कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार,मोहे चाकर समज निहारकान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार, तू जिसे चाहे वैसी नही मैंहां तेरी राधा जैसी नही मैंफिर भी हु कैसी कैसी नही मैंकृष्णा मोहे देख ले इक बारकान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार, बूंद ही बूंद मैं प्यार की चुन करप्यासी रही परलाई हु गिरधरटूट ही जाए आस की …
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