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राजा और रंक की कहानी!!

एक समय की बात है किसी गांव में एक भिखारी रहता था। खाने की तलब में वह हर दिन घने जंगल को पार करके किसी न किसी के घर भिक्षा लेने जाया करता था। आज भी इसी तरह वह भिक्षा लेकर अपने घर की तरफ जा रहा था, लेकिन वह आज बहुत खुश था। उसने फटे हुए जूते भी पहने हुए थे।

वह खुशी में गुनगुनाते हुए जंगल के रास्ते अपने घर को लौट रहा था। उसी जंगल में एक राजा भी था, जो अपने हालात से बहुत दुखी था और महल से भाग कर वहां आराम कर रहा था। तभी राजा की नजर उस भिखारी पर पड़ी। भिखारी को इतना खुश देखकर वह यह सोचने को मजबूर हो गया कि इस इंसान के पास कुछ नहीं है। फटे हुए कपड़े व पैरों में कटे-फटे जूते होने के बावजूद भी यह कितना खुश है और एक मैं हूं जो दिन-रात एक करके अपनी प्रजा और परिवार वालों की सेवा करता हूं, लेकिन इसके बाद भी वो लोग खुश नहीं होते हैं। उन सभी को सिर्फ मेरी राजगद्दी चाहिए और इसके लिए वे मुझे मरवाने का षड्यंत्र भी रच रहे हैं।

दरअसल, राजा ने एक दिन अपने महल में कुछ पहरेदारों को बात करते हुए सुन लिया था। वो आपस में बात कर रहे थे कि जैसे ही यह राजा मर जाएगा, उनकी आंखों का काटा साफ हो जाएगा। वहीं, राजा की पत्नी बहुत पहले ही उसे व राजमहल को छोड़कर जा चुकी थी। राजा को कोई पुत्र भी नहीं था। इस वजह से उसके पास अपना कोई उत्तराधिकारी भी नहीं था। जिस दिन से राजा ने अपने खिलाफ इस षड्यंत्र के बारे में सुना तब से वह बहुत ही सावधान रहने लगा था। इतना ही नहीं, एक दिन राजा के खाने में उसके भाई ने जहर मिलवा दिया था, जिसके बारे में राजा को भनक भी नहीं थी। वो तो राजा जब खाना खाने बैठा, तो अचानक एक बिल्ली ने आकर वो खाना खा लिया और कुछ देर बाद वो बिल्ली वहीं मर गई। इस घटना के बाद से राजा अपने खिलाफ हो रहे षड्यंत्र के प्रति बेहद सतर्क हो गया था। उसने अपने भाई से कहा कि उसके मरने के बाद वह ही राजा बनेगा। इसलिए उसे राज्य की सारी जानकारी रखनी चाहिए।

इसी वजह से एक दिन इन्हीं सब बातों से परेशान होकर राजा ने महल छोड़ दिया और बिना किसी को बताए वहां से भागकर वह उस जंगल में आ गया था। वह जंगल उसकी नगरी से बहुत दूर था, इस वजह से उसे वहां कोई पहचान भी नहीं सकता था। राजा जंगल में बहुत दिनों से था, जिस वजह से उसके बाल भी काफी बड़े हो गए थे। उस भिखारी को देखकर राजा ने सोचा कि हम दोनों ही इंसान हैं, बस फर्क है कि वह खुश इंसान है और मैं दुखी।

राजा जल्दी-जल्दी में महल से भागा था, इसलिए उसने सुंदर मोतियों की एक माला, जरी हुए जूते, कीमती कपड़े और हाथों में सोने की अंगूठियां भी पहनी हुई थी। जब भिखारी ने राजा को देखा, तो वह थोड़ा पीछे हट गया और सोचने लगा कि मैंने तो कटे-फटे कपड़े और जूते पहने हुए हैं। भीख न मिले तो मैं भूखा ही रह जाऊं, लेकिन इसके तो ठाठ-बाठ ही अलग हैं। यह कितना खुशनसीब है कि इसने हीरे-जवाहरात, सुंदर कपड़े और जूते पहने हुए हैं, लेकिन इसके बाद भी यह खुश नजर नहीं आ रहा है। उसने सोचा, चलो इस शख्स से ही उसके खुश न होने की वजह पूछता हूं।

भिखारी राजा के पास पहुंचा और उसे राम-राम बोला। राजा ने भी भिखारी को राम-राम का जवाब दिया।

भिखारी ने कहा – “आप तो बहुत अमीर परिवार के लगते हैं, शायद आप कहीं के राजा हैं।”

राजा ने कहा – “हां, सही बोले तुम, मैं सूरत गढ़ का राजा हूं और अपना राज अपने भाई को देकर यहां पर आ गया हूं। मेरे घरवाले दौलत के चक्कर में मुझे मरवाने का षड्यंत्र कर रहे थे। उसी से बचने के लिए मैं यहां पर मन की शांति के लिए आया हूं। काफी दिनों से मैं ऐसी हालत में हूं। मेरी लंबी दाढ़ी देखकर लोग मुझे भगा देते हैं। रास्ते में जो भी फल-फूल मिलता है, वही खाकर गुजारा कर लेता हूं। आज मुझे बहुत तेज भूख लगी है, इसलिए मैं इधर-उधर खाने की तालाश में घूम रहा हूं। तुम्हारे पास अगर कुछ खाने के लिए हैं, तो कृपया मुझे थोड़ा खाने के लिए दे दो।”

भिखारी ने मुस्कुराते हुए राजा की तरफ देखा और कहा कि अगर तुम मुझे ये सोने की अंगूठी दोगे, तो मैं तुम्हें खाना खिला सकता हूं। राजा यह सुनकर खुश हुआ। उसने अपनी अंगूठी भिखारी को दे दी और बदले में उससे रोटी लेकर खा ली। भिखारी ने राजा से कहा कि तुम और मैं दोनों ही अकेले हैं। चलो हम दोनों साथ में चलते हैं।

दोनों साथ में चलते हुए एक घने जंगल में पहुंचे। वहां पर वह आराम करने लगे। भिखारी ने राजा से कहा कि आप कितने भाग्यवान हैं। आपके पास इतनी धन-दौलत है, लेकिन मेरे पास कुछ भी नहीं है। फटे जूते पहने हैं। आपकी अंगूठी से मेरी बहुत सी समस्याएं दूर हो जाएंगी। फिर राजा ने कहा कि मैं भी तुम्हारी ही तरह कुछ सोच रहा था। तुम्हें फटे जूतों की परवाह किए बगैर खुशी से अपने रास्ते की तरफ जाते देख मैंने सोचा तुम्हारे जैसा कोई खुशनसीब नहीं होगा। मेरे पास सब कुछ होते हुए भी मैं खुश नहीं हूं। हम दोनों की हालत एक जैसी ही है।

फिर बातों ही बातों में उस भिखारी ने राजा से उसके राज्य की सारी जानकारी पूछ ली और फैसला किया कि रात में जब राजा सो जाएगा, तो वह उसके कपड़े और गहने लेकर वहां से भाग जाएगा। जब तक राजा सोया नहीं, तब तक भिखारी उससे मीठी-मीठी बातें करता रहा। रात को उसने राजा को खाने में बेहोशी की दवा मिलाकर खिला दी। इससे राजा गहरी नींद में सो गया। फिर भिखारी ने राजा के कपड़े व उसके सारे गहने पहने और वहां से भाग गया।

राजा सोता ही रह गया, लेकिन रास्ते में उसे कुछ चोरों ने देख लिया। उन्होंने उसे राजा समझकर पकड़ लिया और उसके उसके सारे कपड़े और गहने छीन लेते हैं। अब भिखारी के पास सिर्फ धोती ही बची थी। चोरों ने सबकुछ लूटने के बाद उसे एक पेड़ से बांध दिया और उससे पूछने लगे कि वह कहां का राजा है। अगर नहीं बताओगे, तो तुम्हें मारकर कहीं फेंक देंगें।

भिखारी ने चोरों से कहा कि वह राजा नहीं है। मैंने अपनी लालच की वजह से एक राजा के सारे कपड़े और गहने चोरी कर पहन लिए थे। वह राजा अपने जीवन से दुखी है और जंगल में खाने के लिए भटक रहा है। चोरों ने उसे बोला कि वह नाटक कर रहा है। उन्होंने फिर से उससे पूछा कि तुम कहां के राजा हो।

भिखारी ने चोरों को बताया कि वह राजा रायप्रताप है, जो सूरतगढ़ का राजा है। उसका भाई रायबहादुर उसके राज्य का मंत्री है। वह अभी जंगल में आराम कर रहा है, लेकिन चोरों ने उसकी बात पर भरोसा नहीं किया।

उधर जब राजा की नींद खुलती है, तो वह भिखारी को बुलाता है। उसने अपने सामान को देखा, तो उसके पास सिर्फ एक पोटली ही होती है, जिसमें उस भिखारी का कुछ सामान होता है। दूसरी तरफ वो चोर सूरतगढ़ के महल में पहुंच जाते हैं। वहां पहुंचकर वो राजा के भाई रायबहादुर से कहते हैं कि उनके पास उनका भाई है। अगर वो उसे जिंदा बचाना चाहते हैं, तो उसके लिए उन्हें 3000 सोने के सिक्के दोने होंगे।

यह सुनकर रायबहादुर ने बोला इसके लिए तुम्हें मेरे भाई को मुंह पर कपड़ा बांधकर राजमहल लाना होगा। तभी हम तुम्हें सोने के 3000 सिक्के देंगे। चोर उस भिखारी के मुंह पर कपड़ा बांधकर उसे राजमहल लाते हैं और उसे रायबहादुर के हवाले कर देते हैं। राजा के कपड़ों में भिखारी को देखकर रायबहादुर को यकीन हुआ कि यह उसका भाई ही है। उसने सोचा कि अब वो इसे मारकर खुद राजा बन जाएगा, लेकिन जब उसने भिखारी के मुंह से कपड़ा हटाया तो वह गुस्सा हो गया। उसने चोरों को कहा कि मुझे पता था कि तुम लोग दौलत के चक्कर में मुझसे झूठ बोल रहे हो। यह आदमी मेरा भाई नहीं है। हम तुम्हें दो महीने का समय देते हैं, मेर भाई को पकड़कर लाओ। अगर नहीं लाए, तो तुम सबको गोली मार देंगे और अगर यहां से भागने की कोशिश की, तो जिंदा दफन करवा दूंगा |

यह सुनकर सभी चोर बहुत डर गए और मौका मिलते ही वहां से भाग गए। रास्ते में उन्होंने भिखारी से कहा कि तुम सही थे। अब हमें बताओं वह असली राजा कहां पर है। फिर तुम्हें भी फिरौती के धन में हिस्सा देंगे। भिखारी ने बताया कि उसने राजा को इसी जंगल में छोड़ा था, लेकिन बहुत ढूंढने के बाद भी राजा उन्हें नही मिला।

वहीं, नींद से जागने के बाद जब राजा को भिखारी की सारी हरकत समझ आती है, तो उसे बहुत दुख होता है। उसने सोचा कि अब उसे कहीं जाकर अपने खाने के लिए इंतजाम करना होगा, वरना वह भूख से ही मर जाएगा। कई दिनों तक राजा भूखा-प्यासा ही चलता रहा और रुखा-सूखा जो मिलता वही खा लेता। चलते-चलते राजा को एक हफ्ता हो गया था। उसे याद आया कि उसके पास एक पोटली है, जो भिखारी उसी के पास भूल गया था। वह उस पोटली को खोलता है, तो उसमे उसे सन्यासियों के कपड़े मिलते हैं। राजा ने सन्यासी वाले कपड़े पहन लिए। वह जंगल से निकल कर एक छोटे से गांव के पास पहुंचा। वहां एक नदी के किनारे पहुंचकर वह सो गया और दो दिनों तक सोता रहा। वहीं, आस-पास के लोगों को लगा कि यह कोई साधु बाबा हैं, जो अपनी समाधि में ध्यान कर रहे हैं। लोगों ने सो रहे राजा के पास चावल चढ़ा दिया, तो कुछ लोगों ने धूप जला दी। जब तीसरे दिन राजा की नींद खुली, तो उसे अपने पास बहुत सारे फलों का चढ़ावा मिला। यह देखकर वह बहुत खुश हो गया।

राजा ने मन में सोचा कि सन्यासियों का जीवन अच्छा है। बिना मेहनत किए भोजन मिल जाता है। अब उसे यहां से कहीं और जाने की आवश्यकता भी नहीं होगी। राजा ने वहीं पर एक कुटिया बना ली और उसी में रहने लगा। गांव के लोग उसकी पूजा करते और चढ़ावे में खाने के लिए फल और अन्य चीजें देकर जाने लगे।

एक दिन गांव के सभी लोग मिलकर उसके पास गए और उससे कहने लगे कि बाबा हमारे गांव में बहुत सालों से बारिश नहीं हुई है। आप कोई उपाय करें। यह सुनकर राजा परेशान हो गया कि अब वह क्या करे। वह अपनी सच्चाई भी नहीं बता सकता था। उसने लोगों को बोला कि इसके लिए उपवास करना होगा और अगले दो महीने तक कोई भी इस कुटिया के अंदर नहीं आएगा। गांव वाले उसकी बात मान गए। लोग दूर से ही कुटिया के बाहर चढ़ावा चढ़ाकर चले जाते थे।

राजा सोचने लगा कि उसका जीवन हर तरह से मुश्किलों से भरा है। उसे दूसरों का अच्छा जीवन देखकर जलन नहीं करना चाहिए। साधु बनकर वह बैठे-बैठे खा रहा है, लेकिन उसका जीवन एक कैदी की तरह हो गया है। उसे एक ही जगह पर बैठे रहना होता है। कहां मैं हर रोज बढ़िया-बढ़ियां भोजन खाता था और कहां यहां सिर्फ फल खाकर जिंदा हूं।

राजा नास्तिक था, इसलिए साधु के वेश में उसे भगवान का भजन करने का ढोंग करना पड़ रहा था। उसने सोचा दो महीने पूरे होते ही वह वहां से चला जाएगा। धीरे-धीरे समय बीतता जा रहा था। एक दिन राजा परेशान होकर खुद ही भगवान से कहने लगा कि हे भगवान! मुझे बचा लो। आप ही कोई चमत्कार कर दो। इसके बाद राजा ने भगवान से अपनी सारी गलतियों के लिए माफी भी मांगी। राजा ने भगवान के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा कि मुझे समझ आ गया है कि अपनी मुसीबतों से कभी घबराकर भागना नहीं चाहिए, बल्कि उनका डटकर सामना करना चाहिए। हे भगवान, मेरी लाज रख लो। इस गांव में बारिश करवा दो।

वहीं, गांव के लोग रोजाना कुटिया के बाहर आते, भजन-कीर्तन करते और दूर से चढ़ावा चढ़ा कर घर को लौट जाते थे। इसी तरह दो महीने पूरे होने वाले होतें हैं। तभी एक दिन गांव के लोग दौड़े-दोड़े राजा के पास आते हैं और कहते हैं कि बाबा आप तो महान हैं, उनके गांव में बारिश हुई है।

राजा कहने लगा, अब मुझे इजाजत दो मैं यहां से जाना चाहता हूं, लेकिन लोगों ने उन्हें रोक लिया। लोगों ने कहां कि वे एक आदमी भेजेंगे, जो उनकी सेवा किया करेगा। राजा ने भी सोचा चलो ठीक है, आगे जो होगा देखा जाएगा और वहीं पर रहने लगा।

कुछ समय बाद वह भिखारी और चोर भी राजा को ढूंढते-ढूंढते उसी गांव में आ गए। उन्होंने वहां के लोगों से उस चमत्कारी बाबा के बारे में सुना, जो लोंगों की समस्याओं को दूर करने के उपाय बता ता है। जब वे लोग उस बाबा से मिले तो, राजा और भिखारी एक-दूसरे को पहचान जाते हैं, लेकिन वे चोरों को इसका पता नहीं चलने देते हैं। फिर बाबा के भेष में राजा ने उनसे पूछा कि तुम लोग कहां से आए हो?

इसके बाद भिखारी ने राजा को सारी सच्चाई बताई कि मैंने लालच में आपके सारे कपड़े और जेवर पहन लिए थे, लेकिन उन्हें पहने के तुरंत बाद ही मेरे पीछे चोर पड़ गए। उन चोरों ने मूझे लूट लिया और पूछताछ करने लगे कि कौन हो, कहां से हो, तो मैंने खुद को आपके बारे में बताते हुए आपके राज्य की सारी जानकारी दे दी। उसके बाद वो चोर मुझे राजमहल ले गए। जहां पर 3000 सोने के सिक्के में वो मुझे आपके भाई को देने वाले थे। आपके भाई ने बताया कि वह आपको मरवाना चाहता है और खुद वहां का राजा बनना चाहता है। लेकिन, जब उसने मेरा चेहरा देखा, तो उसने मुझे पहचान लिया और चोरों को दो महीने के अंदर आपको ढूंढ निकालने के लिए कहा। तभी से हम सभी आपको ढूंढ रहे हैं।

भिखारी ने राजा से कहा कि तुम साधू बनकर इन चोरों को जो कहेंगे ये मान जाएंगे। इसके बाद राजा साधू के भेष में चोरों के सामने गया और भिखारी से सुनी सारी समस्याएं चोरों को बताने लगा। यह सुनकर सारे चोर हैरानी में पड़ गएं। उन्होंने राजा से बोला – “बाबा हमें इस परेशानी से बाहर निकाल दो। हम आपके सच्चे भक्त बन जाएंगे।”

राजा ने कहा – “तुम लोग मुझे उस राजा के महल लेकर चलो। मैं वहां पर जाकर खुद ही सब कुछ देखना चाहता हूं। महल में कहना कि तुम्हारे साथ एक बहुत बड़े साधु महात्मा हैं, जो हर व्यक्ति का भूत और भविष्य जानते हैं।”

चोर और भिखारी साधू बने राजा को अपने साथ लेकर सूरतगढ़ के महल पहुंच गए। चोरों ने राजा के मंत्री भाई से कहा कि हमारे साथ बहुत बड़े महात्मा आएं हैं, जो आपको आपके भाई राजा रायप्रताप से मिलवा सकते हैं। राजा अपने भाई को बहुत प्यार करता था, लेकिन अब उसे पता चल गया था कि उसका भाई उसके खून का प्यासा है। महल में साधू के रूप में आए राजा की खूब सेवा की गई। फिर उसका भाई उनके पास बैठकर बोला कि बाबा कृपया कर मुझे मेरे भाई से मिलवा दें। आज मैं इस राज्य का राजा बनने जा रहा हूं। मेरा भाई बिना कुछ बताए महल छोड़कर यहां से चले गए हैं।

फिर वो साधू के रूप में राजा चोरों के पास गया और उनसे कहा कि मैं थोड़ी देर के लिए इसका राजा भाई बन जाता हूं। फिर उसने अपने राजसी कपड़े पहने और राजदरबार में आ गया। यह देखकर पूरी प्रजा हैरान थी। सभी लोग राजा को वापस आया देखकर उसकी जय जय कार करने लगें।

उन्होंने राजा से पूछा कि वह इतने दिनों तक कहां पर थे। वहीं, राजा का भाई यह सब देखकर हैरान था। वह लोगों से कहने लगा कि यह उसका राजा भाई नहीं है, बल्कि यह तो एक साधू है, जिसने थोड़ी देर के लिए मुझे अपने भाई के रूप से मिलवाया है। वह अभी अपने असली रुप में आ जाएंगें और बाबा बन जाएंगें। राजा ने भी सभी को समझाते हुए कहा कि हैं मैं थोड़ी देर में अपने असली रूप में आ जाऊंगा। इसके बाद सभी लोग राजा के भाई का राज्यभिषेक करने लगे।

वह जैसे ही राजा की गद्दी पर बैठने वाला था, वैसे ही साधू बने राजा ने कहा – “मैं खुद अपने भाई को राजा बनाना चाहता था, लेकिन एक दिन मैंने महल में लोगों को मेरे खिलाफ हो रही साजिश के बारे में बात करते हुए सुन लिया था। मुझे कभी भी यह नहीं पता चल सका कि इन सबके पीछे मेरे अपने ही भाई का हाथ है। अगर मेरा भाई मुझसे अपने राजा बनने की बात कहता, तो मैं खुश-खुशी उसे राजा बना देता। लेकिन, इसने मुझे जहर दे कर मारने का प्रयास किया। पर जिस पर भगवान का साया हो, उसका कुछ नहीं बिगड़ता।”

यह सुनकर राजा का भाई रायबहादुर बोलने लगा कि यह साधु कुछ भी अनापश्नाप बोल रहा है। यह हमें ठगने का प्रयास कर रहा है। उसने राजा को धमकी देते हुए कहा कि तुम यहां से जल्दी से दफा हो जाओ, वरना तुम्हें धक्के मार कर महल से बाहर निकाल देंगे।

राजा का एक वफादार सेवक था। साधू बने राजा की बातें सुनकर वह रोने लगा। रोते हुए उसने बोला – “मैंने आपको पहचान लिया है। आप ही हमारे असली राजा हैं। मुझे क्षमा कर दें। मैंने ही आपके खाने में जहर मिलाया था। इसके बदले में मुझे आपके भाई ने 1000 सोने के सिक्के देने का वादा किया था। आप मुझे माफ कर दो। मैं आपका असली गुनहगार हूं और इसके लिए आप मुझे जो भी सजा देंगें मैं उसके लिए तैयार हूं।”

अब राजा के जीवन की सारी सच्चाई पूरी प्रजा को पता चल गई थी। सभी लोग राजा के मंत्री भाई को घृणा की नजरों से देख रहे थे। राजा ने अपने महल के मंत्रियों को आदेश दिया कि वह अपने महल से अपने भाई को बेदखल कर रहा है। उसे आज ही एक साल के लिए यह राज्य छोड़कर जाना होगा। जब उसे अपनी गलती का एहसास हो जाएगा, तो वह महल में वापस आकर मेरे साथ काम करने का अधिकारी बन सकेगा।

एक बार फिर से राजा रायप्रताप को अपने राज्य की राजगद्दी मिल गई और वह फिर से अपनी प्रजा की सेवा करने लगे। राजा ने भिखारी को अपने महल का मंत्री बना दिया और चोरों को भी महल में माली का काम दे दिया। एक साल बीतने के बाद राजा का भाई भी महल वापस आ गया था। उसे अपनी गलती का एहसास हो गया था। महल वापस आकर उसने अपने भाई से मांफी मांगी और पूरे कर्तव्य से अपना काम करने का वचन दिया। राजा ने फिर से उसे महल में उसका स्थान वापस दे दिया।

कहानी से सीख – राजा और रंक की कहानी हमें यह शिक्षा देती है कि कभी लोभ के कारण दूसरों का बुरा नहीं करना चाहिए। हमेशा सत्य का मार्ग अपनाना चाहिए और पूरी निष्ठा से जीवन के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को अपनाना चाहिए।

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