जाना था गंगा पर प्रभु केवट की नाव चड़े, (2)अवध छोड़ प्रभु वन को आई, सिया राम लखन गंगा तट आई, केवट मान ही मान हरषाए, घर बैठे परभु दर्शन पे, हाथ जोड़ कर प्रभु के आयेज केवट मगन खड़े प्रभु बोले तुम नाव चलाओ, पर हमे केवट पहुचाओ, केवट कहता सुनो हमारी चरण धूल की माया भारी, मैं ग़रीब …
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