जब से गये मेरे मोहन परदेश में।तब से रहती हूँ पगली के वेश में॥कभी नींद न आये,कभी नैना भर आये।क्या मानू समझ लीजिए,मेरे कान्हा को मुझसे मिला दीजिये।वो वंशी की धुन फिर सुना दीजिये॥ गालियां ये हो गई सुनी,सुना अँगनवा,कान्हा नही है आते,आवे सपनवा।कभी वंशी बजाए,कभी माखन चुराए॥बस यादे समझ लीजिए,मेरे कान्हा को मुझसे मिला दीजिये।वो वंशी की धुन फिर …
Read More »