कहे कृष्ण मोरधुज राजा,तुम सब भक्तन सिर ताजा , साधुन का वेश बनाये ,हम द्वार तुमारे आये जी,संग में बन सिंघ बिराजा , हम भोजन हट में कीना ,सुत बदन काट तुमदीनाजी,निज धर्म बचन के काजा , सब रुदन करे नरनारी ,तुम धीरज मन मेंधारीजी,सब तजी जगत की लाजा, यह देख भक्ति व्रत तेरा,अति हर्ष भया मन मेराजी,ब्रह्मानन्द सबी दुख …
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