिन बीतने के बाद राजा कृष्ण देव ने अपने दामाद को सूरजपुर का राजा घोषित कर दिया और धीरे-धीरे सूरजपुर की जनता वापस राज्य लौट गई। फिर दोनों राज्य के लोग खुशहाली और चैन से रहने लगे।

कहानी से सीख – हमेशा दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। धनवान होकर घमंड करने की जगह दूसरों के प्रति मदद की भावना रखनी चाहिए। वरना पैसों का घमंड इंसान को ले डूबता है।

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