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कितना अजीब मोहन किस्मत का लेख मेरा

घणी दूर से दोड़्यो थारी गाडुली के लार

कितना अजीब मोहन किस्मत का लेख मेरा,जो कुछ भी हो रहा है,उस में हाथ तेरा,कितना अजीब मोहन किस्मत का लेख मेरा, हारे थे हारते थे का हारते रहे गये,खामोश है कन्हिया कुछ भी न कहे गये,किस से कहू हे मोहन कोई न जग में मेरा,कितना अजीब मोहन किस्मत का लेख मेरा, हिस्कोले खाते खाते सेहना तुमसे ही सिखा,अब तो लगे …

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