एक बार दो गरीब दोस्त किसी नगर के सेठ के पास काम मांगने जाते हैं। कंजूस सेठ तुरंत उन्हे काम पर रख लेता है और पूरे साल काम करने पर साल के अंत में दोनों को 12-12 स्वर्ण मुद्राएँ देने का वचन देता है।
सेठ यह भी शर्त रखता है कि अगर उन्होंने काम ठीक से नहीं किया या किसी आदेश का उलंघन किया तो उस एक गलती के बदले 4 सुवर्ण मुद्रायेँ तनख्वाह से काट ली ।
दोनों दोस्त सेठ की शर्त मान जाते हैं और पूरे साल जी-तोड़ महेनत करते हैं और सेठ के हर एक आदेश का अक्षरश पालन करते हैं।
जब काम करते-करते एक साल पूरा होने को आता है तो दोनों सेठ के पास 12-12 स्वर्ण मुद्राएँ मांगने पहुँचते हैं।
मुद्राएँ मांगने पर सेठ बोलता हैं, “अभी साल का आखरी दिन पूरा नहीं हुआ है और मुझे तुम दोनों से आज ही तीन और काम करवाने हैं।”
- पहला काम- छोटी सुराही में बड़ी सुराही डाल कर दिखाओ।
- दूसरा काम- दूकान में पड़े गीले अनाज को बिना बाहर निकाले सुखाओ।
- तीसरा काम- मेरे सर का सही-सही वजन बताओ।
“यह तो असंभव है!”, दोनों दोस्त एक साथ बोल पड़ते हैं।
“ठीक है तो फिर यहाँ से चले जाओ…इन तीन कामों को ना कर पाने के कारण मैं हर एक काम के लिए 4 स्वर्ण मुद्राएँ काट रहा हूँ…”
मक्कार सेठ की इस धोखाधड़ी से उदास हो कर दोनों दोस्त नगर से जाने लगते हैं। उन्हें ऐसे जाता देख एक चतुर पण्डित उन्हे अपने पास बुलाता है और पूरी बात समझने के बाद उन्हें वापस सेठ पास भेजता है।
सेठ के पास पहुँच दोनों मित्र बोलते हैं, “सेठ जी अभी आधा दिन बाकी है, हम आपके तीनो काम किये देते हैं।”
और तीनो दूकान के अन्दर घुस बड़ी सुराही को तोड़-तोड़ कर छोटी के अन्दर डाल देते हैं। सेठ मन मसोस कर रह जाता है पर कुछ कर नहीं पाता है।
इसके बाद दोनों गीले अनाज को दूकान के अन्दर फैला देते हैं।
“अरे, फैलाने भर से भला ये कैसे सूखेगा…इसके लिए तो धूप और हवा चाहिए…”, सेठ मुस्कुराते हुए कहता है।
“देखते जाइए…”, ऐसा कहते हुए दोनों मित्र हथौड़ा उठा आगे बढ़ जाते हैं।
इसके बाद दोनों मिलकर दूकान की दीवार और छत तोड़ डालते हैं….जिससे वहां हवा और धूप दोनों आने लगती है।
क्रोधित मित्रों को सेठ और उसके आदमी देखते रह जाते हैं…किसी की भी उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं होती।
अब आखिरी काम बचा होता है…”, दोनों मित्र तलवार ले कर सेठ के सामने खड़े हो जाते है और कहते हैं, “मालिक आप के सिर का सही सही वज़न तौलने के लिए इसे धड़ से अलग करना होगा। कृपया बिना हिले स्थिर खड़े रहें।”
अब सेठ को समझ आ जाता है कि वह गरीबों का हक इस तरह से नहीं मार सकता और बिना कोई और नाटक किये वह उन दोनों को 12 – 12 स्वर्ण मुद्रायेँ सौप देता है ।