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गजराज और मूषकराज : पंचतंत्र की कहानी!!

नदी के किनारे एक व्यापारिक नगर बसा हुआ था। वर्षों से बसे उस नगर में एक बार प्रकृति ने कहर बरपाया। नदी के अपना मार्ग बदल लिया और वहाँ सूखे की स्थिति उत्पन्न हो गई। पेड़-पौधे सूख गये, खेतों की लहलहाती फसलें नष्ट हो गई, व्यापार ठप्प पड़ गया। लोगों के पीने तक के लिए पानी शेष न रहा।

इस विषम परिस्थिति में लोग नगर छोड़कर जाने लगे। धीरे-धीरे पूरा नगर खाली हो गया।। कुछ वर्षों में खाली नगर खंडहर बन गया और वहाँ चूहों  ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। मूषकराज के नेतृत्व में वहाँ चूहे फलने-फूलने लगे। भाग्यवश, एक दिन वहाँ की धरती से एक जल-स्रोत फूट पड़ा, जिसने कुछ वर्षों में जलाशय का रूप ले लिया

नगर से कुछ दूरी पर एक जंगल था, जहाँ अनगिनत हाथियों का वास था। राजा गजराज के राज में हाथियों का समूह सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा था। किंतु, एक समय वहाँ भी सूखा पड़ गया। पानी की कमी से हाथियों का जीवन दुष्कर हो गया। प्यास से उनकी जीवन लीला समाप्त होने लगी।

चिंतित हाथी अपने राजा गजराज के पास गए और अन्यत्र प्रस्थान करने की प्रार्थना करने लगे। हाथी ने अपने मित्र चील को जल-स्रोत की टोह लेने भेजा। चील ने वापस आकर सूचित किया कि खंडहर बन चुके नगर के दूसरी ओर एक जलाशय है। गजराज ने अपने दल सहित वहाँ जाने का निर्णय लिया। हाथियों  का दल जब नगर से गुजरा, तो वे चूहों के साम्राज्य से अनभिज्ञ थे। वे उनके बिलों को रौंदते हुए निकल गए। कई चूहों के दम तोड़ दिया। कईयों के प्राण तो बच गए, किंतु शरीर लहू-लुहान हो गया। अब हाथियों का दल प्रतिदिन उस मार्ग से जल के लिए आवाजाही करने लगा.

ऐसे में उस नगर में चूहों के प्राणों पर बन आई। वे अपने राजा मूषकराज के पास गए। कोई चूहा नगर छोड़ना नहीं चाहता था। उन्होंने मूषकराज से प्रार्थना की कि वे गजराज से बात करें और उन्हें जलाशय में आने से मना करें।

मूषकराज गजराज से मिलने पहुँचा। गजराज उस समय एक वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहा था। मूषकराज एक विशाल पत्थर पर चढ़ गया और हाथ जोड़कर गजराज को संबोधित करते हुए बोला, “गजराज! मैं चूहों का राजा मूषकराज हूँ। मेरा प्रणाम स्वीकार करें”।

गजराज ने उसके आने का प्रयोजन पूछा, तो मूषकराज बोला, “गजराज! मैं आपके पास एक निवेदन लेकर आया हूँ”। “कहो” गजराज बोला।

खंडहर बन चुके नगर में हम चूहों की बस्ती है। वर्षों से हम वहाँ निवास करते आ रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से आप लोगों की जलाशय की ओर की आवाजाही से आपके पैरों तले कुचले जाकर हमारे संपूर्ण वंश का नाश हो रहा है। मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप जलाशय जाने का कोई नया मार्ग ढूंढ लें”।

गजराज एक उदार ह्रदय हाथी थे। वह बोला, “मूषकराज! हमारे कारण आपको और आपकी प्रजा को कष्ट हुआ, इसके लिए मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ। हम इससे अनभिज्ञ थे कि जलाशय के मार्ग में चूहों की बस्ती है और हमारे द्वारा अनर्थ हो रहा है। आप निश्चिंत रहें, हम अपना मार्ग परिवर्तित कर लेंगे”।

मूषकराज कृतज्ञतापूर्वक बोला, “गजराज! मैं आपका सदैव आभारी रहूंगा और कभी भी मैं आपके काम आ सकूं, तो इसे मैं अपना भाग्य समझूंगा। आवश्यकता पड़े, तो अवश्य स्मरण कीजियेगा”।

गजराज ने सोचा कि यह नन्हा जीव हमारे क्या काम आएगा? किंतु, उसने वह कुछ नहीं बोला। मूषकराज ने प्रणाम कर गजराज से विदा ली। उस दिन के उपरांत से हाथियों के दल का चूहों की नगरी से आवाजाही  बंद हो गई।

उस स्थान से कुछ दूरी पर एक नगर स्थित था, जहाँ का राजा अपनी सेना को सुदृढ़ करना चाहता था। मंत्रीगणों के परामर्श पर उसे अपनी सेना में हाथियों को सम्मिलित करने का निर्णय लिया.

राजा के सैनिक हाथियों को पकड़ने लगे। गजराज इस बात से अत्यंत चिंतित था, क्योंकि उसके दल के कई हाथी पकड़ लिए गए थे। एक रात वह जंगल में विचरण कर रहा कि उसका पैर सूखी पत्तियों के नीचे छुपाये गए रस्सी के फंदे पर पड़ा और उसमें फंस गया। रस्सी का दूसरा सिरे एक पेड़ के तने से बंधा हुआ था।

उसने ख़ुद को छुड़ाने का बहुत प्रयास किया किंतु असफ़ल रहा. अंततः, वह सहायता के लिए चिंघाड़ने लगा। जिसने भी उसकी चिंघाड़ सुनी, वह इस भय के कारण उसके निकट नहीं आया कि कहीं वह भी किसी फंदे में फंस न जाए। गजराज हताश होने लगा।

तभी एक युवा जंगली भैंसा वहाँ से गुजरा। एक बार गड्ढे में गिर जाने पर उसे बाहर निकालकर गजराज ने उसकी सहायता की थी। इसलिए वह भैंसा गजराज का बहुत आदर करता था। गजराज को उस अवस्था में देख वह बड़ा दु:खी हुआ और पास जाकर बोला, “गजराज! क्या मैं आपकी कुछ सहायता कर सकता हूँ”।

गजराज बोला, “तुम दौड़कर खंडहर नगरी जाओ। वहाँ चूहों की बस्ती है। चूहों के राजा मूषकराज को मेरे बारे में बताओ और सहायता मांगो”।

भैंसा दौड़कर खंडहर नगरी में मूषकराज के पास गया और गजराज के बारे में जानकारी दी। मूषकराज अविलंब बीस-तीस चूहों के साथ भैंसे की पीठ पर बैठ गया और भैंसा उन्हें गजराज के पास लेकर पहुँच गया।

वहाँ पहुँचते ही सारे चूहे भैंसे की पीठ से कूदे और फंदे की रस्सी कुतरने लगे। कुछ देर में उन्होंने रस्सी कुतर दी और गजराज स्वतंत्र हो गया। उसने मूषकराज और उसके साथियों का कोटि-कोटि धन्यवाद दिया। उस दिन के बाद वे बहुत अच्छे मित्र बन गए।

सीख (Moral of the story)

आपसी सद्भाव और प्रेम के साथ रहना चाहिए और कष्ट के समय एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिये ||

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