ना मंदिर न मस्जिद जानू ना जानू गुरुद्वारास्वर्ग से सुंदर लगता है घर में तीर्थ सारा,मनका भ्रम निकालो अब तो माटी के इंसान हैजिसने हम को जन्म दियां वही मेरी भगवान है,चल चल चल ओ साथी चल बाहर तो है अनंत दिखावा है स्वार्थ की नगरीमात पिता का सेवा ही है बस अमृत की गगरीना कुछ तेरा ना कुछ मेरा …
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