भगवान के जन्म – कर्म की दिव्यता एक अलौकिक और रहस्यमय विषय है, इसके तत्त्व को वास्तव में तो भगवान ही जानते है अथवा यत्किंचित उनके वे भक्त जानते हैं, जिनको उनकी दिव्य मूर्ति का प्रत्यक्ष दर्शन हुआ हो, परंतु वे भी जैसा जानते हैं कदाचित वैसा कह नहीं सकते । जब एक साधारण विषय को भी मनुष्य जिस प्रकार …
Read More »Tag Archives: bhagavaan
श्रीराम जी और श्रीकृष्ण जी
श्रीसूत जी ने श्रीमद्भागवत में कहा है – ‘एते चांशकला: पुंस: कृष्णस्तु भगवान्स्वयम्’ इस वचन से यह स्पष्ट होता है कि भगवान ने यदि अपने किसी अवतार में अपने भगवान होने को साफ – साफ प्रकट किया है तो वह केवल श्रीकृष्णावतार में । अन्य अवतारों में उन्होंने इस भेद को इस प्रकार नहीं खोला । कहा जा सकता है …
Read More »भगवान कौन है ? (Who is God?)
प्राय: यह प्रश्न किया जाता है – भगवान कौन है ? और यह भगवान कहां रहता है ? गीता में कृष्ण ने कहा है – ‘मन की आंखें खोलकर देख, तू मुझे अपने भीतर ही पाएगा’ । भगवान कण – कण में व्याप्त हैं । ‘भगवान’ नाम कब प्रारंभ हुआ ? किसने यह नाम दिया, यह कोई नहीं जानता । …
Read More »कृष्णदर्शन – भगवान शिव के अवतार
श्राद्धदेव नामक मनु के सबसे छोटे पुत्र का नाम नभग था । भगवान शिव ने उन्हें ज्ञान प्रदान किया था । मनुपुत्र नभग बड़े ही बुद्धिमान थे । जिस समय नभग गुरुकुल में निवास कर रहे थे उसी बीच उनके इक्ष्वाकु आदि भाईयों ने नभग लिए कोई भाग न देकर पिता की सारी संपत्ति आपस में बांट ली और अपना …
Read More »पूजा में यंत्रों का महत्त्व क्यों ?
यंत्र का तात्पर्य चेतना अथवा सजगता को धारण करने का माध्यम या उपादान है । ये ज्यामितीय आकृतियों के होते हैं, जो त्रिभुज, अधोमुखी, त्रिभुज, वृत्त, वर्ग, पंचकोण, षटकोणीय आदि आकृतियों के होते हैं । मंडल का अर्थ वर्तुलाकर आकृति होता है, जो ब्रह्मंडीय शक्तियों से आवेशित होती है । यंत्र की नित्य पूजा उपासना और दर्शन से व्यक्ति को …
Read More »देव प्रतिमा निर्माण विधि
सूत जी बोले – ब्राह्मणों ! मैं प्रतिमा का शास्त्रसम्मत लक्षण कहता हूं । उत्तम लक्षणों से रहित प्रतिमा का पूजन नहीं करना चाहिए । पाषाण, काष्ठ, मृत्ति का, रत्न, ताम्र एवं अन्य धातु इनमें से किसी की भी प्रतिमा बनायी जा सकती है । उनके पूजन से सभी अभीष्ट फल प्राप्त होते हैं । मंदिर के माप …
Read More »इंद्र का गर्व – भंग
शचीपति देवराज इंद्र कोई साधारण व्यक्ति नहीं, एक मन्वंतरपर्यन्त रहनेवाले स्वर्ग के अधिपति हैं । घड़ी – घंटों के लिए जो किसी देश का प्रधान मंत्री बन जाता है, उसके नाम से लोग घबराते हैं, फिर जिसे एकहत्तर दिव्य युगों तक अप्रतिहत दिव्य भोगों का साम्राज्य प्राप्त है, उसे गर्व होना तो स्वाभाविक है ही । इसलिए इनके गर्व भंग …
Read More »मैं तो कृष्ण हो गया !
भगवान ! मेरा उद्धार करो ! मेरी नौका पार लगाओ । मेरे पापों के बोझ से बस, यह डूबना ही चाहती है । बड़ी जीर्ण है यह, और फिर ऊपर से बोझ बेतौल है । विपरीत बयार बह रही है, चारों और घोर अंधकार छाया हुआ है, हाथों हाथ नहीं सूझता । खेने की कला भी नहीं मालूम । …
Read More »पाण्डव अर्जुन और कृष्ण मैत्री
महाभारत में पाण्डव विजयी हुए । छावनी के पास पहुंचने पर श्रीकृष्णने अर्जुन से कहा कि ‘हे भरतश्रेष्ठ ! तू अपने गाण्डीव धनुष और दोनों अक्षय भाथों को लेकर पहले रथ से नीचे उतर जा । मैं पीछे उतरूंगा, इसी में तेरा कल्याण है ।’ यह आज नयी बात थी, परंतु अर्जुन भगवान के आज्ञानुसार नीचे उतर गये, तब …
Read More »मोक्ष संन्यासिनी गोपियां
कुछ लोग प्रतिदिन सकामोपासना कर मनवाञ्छित फल चाहते हैं, दूसरे कुछ लोग यज्ञादि के द्वारा स्वर्ग की तथा (कर्म और ज्ञान) योग आदि के द्वारा मुक्ति के लिए पार्थना करते हैं, परंतु हमें तो यदुनंदन श्रीकृष्ण के चरणयुगलों के ध्यान में ही सावधानी के साथ लगे रहने की इच्छा है । हमें उत्तम लोक से, दम से, राजा से, स्वर्ग …
Read More »