स्वामी विवेकानंद को विदेश जाने से पहले एक बार खेतड़ी (राजस्थान) जाना पड़ा क्योंकि वहां के महाराजा की कोई संतान नहीं थी और स्वामीजी के आशीर्वाद से पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी। इसी की खुशी में एक उत्सव मनाया जा रहा था। दरबार में कई सामंत, प्रजाजन और कलाकार उपस्थित थे। कार्यक्रम के आखिरी में एक गणिका (वेश्या) अपना नृत्य …
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इसीलिए कहते हैं मां होती है दुनिया में महान
एक बार एक जिज्ञासु व्यक्ति ने स्वामी विवेकानंद से पूछा, ‘संसार में मां की महानता क्यों गाई जाती है?’ स्वामीजी ने मुस्कुराते हुए कहा, पांच सेर का एक पत्थर ले आओ। जब वह व्यक्ति पत्थर ले आया, तो स्वामीजी ने उससे कहा, ‘इसे कपड़े से लपेट कर पेट पर बांध लो और चौबीस घंटे बाद मेरे पास आना।’ उस व्यक्ति …
Read More »बड़े काम की हैं ये चार बातें
एक साधु थे। उनसे शिक्षा लेने के लिए बहुत से स्त्री पुरुष आते थे। साधु उन्हें बड़ी ही उपयोगी बातें बताया करते थे। एक दिन उन्होंने कहा, ‘तुम लोग चार बातें याद रखो तो जीवन का आनंद ले सकते हो।’ लोगों ने पूछा, ‘स्वामी जी, वे चार बातें क्या हैं ?’ स्वामीजी बोले, पहली बातः तुम जहां भी रहो, अपने को आवश्यक …
Read More »इस तरह मिल सकता है सच्चा सुख
एक बार वीर शिवाजी के गुरु समर्थ स्वामी रामदासजी भिक्षा मांगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज लगायी – जय जय रघुवीर समर्थ! घर से महिला बाहर आयी। उसने उनकी झोली मे भिक्षा डाली और कहा, महात्माजी, कोई उपदेश दीजिए। स्वामीजी बोले, आज नहीं, कल दूंगा। दूसरे दिन स्वामीजी ने पुन: उस घर के सामने आवाज …
Read More »मन की शक्ति से बड़ी कोई शक्ति नहीं
एक दिन स्वामी विवेकानंद एक अंग्रेज मि.मूलर के साथ टहल रहे थे। उसी समय एक पागल सांड तेजी से उनकी ओर बढ़ने लगा। अंग्रेज सज्जन भाग कर पहाड़ी के दूसरी छोर पर जा खड़े हुए। स्वामीजी ने उन्हें सहायता पहुंचाने का कोई और उपाय न देख खुद सांड के सामने खड़े हो गए। तब मिस्ट मूल देखकर दंग रह गए। …
Read More »इंसान वही जो दूसरों के दुःख दर्द को समझे
एक ज्ञानी संत थे। दूसरों के दुख दूर करने में उन्हें परम आनंद प्राप्त होता था। एक बार वे सरोवर के किनारे ध्यान में बैठे हुए थे। तभी उन्होंने देखा एक बिच्छु पानी में डूब रहा है। वे तुरंत ही उसे बचाने के लिए दौड़ पड़े। उन्होंने जैसे ही बिच्छु को पानी से निकालने के लिए उठाया उसने स्वामीजी को …
Read More »मनुष्य कर्म से बनता है महान
स्वामी दयानंद का घर तब फर्रुखाबाद में था। एक दिन एक व्यक्ति एक थाली में दाल-भात परोसकर ले आया। वह व्यक्ति घर-गृहस्थीवाला था और मेहनत मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट भरता था। उच्च कुल का नहीं होने के बावजूद स्वामीजी ने जब उसके हाथ का अन्न ग्रहण किया, तो ब्राह्मणों को बुरा लगा। नाराज होकर वे स्वामी …
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