तीनो लोको के स्वामी सुधबुद्ध खोकर दौड़े चले जा रहे थे, पीछे पीछे रुक्मिणी, जाम्बवती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रबिन्दा, सत्या, लक्ष्मणा और भद्रा भी पागल सी दौड़ रही है, ये कौन आ गया जिसके लिए प्रभु श्री कृष्ण दौड़ रहे है | मंत्री, सेनापति, द्वारपाल सब जड़ होकर खड़े है, ऊपर ब्रह्मा जी , कैलाशपति, बृहस्पति, देवराज इंद्र, सूर्य, चन्द्र, यम,शनि …
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सुदामा का सत्कार
सुदामा नाम के एक ब्राह्मण श्रीकृष्ण के परम मित्र थे। उन्होंने श्री कृष्ण के साथ गुरुकुल में शिक्षा पायी थी। वे ग्रहस्थ होने पर भी संग्रह- परिग्रह से दूर रहते हुए प्रारब्ध के अनुसार जो कुछ भी मिल जाता उसी में संतुष्ट रहते थे। भगवान की उपसना और भिक्षाटन यही उनकी दिनचर्या थी। उनकी पत्नी परम पतिव्रता और अपने पति के साथ हर अवस्था में सतुष्ट रहने वाली थी। एक दिन दु:खिनी पतिव्रता भूख से कांपते हुए अपने पति के पास गयी और बोली
Read More »श्रीराधिका जी का उद्धव को उपदेश
गोपियों के अद्भुत प्रेम – प्रवाह में ज्ञानशिरोमणि उद्धव का संपूर्ण ज्ञानभिमान बह गया । विवेक, वैराग्य, विचार, धर्म, नीति, योग, जप और ध्यान आदि संपूर्ण संबल के सहित उसकी ज्ञान नौका गोपियों के प्रेम समुद्र में डूब गयी । उद्धव गोपियों का मोह दूर करने आया था किंतु वह स्वयं ही उनके (दिव्य) मोह में मग्न हो गया …
Read More »मोक्ष संन्यासिनी गोपियां
कुछ लोग प्रतिदिन सकामोपासना कर मनवाञ्छित फल चाहते हैं, दूसरे कुछ लोग यज्ञादि के द्वारा स्वर्ग की तथा (कर्म और ज्ञान) योग आदि के द्वारा मुक्ति के लिए पार्थना करते हैं, परंतु हमें तो यदुनंदन श्रीकृष्ण के चरणयुगलों के ध्यान में ही सावधानी के साथ लगे रहने की इच्छा है । हमें उत्तम लोक से, दम से, राजा से, स्वर्ग …
Read More »भीष्मपितामह – आदर्श चरित्र
भक्तराज भीष्मपितामह महाराज शांतनु के औरस पुत्र थे और गंगादेवी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । वसिष्ठ ऋषि के शाप से आठों वसुओं ने मनुष्योनि में अवतार लिया था, जिनमें सात को तो गंगा जी ने जन्मते ही जल के प्रवाह में बहाकर शाप से छुड़ा दिया । ‘द्यौ’ नामक वसु के अंशावतार भीष्म को राजा शांतनु ने रख …
Read More »दरिद्रा कहां – कहां रहती है ?
समुद्र मंथन के समय हलाहल के निकलने के पश्चात् दरिद्रा की, तत्पश्चात् लक्ष्मी जी की उत्पत्ति हुई । इसलिए दरिद्रा को ज्येष्ठ भी कहते हैं । ज्येष्ठा का विवाह दु:सह ब्राह्मण के साथ हुआ । विवाह के बाद दु:सह मुनि अपनी पत्नी के साथ विचरण करने लगे । जिस देश में भगवान का उद्घोष होता, होम होता, वेदपाठ होता, …
Read More »चक्रपाणि
इस अपार पयोधि की अनन्त उत्ताल तरंगों में अनिलानल में, नक्षत्रपूर्ण नीलाकाश में, मधुर ज्योत्स्नामय सुधाकर में, उद्दीप्त प्रखर ज्योतिमान सूर्य में चक्रपाणि का दर्शन हो रहा है । अनन्त सौंदर्य के अधिष्ठातृ देव भगवान कमललोचन शांतरूपेण विराजमान हैं । भू:, भुव:, स्व: आदि सप्तलोक महाप्रभु की एक अंगुली पर भ्रमित चक्रपर घुम रहे हैं । मृत्युलोकवासी अपनी भाषा …
Read More »श्रीकृष्ण और भावी जगत
मनुष्य को आदि से सुख और शांति की खोज रही है और अंत तक रहेगी । मानव सभ्यता का इतिहास इसी खोज की कथा है । जिस जाति ने इस रहस्य को जितना अधिक समझा वह उतनी ही सभ्य, जितना ही कम समझा उतनी ही असभ्य समझी जाती है । लोग भिन्न भिन्न मार्गों से चले । किसी ने योग …
Read More »आखिर क्यों लगाया जाता है भगवान को 56 भोग
भगवान को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे कई रोचक कथाएं हैं। हिन्दू मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण एक दिन में आठ बार भोजन करते थे। जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया। …
Read More »भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा
✨ जगन्नाथ रथयात्रा भारत में मनाए जाने वाले धार्मिक महामहोत्सवों में सबसे प्रमुख तथा महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। यह रथयात्रा न केवल भारत बल्कि विदेशों से आने वाले पर्यटकों के लिए भी ख़ासी दिलचस्पी और आकर्षण का केंद्र बनती है। भगवान श्रीकृष्ण के अवतार जगन्नाथ की रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना जाता है। सागर तट पर …
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