“यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को |” चौंके सब सुनकर अटल कैकेयी स्वर को | सबने रानी की ओर अचानक देखा, बैधव्य-तुषारावृता यथा विधु-लेखा | बैठी थी अचल तथापि असंख्यतरंगा , वह सिंही अब थी हहा ! गौमुखी गंगा — “हाँ, जनकर भी मैंने न भारत को जाना , सब सुन लें,तुमने स्वयं अभी …
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