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सुपर पापा थे तब ये मेरे।

ना चाहते हुए भी धीरे धीरे उनसे लगाव कम होता जा रहा है। मैं चाहता हूँ कुछ देर बैठूँ उनसे बातें करूँ पर वो एक ही बात की रट लगाने लग जाते हैं। उन्हें लगता है मैंने सुना नहीं। सुनाई उन्हें कम देता है तो मुझे भी कुछ कहने के लिए जोर से बोलना पड़ता है या एक ही बात को दस बार। मैं चिड़चिड़ा हो जाता हूँ उस वक़्त। इसलिए मैं बचने लगा हूँ उनसे।चाहता हूँ कि उनसे कम ही बात करनी पड़े।वैसे अब वो भी माँ के जाने के बाद थोड़ा गुमसुम ही रहने लगे हैं।
इधर कुछ महीनों से मैं सिर्फ सुबह शाम एकबार देख आता हूँ उनके कमरे में। बीमार रहने लगे हैं अब। कमरे से बदबू भी आती है।एक लड़का रख रखा है हमने देख भाल करने के लिए। आज लड़का देर से आएगा। उसने अपने लिए एक पुरानी जैकेट मांगी है। वही ढूंढ रहा था तो आलमारी से बचपन की सुनहरी यादें गिर पड़ी, जिसे मैं पलटता चला गया..और उस एलबम का हर पन्ना मुझे कचोटता।
पापा के घर आते हीं ना जाने कितने सवाल रहते थे मेरे पास।थके रहते थे वे, पर खीजते नहीं थे। सुनते थे, जवाब देते थे।मेरे साथ खेलते थे, मुझे हँसाते थे। सुपर पापा थे तब ये मेरे।
ना जाने कितनी बार मुझे खुद से नहलाया होगा, मेरी गंदगी साफ की होगी। जब भी बीमार पड़ा मैं तो ये रात भर सो नहीं पाते थे।
जब पहली बार मेरे लिए इन्होंने बाइक ली थी और सीखते वक़्त मेरे माथे में चोट आ गई थी 4 टाँके आये थे तो अपने सुपर पापा की आँखों में पहली बार आँसू देखे थे। हाथ माथे के टांको के निशान पर अनायास ही पहुच गया था,बो घाव फिर हरा हो गया था, आंखे आँसुओ से भर आईं थी गला रुंध सा गया था
पूरी एलबम भी पलट ना सका मैं और तेज कदमों से पापा के कमरे में चला आया। पापा शायद बहुत देर से अपने गीले हो चुके कपड़ों के साथ उठने की कोशिश कर रहे थे। मुझे देख एक गुनहगार की तरह सहम गए। मैं जाकर उनसे लिपट गया।
“कोई बात नहीं पापा! मैं हूँ ना, अभी चेंज कर देता हूँ”
“नहीं.. नहीं तुम कैसे..करोगे..बेटे..”
“क्यूँ पापा! आप करते थे ना जब मैं बच्चा था…अब आप..मेरे बच्चे हैं..!”

मिटने वाले घाव

इनकी सारी संपत्ति जला दी गई थी और वह सड़क पर आ गए थे..!!
फिर भी इन्होंने आशा नही खोई और फिर से अपना जीवन शुरू किया। स्वाभिमानी है…उन्होंने किसी से विनती नहीं की कभी किसी के आगे हाथ नही फ़ैलाया..!!
वह लैंप बेचने के लिए प्रतिदिन 20-25 किमी पैदल घूमते है जिससे वह 300 से 500 रुपये कमाते है,और इतनी कमाई से संतुष्ट है…इन्होंने कभी सरकार से या किसी से भी मदद नहीं मांगी..!!
पता नहीं हम सभी अन्दाजा भी नहीं लगा सकते इस मुस्कान के पीछे छुपे दर्द का, कभी न मिटने वाले घावों का…न जाने कितने लोग इनकी तरह अपनी मिट्टी अपने घर परिवार को खोने का दर्द लिये यूँ ही मुस्कुरा कर रोज काम पर निकलते है..😥

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