साँच बराबरि तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदै साँच है ताकै हृदय आप॥ सच्चाई के बराबर कोई तपस्या नहीं है, झूठ (मिथ्या आचरण) के बराबर कोई पाप कर्म नहीं है। जिसके हृदय में सच्चाई है उसी के हृदय में भगवान निवास करते हैं। साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ‘सत्येन धारयते जगत् ।’ अर्थात् सत्य ही जगत को धारण …
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मिट्टी का खिलौना !!
एक गांव में एक कुम्हार रहता था, वो मिट्टी के बर्तन व खिलौने बनाया करता था, और उसे शहर जाकर बेचा करता था। जैसे तैसे उसका गुजारा चल रहा था, एक दिन उसकी बीवी बोली कि अब यह मिट्टी के खिलोने और बर्तन बनाना बंद करो और शहर जाकर कोई नौकरी ही कर लो, क्यूँकी इसे बनाने से हमारा गुजारा …
Read More »बुद्धिहीन सेवक !!
किसी शहर में एक सेठ रहता था । किसी कारणवश उस बेचारे को अपने कारोबार में घाटा पड़ गया और वह गरीब हो गया । गरीब होने का उसे बहुत दुख हुआ था । इस दुख से तंग जाकर उसने सोचा कि इस जीवन से क्या लाभ? इससे तो मर जाना अच्छा है । यह सोचकर एक रात को वह …
Read More »राजाज्ञा और नैतिकता !!
औषधियों की खोजबीन में राजवैद्य चरक मुनि जंगलों में घूम रहे थे। उन्हें जिस औषधि की तलाश थी, वह जंगल में कहीं भी नजर नहीं आ रही थी। तभी उनकी दृष्टि एक खेत में उगे सुन्दर पुष्प पर पड़ी। उन्होंने सहस्रों पुष्पों के गुण-दोषों की जांच की थी, परन्तु यह तो कोई नए प्रकार का ही पुष्प था। उनका मन …
Read More »अनूठे पंडित !!
चंद्रनगर में एक विद्वान् रहा करते थे। वे कहते थे, ‘विद्या से बड़ा धन दूसरा नहीं। विद्यावान की सर्वत्र पूजा होती है।’ पंडितजी के तीन पुत्र थे। तीनों ने कड़ी मेहनत से शास्त्रों का अध्ययन किया बड़ा पुत्र आयुर्वेद का प्रकांड विद्वान् बन गया, जबकि दूसरा धर्मशास्त्रों का और तीसरा नीतिशास्त्र का विद्वान् बना। तीनों ने एक-एक ग्रंथ की रचना …
Read More »राजा और फकीर !!
विरक्त संत एकांत में भगवान् की भक्ति-साधना में मस्त रहते हैं। एक बार संत कवि कुंभनदास को एक बादशाह ने अपने महल में आने के लिए बुलावा भेजा। संत ने कागज पर लिखकर दिया, ‘संतन कहा सीकरी सो काम, आवत जात पन्हैया टूटे-बिसर जाए हरिनाम।’ यानी मुझे राजा व उसके महल से क्या लेना-देना है। वन का एकांत छोड़कर वहाँ …
Read More »दुःख ही दुःख है !!
हेलो दोस्तों जैसा की हम जानते हैं, कि दुख हम सब की लाइफ में है और कोई भी दुखी नहीं होना चाहता है। हम सब चाहते हैं, कि अपने जीवन में हम सुखी रहे और आजकल जिसे देखो वह केवल अपने दुख की बात करता है। लेकिन कोई अपने आर्थिक दुख की बात करता है, तो कोई अपने परिवारिक दुख की …
Read More »मन के जीते जीत !!
भारतीय संस्कृति में शुद्धता-पवित्रता को सर्वोपरि महत्त्व दिया गया है। कहा भी गया है, ‘अद्विशात्राणि शुध्यति मनः सत्येन शुध्यति विद्यातपोभ्यां भूतात्मा बूद्धिज्ञनित शुध्यति ।’ यानी जल से स्नान करने से शरीर, सत्याचरण से मन, विद्या और तप से आत्मा तथा ज्ञान से बुद्धि की शुद्धि होती है। शास्त्रकार कहते हैं, ‘स्व मनो विशुद्धिम्तीर्थं अरथत् अपना विशुद्ध मन सर्वोपरि तीर्थ है। …
Read More »दया धर्म का मूल !!
महाराज युधिष्ठिर समय-समय पर ऋषियों के आश्रम में पहुँचकर उनसे सत्संग किया करते थे। एक बार वे महर्षि मार्कण्डेयजी के दर्शन के लिए पहुंचे। उन्होंने महामुनि से प्रश्न किया, ‘सर्वोत्तम धर्म और सर्वोत्तम ज्ञान क्या है?’ महर्षि ने बताया, ‘आनृशंस्यं परो धर्मः क्षमा च परमं बलम्। आत्मज्ञानं परं ज्ञानं सत्यं व्रत परं व्रतम्।’ यानी क्रूरता का अभाव अर्थात् दया सबसे …
Read More »भक्त की कसौटी !!
एक बार अर्जुन ने भगवान् श्रीकृष्ण से प्रश्न किया, ‘आपको किन-किन सद्गुणों वाला भक्त प्रिय है?’ श्रीकृष्ण ने बताया, ‘जो किसी प्राणी से द्वेष नहीं करता, सबसे सद्भाव व मैत्री भाव रखता है, सब पर करुणा करता है, क्षमाशील है, ममता और अहंकार से रहित है, सुख-दुःख में एक समान रहता है, वह भक्त मुझे प्रिय है।’ ‘स्वर्ग के अधिकारी …
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