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शेखचिल्ली की कहानी : चला ससुराल !!

बहुत समय पहले की बात है एक गांव में शेखचिल्ली नाम का एक युवक रहता था। उसके पिता का बचपन में ही देहांत होने के बाद उसकी मां ने उसे अकेले ही पाल-पोसकर बड़ा किया था। शेखचिल्ली बेहद चुलबुले स्वभाव का था, लेकिन दिमाग से मूर्ख था। एक तो वह और उसकी मां गरीबी में दिन काट रहे थे और ऊपर से उसकी मूर्खता के कारण उसकी मां को आए दिन लोगों की जली कटी बातें सुननी पड़ती थी। लोगों के तानों से परेशान होकर एक दिन शेखचिल्ली की मां ने उसे घर से निकाल दिया।

घर से निकाले जाने के बाद उसके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था। कुछ दिनों तक यूं ही भटकते-भटकते वह पड़ोस के दूसरे गांव में जा पहुंचा। गांव के लोगों से वहां रहने के लिए अनुमति लेकर उसने गांव के पास ही अपने लिए एक झोपड़ी बना ली।

शेखचिल्ली का स्वभाव बेहद नटखट व चुलबुला था, इसलिए देखते ही देखते वह गांव वालों से घुल-मिल गया। गांव के सभी लोग उसे खूब पसंद करने लगे। शेख गांव वालों का छोटा-मोटा काम कर देता और उसके बदले में वे उसे राशन व अन्य सामान देते, जिससे उसका गुजारा चल जाता। शेखचिल्ली बातें बनाने में भी माहिर था इसलिए गांव के कुछ लड़के उसके शागिर्द की तरह हमेशा उसके आगे-पीछे घूमते रहते थे।

उस गांव के मुखिया की एक बेटी थी, जो देखने में बेहद सुंदर थी। शेखचिल्ली की बातों और उसकी लोकप्रियता से प्रभावित होकर मुखिया की बेटी उसे पसंद करने लगी थी। अपनी बेटी की इच्छा को देखते हुए मुखिया ने शेखचिल्ली से उसकी शादी करा दी और साथ में संदूक भर कर आभूषण, रुपए व अन्य सामान देकर बेटी को विदा किया।

शादी के बाद अपनी पत्नी को लेकर शेखचिल्ली अपने गांव लौट आया और सीधे अपनी मां से मिलने घर पहुंचा। उसने मां को पूरी कहानी सुनाते हुए अपनी पत्नी को मां से मिलवाया और शादी में मिले सारे सामान को उन्हें सौंप दिया। शेखचिल्ली की मां ने दोनों का घर में खुशी-खुशी स्वागत किया, लेकिन मन ही मन में वह जानती थी कि शेख कोई काम नहीं जानता और मुखिया की बेटी से उसकी शादी किस्मत से हुई है।

इसी तरह कई महीने बीत गए और एक दिन शेखचिल्ली की पत्नी अपने मायके वालों से मिलने अपने गांव चली गई। देखते ही देखते उसकी पत्नी को मायके गए हुए एक साल से अधिक समय बीत गया, लेकिन न तो वह वापस आई और न ही कोई संदेश भेजा। शेखचिल्ली को अब पत्नी की चिंता सताने लगी थी। ऐसे में उसने अपनी मां से कहा कि वह अपनी पत्नी को वापस लाने जाना चाहता है।

साथ ही उसने कहा कि वह अपने ससुराल जाने का रास्ता भूल गया है। उसने मां से गुजारिश की कि वह उसे उसकी पत्नी के गांव पहुंचने का रास्ता बताए। उसकी मां जानती थी कि शेखचिल्ली मूर्ख है, इसलिए उसने उससे कहा कि ‘अगर तू अपनी नाक की सीध में सीधा चलता जाएगा, तो अपने ससुराल पहुंच जाएगा और इस दौरान तुझे यहां-वहां नहीं मुड़ना है।’

शेखचिल्ली की मां ने रास्ते के लिए कुछ खाने का सामान गठरी में बांध दिया और उसे ससुराल की ओर विदा किया। अपनी मां के कहे अनुसार वह अपनी नाक की सीध में चलता गया। रास्ते में उसे कईं चट्टान, झाड़ियां व पेड़ और एक नदी मिली, जिन्हें उसने बिना अपना रास्ता मोड़े बड़ी मुश्किल से पार किया। इसी तरह चलते-चलते 2 दिन बाद शेखचिल्ली अपने ससुराल पहुंच ही गया।

उसके ससुराल पहुंचने पर सभी लोग बड़े खुश हुए और उसका स्वागत करने लगे। उसके ससुराल वालों ने उसे खाने-पीने के लिए कईं पकवान व शीतल पेय परोसे। इतना सबकुछ सामने होने के बाद भी उसने किसी को हाथ भी न लगाया और अपनी मां द्वारा गठरी में बांधे खाने को ही खाया, क्योंकि उसकी मां ने उसे केवल वही खाने के लिए कहा था।

उसके बाद शेखचिल्ली ऐसे ही खाली पेट सो गया था, लेकिन रात को उसे जोरों की भूख सताने लगी। जब भूख सहन से बाहर होने लगी तो वह रात को ही घर से बाहर निकल गया और एक मैदान के पास पेड़ के नीचे लेट गया। उस पेड़ पर मधुमक्खियों ने छत्ता बनाया हुआ था, जिससे शहद की बूंदे टपक रही थीं। शेखचिल्ली करवटें बदल-बदल कर पेड़ के नीचे ही सोता रहा और शहद की बूंदें उसके शरीर पर टपकती रहीं।

देर रात को परेशान होकर वह उठकर वापस अपने ससुराल पहुंचा और घर के पास ही बनी एक कोठरी में जाकर सो गया। कोठरी में रूई के गोले रखे थे, जो शेखचिल्ली के पूरे शहद लगे शरीर से चिपक गए। रूई की गर्माहट से उसे जल्द ही गहरी नींद आ गई। सुबह जब शेख की पत्नी रूई लेने के लिए कोठरी में घुसीं तो रूई में लिपटे शेखचिल्ली को देखकर वह डर गई और जोर-जोर से चिल्लाने लगीं। चीखने की आवाज सुनकर शेख की नींद टूट गई और वह जोर से उसे डांटते हुए ‘चुप, चुप’ कहने लगा। उसकी आवाज सुनते ही उसकी पत्नी कोठरी से बाहर भाग गई और शेख दोबारा सो गया।

कुछ देर बाद उसकी पत्नी ने परिवार के अन्य लोगों को भी बुलाकर कोठरी में ले आई। कोठरी में रूई में लिपटा शेखचिल्ली बेहद डरावना लग रहा था। घरवालों ने एकजुट होकर उससे पूछा कि वह कौन है, तो शेखचिल्ली दोबारा जोर-जोर से ‘चुप, चुप’ चिल्लाने लगा। घरवालों को लगा कि वह कोई भूत है और सभी वहां से दुम-दबाकर भाग निकले।

घरवालों ने शेखचिल्ली, जिसे वे भूत समझ रहे थे उसे कोठरी से भगाने के लिए एक ओझा को बुलाया। ओझा द्वारा काफी देर तक तंत्र-मंत्र करने पर भी जब कोठरी से वह बाहर नहीं निकला, तो ओझा ने मुखिया के परिवार को जल्द से जल्द घर खाली करने और किसी दूसरे मकान में जाने की सलाह दी। ओझा की बात मानकर सभी घरवाले तुरंत दूसरे घर में चले गए और उसे खाली कर दिया।

दिन में तो शेखचिल्ली कोठरी से बाहर नहीं निकल पाया, तो रात होते ही वह कोठरी से बाहर भाग निकला। भागते हुए वह  एक किसान के घर के पास पहुंचा, जिसके आंगन में बहुत सारी भेड़ें बंधी हुई थीं। शेखचिल्ली को अंधेरे में कोई आता दिखाई दिया तो वह छिपने के लिए भेड़ों के बीच बैठ गया। जिन्हें देखकर शेखचिल्ली छिपा था वो दरअसल चोर थे, जो किसान की भेड़ें चुराने आए हुए थे। चोरों ने एक-एक कर कईं भेड़ों को उठाया और आंगन से निकल कर जाने लगे। उनमें से एक चोर ने रूई में लिपटे शेखचिल्ली को भेड़ समझकर उसे भी कंधे में उठा लिया और चलता बना।

भेड़ों को लेकर भागते हुए चोर नदी के पास पहुंचे इतने में सुबह होने लगी, तो चोर भेड़ों को वहीं छोड़कर भागने लगे। इतने में चोर के कंधे पर लेटा शेखचिल्ली कहने लगा कि मुझे जरा धीरे से उतारना। भेड़ को बोलता समझकर चोरों को लगा कि वह जरूर कोई दैत्य है, जो भेड़ का रूप धारण किए हुए है। चोर डर के मारे शेखचिल्ली को नदी में फेंक कर वहां से भाग गए।

नदी के पानी से शेखचिल्ली के शरीर पर चिपकी हुई रूई और शहद पूरी तरह से धुल गया। खुद को पानी में अच्छे से साफ कर वह सीधा अपने ससुर के पास पहुंचा और अंजान बनकर उनसे पुराने घर को खाली करने का कारण पूछने लगा। मुखिया ने उसे ‘चुप-चुप’ वाले दैत्य की पूरी बात बताई। मुखिया की बात सुनकर शेखचिल्ली मन ही मन में बहुत खुश हुआ और अपने ससुर से कहने लगा कि वह उस घर से भूत को भगा सकता है।

शेखचिल्ली की बात मानकर मुखिया पूरे परिवार के साथ पुराने घर में पहुंचा। जहां शेख कोठरी के सामने भूत को भगाने के लिए मंत्रोच्चारण करने का नाटक करने लगा। कुछ देर बाद उसने अपने ससुर से कहा कि वह भूत अब यहां से भाग गया है और वेलोग फिर से इस घर में रह सकते हैं। उसकी बातें सुनकर मुखिया बेहद खुश हुआ और पूरा परिवार दोबारा से अपने घर लौट आया। मुखिया व उसके परिवार ने शेखचिल्ली की बड़ी खातिरदारी की।

ससुराल में कई दिन बिताने के बाद शेखचिल्ली ने एक दिन अपने ससुर से कोई कारोबार करने की इच्छा जताई। उसकी बात सुनकर उसके ससुर ने उसे जंगल से लकड़ियां लाकर व्यापार करने के लिए एक बैलगाड़ी खरीद कर दी। शेखचिल्ली जब लकड़ियां लेने के लिए जंगल जाने लगा तो रास्ते में उसकी बैलगाड़ी के पहिए से घर्षण की आवाज आने लगी। उसे लगा कि पहले ही दिन बैलगाड़ी आवाज कर रही है तो यह जरूर कुछ बुरा होगा। इसलिए उसने अपने आरी से बैलगाड़ी के पहियों को काटकर फेंक दिया और पैदल जंगल की ओर चल पड़ा।

जंगल में शेखचिल्ली ने काटने के लिए मोटे पेड़ को चुना। पेड़ के तने भी काफी मोटे-मोटे थे तो उसे काटने के लिए वह पेड़ के ऊपर चढ़ गया। अपनी मूर्खता की वजह से वह जिस डाल पर बैठा था उसे ही काटने लगा। इतने में एक बुजुर्ग शख्स जो जंगल के रास्ते से गुजर रहा था, शेखचिल्ली को देखकर रूक गया। उसने उसे आवाज देते हुए कहा कि वह डाल को न काटे वरना वह भी नीचे गिर जाएगा। शेख ने उस आदमी की बात को सुनकर भी अनसुना कर दिया और जोर-जोर से डाल काटने लगा। कुछ देर बाद डाल के साथ वह भी जमीन पर गिर गया।

शेखचिल्ली को लगा कि वह बुजुर्ग जरूर कोई अंतर्यामी है जिसे भविष्य दिखाई देता है। उसने बुजुर्ग से पूछा कि क्या आप मुझे बता सकते हैं कि मेरी मौत कब होगी? उस बुजुर्ग ने शेख को बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन जब उसे लगा कि वह ऐसे पीछा नहीं छोड़ेगा, तो उसने पीछा छुड़ाने के लिए उससे कहा कि ‘तेरे भाग्य में आज शाम को ही मरना लिखा है।’

बुजुर्ग की बात सुनकर शेखचिल्ली डर गया और सोचने लगा कि अगर आज शाम को मुझे मरना ही है तो क्यों ना मैं पहले ही अपने लिए कब्र खोद लूं और मौत का इंतजार करूं। ऐसा सोचकर उसने जंगल में ही एक बड़ा सा गड्ढा खोद लिया और उसमें लेटकर शाम होने का इंतजार करने लगा। इतने में शेखचिल्ली को वहां से एक शख्स गुजरता दिखाई दिया जिसके हाथ में एक बड़ा सा मटका था। वह आदमी आवाज लगाते जा रहा था कि अगर कोई व्यक्ति मटके को उसके घर तक पहुंचा देगा तो वह उसे पैसे देगा।

शख्स की आवाज सुनकर शेखचिल्ली जल्दी से गड्ढे से बाहर निकला और उससे कहा कि वह मटके को उसके घर तक छोड़ देगा। उस व्यक्ति ने भी मटका शेख को पकड़ा दिया और दोनों जंगल से बाहर निकलने लगे। मटके को सिर पर उठाए शेखचिल्ली सोचने लगा कि इस मटके को शख्स के घर पहुंचाने के बाद अगर उसे 1 पैसा भी मिलता है, तो वह उससे एक अंडा खरीदेगा।

शेखचिल्ली सोचने लगा कि उस एक अंडे से मुर्गी पैदा होगी और मुर्गी जो अंडे देगी उससे दर्जनों अंडे फिर दर्जनों मुर्गियां होंगी। उन्हें बेचकर वह एक बकरी खरीद लेगा। बकरी दूध के साथ-साथ कई बकरियों को पैदा करेगी, जिन्हें बेचकर वह एक गाय खरीद लेगा और एक गाय से उसके पास दर्जनों गाय हो जाएंगी। शेखचिल्ली ने अपने ख्यालों में ही गायों को बेचकर घोड़े खरीदने और फिर उन्हें बेचकर मिले रुपए से मकान बनाने की योजना बना ली।

शेखचिल्ली सोचने लगा, “मैं घोड़े पर सवार होकर बड़े ठाठ से नगर की सैर करूंगा। हमारे नए घर में मैं और मेरी पत्नी और हमारे हमारे बच्चे रहेंगे। मैं ठाठ से घर के आंगन में बैठकर हुक्का पिउंगा और बच्चे जब मुझे खाना खाने के लिए बुलाएंगे तो मैं ना में सिर हिला दूंगा।” अपने ख्यालों की दुनिया में ही खोए शेखचिल्ली ने जैसे ही ना करते हुए जोर से सिर हिलाया मटका उसके सिर से जमीन पर गिरकर टूट गया। मटके के टूटते ही उसके अंदर का सारा सामान मिट्टी में बिखर गया। यह देखकर उस व्यक्ति को बहुत गुस्सा आया और उसने शेख को खूब भला बुरा कहा और बिना पैसे दिए वहां से चला गया। शेखचिल्ली काफी देर तक सिर पकड़े जमीन पर टूटे मटके को देखते हुए अपने टूटे सपने के बारे में सोचता रहा।

कहानी से सीख

कभी भी किसी चीज के लालच में आकर ख्याली पुलाव नहीं पकाने चाहिए। किसी चीज को पाने का लालच और मेहनत न करने से कुछ हासिल नहीं होता, बल्कि उल्टा और नुकसान ही होता है।

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