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संगीत के सुर और भक्ति के भाव

संगीत के सुर और भक्ति के भाव
संगीत के सुर और भक्ति के भाव

संत ज्ञानेश्वर प्रतिदिन संध्या को स्वरचित भजन गाया करते थे, जिनको सुनने के लिए दूर-दूर से बहुत लोग आया करते थे। उसी सभी में एक गायक भी आया करता था।

एक दिन गायक ने संत ज्ञानेश्वर से कहा, आप बहुत गलत गाते हैं। राग और सुरों का आपको बिल्कुल भी ज्ञान नहीं, बेसुरे संगीत से मुझे बहुत कष्ट होता है। यह बात सुनकर संत ज्ञानेश्वर मुस्कुराए और उन्होंने उस गायक से कहा कि आप रोज मेरे संगीत सभा में गीत गाया करें। गायक बहुत प्रसन्न हुआ और प्रतिदिन भजन गाने लगा।

धीरे-धीरे भजन सुनने वालों की संख्या कम होने लगी। अंत में एक दिन ऐसा आया कि कोई भी भजन सुनने नहीं आया। यह देख कर गायक को बहुत दुःख हुआ। उसने संत ज्ञानेश्वर से पूछा, मैं इतना बड़ा गायक हूं, मैं गाता भी पूरी लय में हूं फिर भी कोई मुझे सुनने नहीं आ रहा है। इसके पीछे क्या कारण हैं?

संत बोले तुम गाते समय केवल सुर और ताल पर ध्यान देते हो, अतः श्रोता केवल सुर और ताल सुनते हैं, में केवल भक्ति भाव पर ध्यान देता हूं। जिसके कारण भक्त, भक्ति भाव में डूब जाता है। भावहीन संगीत भक्त के लिए निरर्थक रहता है। यह सुनकर गायक संत के चरणों में गिर गया और अपनी किए हुए पर क्षमा मांगी।

In English

Saint Dnyaneshwar used to recite the hymn singing every evening, whom many people used to come from far away to listen to. A singer used to come in all of them too.

One day the singer said to Saint Dnyaneshwar, you sing very wrong. You do not have any knowledge of melody and melody, I have a lot of trouble with music without voice. Upon hearing this, Saint Dnyaneshwar smiled and told the singer that you sing a song in my music gathering every day. The singer was very pleased and singing hymns everyday.

Gradually, the number of people listening to the hymn began to decrease. Finally one day it came that no hymn came to hear. Seeing this, the singer was very sad. He asked Saint Dnyaneshwar, I am such a big singer, I sing in full rhythm, yet nobody is listening to me. What are the reasons behind this?

Saints say that you pay attention only to the tune and rhythm while singing, so the listeners only listen to the rhythm and rhythm, but only in meditation on devotion. That is why the devotee is immersed in devotion. The emotionless music remains redundant to the devotee. After listening to this, the singer fell at the feet of the saint and apologized for his actions.

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