एक बार एक कंजूस सेठ करोड़ी मल था। कंजूसी में उसका हाल ऐसा की चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाए। वह #श्रीकृष्ण का भक्त था। एक बार वह संत के पास गया और कहने लगा कि महाराज कोई ऐसा उपाय बताए जिससे मैं श्री कृष्ण की सेवा भी कर सकूं और मेरा कोई पैसा भी ना लगे।
संत जी उसकी कंजूसी की आदत से अवगत थे इसलिए कहने लगे कि तुम श्री कृष्ण की मानसिक सेवा किया करो। ऐसा आभास करो कि जैसे तुम श्री कृष्ण महाराज के #लड्डूगोपाल विग्रह को स्नान करवा रहे हो, उन्हें सुंदर वस्त्र धारण करवा रहे हो, उन्हें भोग लगा रहे हो यह सब तुम को मानसिक रूप से करना है इस लिए इसमें कोई कंजूसी मत करना। पूरे वैभव के साथ श्री कृष्ण के विग्रह की सेवा करना इसमें तुम्हारा कोई पैसा भी नहीं लगेगा और तुमको श्री कृष्ण की भक्ति और सेवा दोनों का फल और आनंद प्राप्त होगा।
अब कंजूस सेठ का नियम बन गया वह प्रतिदिन बहुत ही भाव से श्री कृष्ण को स्नान करवाता, वस्त्र धारण करवाता उनकी पूजा- पाठ करता और दूध में शक्कर डालकर भोग लगवाता।
ऐसे नियम का पालन करते- करते कोई वर्ष बीत गए अब तो मानसिक पूजा में भी उसे ऐसी अनुभूति होती कि जैसे सचमुच भगवान उनका भोग ग्रहण कर रहे हैं।
एक दिन वह जैसे ही ठाकुर जी को भोग लगाने के लिए दूध में शक्कर डाल रहा था तो गलती से उसने एक के बजाय दो चम्मच शक्कर डाल दी। कंजूस सेठ मन में विचार करने लगा कि एक चम्मच शक्कर निकल लेता हूं किसी और काम आ जाएंगी।
भगवान उसकी मानसिक पूजा से तो पहले ही प्रसन्न थे लेकिन आज उनको को भी शरारत सूझी । जैसे ही वह दूध में से एक चम्मच शक्कर निकलने लगा श्री कृष्ण ने उसका हाथ पकड़ लिया।
भगवान कहने लगे कि रहने दें ज्यादा शक्कर तुमने कौन सा कोई पैसा खर्च किया है। तुम अपनी आदत से मजबूर हो मानसिक पूजा में भी तुम को कंजूसी सूझ रही है। श्री कृष्ण का साक्षात स्पर्श पाकर वह भक्त धन्य हो गया। इसलिए कहते हैं भगवान तो भाव के भूखे हैं । यह कंजूस सेठ भी अपनी मानसिक पूजा के नियम के कारण ही श्री #कृष्ण का साक्षात दर्शन पा सका।
श्री कृष्ण के भक्त सूरदास जी की कथा जब श्री कृष्ण ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए थे।
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