किसी स्थान पर मित्र शर्मा नाम का एक कर्मकांडी ब्राह्मण रहता था। एक दिन दूर के एक गांव में जाकर वह अपने यजमान से बोला-‘यजमान जी ! मैं अगली अमावस्या के दिन यज्ञ कर रहा हूँ ।
उसके लिए कोई हट-पुष्ट पशु दे दो। यजमान ने उसे एक मोटा-ताजा बकरी का बच्चा दे दिया। रास्ते में बकरी का बच्चा ब्राह्मण को कुछ परेशान करने लगा तो उसने उसे कंधे पर लाद लिया।
आगे चलकर रास्ते में उसे तीन घूर्त मिले। तीनों भूख से व्याकुल थे। वे सोचने लगे कि क्यों न इस ब्राह्मण से यह बकरी का बच्चा हथियाकर आज इसी से अपनी भूख मिटाई जाए।
यह विचार आते ही उनमें से एक धूर्त वेश बदलकर किसी अन्य मार्ग से आग जाकर ब्राह्मण के रास्ते में बैठ गया। जब ब्राह्मण वहां से गुजरने लगा तो उस घूर्त ने उससे कहा-‘पंडित जी, यह क्या अनर्थ कर रहे हो ?
ब्राह्मण होकर एक कुत्ते को कंधे पर बिठाए ले जा रहे हो।’ ब्राह्मण बोला-‘अंधे हो क्या, जो बकरे को कुत्ता बता रहे हो?’ ‘मुझ पर क्रोध क्यों करते हो, विप्रवर। यह कुत्ता नहीं बकरा है तो ले जाइए अपने कंधे पर।
मुझे क्या ? मैंने तो ब्राह्मण जानकर आपका धर्म भ्रष्ट न हो जाए, इसलिए बता दिया। अब आप जाने और आपका काम ।’ कुछ दूर जाने पर ब्राह्मण को दूसरा धूर्त मिल गया।
वह ब्राह्मण से बोला-‘ब्राह्मण देवता, ऐसा अनर्थ किसलिए? इस मरे हुए बछड़े को कंधे पर लादकर ले जाने की क्या आवश्यकता पड़ गई ? मृत पशु को छूना तो शास्त्रों में भी निषेध माना गया है।
उसको छूने के बाद तो किसी पवित्र सरोवर अथवा नदी में जाकर स्नान करना पड़ता है।’ ब्राह्मण कुछ और आगे पहुंचा तो तीसरा धूर्त सामने आ गया।
बोला-‘अरे महाराज! यह तो बहुत अनुचित कार्य आप कर रहे हैं कि एक गधे को कंधे पर रखकर ढो रहे हैं। इससे पहले कि कोई और आपको देख ले, उतार दीजिए इसे कंधों से।’
तीन स्थानों पर, तीन व्यक्तियों के द्वारा बकरे के लिए अलग अलग नामों के सम्बोधन सुन ब्राह्मण को भी संशय हो गया कि यह बकरा नहीं है।
उसने बकरे को भूमि पर पटक दिया और अपना पल्ला झाड़कर अपने रास्ते पर चला गया। उसके जाने के बाद तीनों धूर्त वहां इकट्ठे हुए और बकरी के बच्चे को उठाकर चले गए।