महाभारत में एक कथा है, जो सच्ची दानवीरता की मिसाल है। एक बार की बात है कुरु युवराज दुर्योधन के महल के द्वार पर एक भिक्षुक आया और दुर्योधन से बोला- राजन, मैं अपनी वृद्धावस्था से बहुत परेशान हूं। चारों धाम की यात्रा करने का प्रबल इच्छुक हुं, जो युवावस्था के ऊर्जावान शरीर के बिना संभव नहीं है। इसलिए आप …
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शिव जी का किरात वेष में प्रकट होना
इंद्र के उपदेश तथा व्यास जी की आज्ञा से अर्जुन भगवान महेश्वर की आराधना करने लगे । उनकी उपासना से ऐसा उत्कृष्ट तेज प्रकट हुआ, जिससे देवगण विस्मिल हो गये । वे शिव जी के पास गये और बोले – ‘प्रभो ! एक मनुष्य आपकी तपस्या में निरत है । वह जो कुछ चाहता है, उसे आप प्रदान करें ।’ …
Read More »सब से ऊँची प्रेम सगाई
सब से ऊँची प्रेम सगाई दुर्योधन की मेवा त्यागी, साग विदुर घर पाई जूते फल सबरी के खाए, बहू विधि प्रेम बधाई प्रेम के बस नृिप सेवा कीन्ई, आप बने हरी नाई राजसूया यगना युधिष्ठिर कीनो, तामे जूत उठाई प्रेम के बस अर्जुन रात हांकयो भूल गये ठाकुरई ऐसी प्रीति बढ़ी, वृंडाबन गोपीन नाच नाचाई सूर बानी एही लायक नाहीं, …
Read More »यही हरि भक्त कहते हैं
यही हरि भक्त कहते हैं, यही सद्ग्रन्थ गाते हैं । कि जाने कौन से गुण पर, दयानिधि रीझ जाते हैं । नहीं स्वीकार करते हैं, निमंत्रण नृप दुर्योधन का । विदुर के घर पहुंचकर, भोग छिलकों का लगाते हैं । न आये मधुपुरी से गोपियों की, दुख कथा सुनकर । द्रुपदजी की दशा पर, द्वारका से दौड़े आते हैं । …
Read More »द्रौपदी और भीष्मपितामह
महाभारत का युद्ध चल रहा था। भीष्मपितामह अर्जुन के बाणों से घायल हो बाणों से ही बनी हुई एक शय्या पर पड़े हुए थे। कौरव और पांडव दल के लोग प्रतिदिन उनसे मिलना जाया करते थे। एक दिन का प्रसंग है कि पांचों भाई और द्रौपदी चारो तरफ बैठे थे और पितामह उन्हें उपदेश दे रहे थे। सभी श्रद्धापूर्वक उनके उपदेशों …
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