हरि मोहे पार लगावोपार लगावो भव से हरि मोहेहरि मोहे पार लगावोपार लगावो भव से….., चंचल चित मोरा उड़त फिरत हैबाँधन चाहूँ नाहि बँधत हैहो साँई हो साँई,मोरा जियरा छुड़ावो भव सेपार लगावो…., भाँति भाँति की रस्सी बनाकरबाँधा इन्द्रियों ने भरमाकरहो साँई हो साँईमेरा बंधन काँटो भव सेपार लगावो…, तुम सच्चे गुरु समरथ स्वामीमैँ मूरख कामी अज्ञानीहो साँई….हो साँई….मोहे डूबता …
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