कभी फ़ुर्सत हो तो जगदंबे, निर्धन के घर भी आ जाना, जो रूखा- सूखा दिया है मा, कभी उसका भोग लगा जाना, ना च्चात्रा बनाया सोने का, ना चुनरी घर मेी तारो जड़ी, ना पेड़ा, बरफी, मेवा है, श्रद्धा से नैन बिच्छाए रखी, ना च्चात्रा बनाया सोने का, ना चुनरी …
Read More »