श्रीसूत जी बोले – मुनियो ! अब मैं कल्प के अनुसार सैकड़ों मन्वंतरों के अनुगत ईश्वर संबंधी कालचक्र का वर्णन करता हूं । सृष्टि के पूर्व यह सब अप्रतिज्ञात स्वरूप था । उस समय परम कारण, व्यापक एकमात्र रुद्र ही अवस्थित थे । सर्वव्यापक भगवान ने आत्मस्वरूप में स्थित होकर सर्वप्रथम मन की सृष्टि की । फिर अंहकार …
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शिव और सती
सिव सम को रघुपति ब्रतधारी । बिनु अघ तजी सती असि नारी ।। भगवान शिव और माता सती देवी की असीम महिमा बड़े ही सुंदर ढंग से प्रतिपादित की है । भगवान शिव के लिए है क्योंकि संसार में सब धर्मों का सार, सब तत्त्वों का निचोड़ भगवत्प्रेम ही निश्चय किया गया है । भगवान परब्रह्म में दृढ़ निष्ठा …
Read More »रक्षक प्रभु
इन्द्र से वरदान में प्राप्त एक अमोघ शक्ति कर्ण के पास थी । इन्द्र का कहा हुआ था कि इस शक्ति को तू प्राणसंकट में पड़कर एक बार जिस पर भी छोड़ेगा, उसी की मृत्यु हो जाएंगी, परंतु एक बार से अधिक इसका प्रयोग नहीं हो सकेगा । कर्ण ने वह शक्ति अर्जुन को मारने के लिए रख छोड़ी …
Read More »मूर्ति पूजन का तात्पर्य
स्वामी विवेकानंद की ख्याति दिन प्रतिदिन फैलती रही । उनका गुणगान सुनकर अलवर राज्य के दीवान महोदय ने उन्हें अपने घर बुलाया । स्वामी जी का सत्संग करके दीवान जी ने अपना महोभाग्य माना । दूसरे दिन दीवान जी ने महाराज से इनके बारे में एक पत्र लिखकर चर्चा की । महाराज उस समय अलवर से दो मील दूरी पर …
Read More »कीड़े से महर्षि मैत्रेय
भगवान व्यास सभी जीवों की गति तथा भाषा को समझते थे । एक बार जब वे कहीं जा रहे थे तब रास्ते में उन्होंने एक कीड़े को बड़े वेग से भागते हुए देखा । उन्होंने कृपा करके कीड़े की बोली में ही उससे इस प्रकार भागने का कारण पूछा । कीड़े ने कहा – ‘विश्ववंध मुनीश्वर ! कोई बहुत बड़ी …
Read More »भगवान श्रीकृष्ण और भावी संसार
भरतखण्ड का इतिहास महाभारत की ही शाखा है । महाभारत का अर्थ है महान भारतवर्ष । हमलोग भारतवर्ष को महान देखना चाहते हैं । महाभारत के समय से ही धर्मराज्य की स्थापना के लिये संग्राम जारी है । भगवान श्रीकृष्ण का जिस समय अवतार हुआ, उस समय यह संग्राम जोरों पर था । भगवान श्रीकृष्ण का अवतार एक विशेष …
Read More »देवी षष्ठी की कथा
प्रियव्रत नाम से प्रसिद्ध एक राजा हो चुके हैं । उनके पिता का नाम था स्वायम्भुव मनु । प्रियव्रत योगिराज होने के कारण विवाह करना नहीं चाहते थे । तपस्या में उनकी विशेष रुचि थी, परंतु ब्रह्मा जी की आज्ञा तथा सत्प्रयत्न के प्रभाव से उन्होंने विवाह कर लिया । विवाह के पश्चात् सुदीर्घकाल तक उन्हें कोई भी संतान नहीं …
Read More »श्रीकृष्ण और भावी जगत
मनुष्य को आदि से सुख और शांति की खोज रही है और अंत तक रहेगी । मानव सभ्यता का इतिहास इसी खोज की कथा है । जिस जाति ने इस रहस्य को जितना अधिक समझा वह उतनी ही सभ्य, जितना ही कम समझा उतनी ही असभ्य समझी जाती है । लोग भिन्न भिन्न मार्गों से चले । किसी ने योग …
Read More »द्वादश ज्योतिर्लिंगों के अर्चा विग्रह – 4) श्री ओंकारेश्वर या ममलेश्वर
भगवान शिव का यह परम पवित्र विग्रह मालवा प्रांत में नर्मदा नदी के तट पर अवस्थित है । यहीं मांधाता पर्वत के ऊपर देवाधि देव शिव ओंकारेश्वर रूप में विराजमान हैं । शिवपुराण में श्रीओंकारेश्वर तथा श्रीअमलेश्वर के दर्शन का अत्यंत माहात्म्य वर्णित है । प्रसिद्ध सूर्यवंशीय राजा मांधाता ने, जिनके पुत्र अबरीष और मुचुकुंद दोनों प्रसिद्ध भगवद्भक्त हो गये …
Read More »एक बार भगवान नारायण अपने वैकुंठलोक में सोये हुए थे
एक बार भगवान नारायण अपने वैकुंठलोक में सोये हुए थे। स्वप्न में वे क्या देखते हैं कि करोड़ों चंद्रमाओं की कांतिवाले, त्रिशूल-डमरूधारी, स्वर्णाभरण-भूषित, सुरेंद्र वंदित, अणिमादि सिद्धिसेवित त्रिलोचन भगवान शिव प्रेम और आनंदातिरेक से उन्मत्त होकर उनके सामने नृत्य कर रहे हैं। उन्हें देखकर भगवान विष्णु हर्ष-गद्गद हो सहसा शय्या पर उठकर बैठा गए और कुछ देर तक ध्यानस्थ बैठे …
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