कावेरी गांव में दो अच्छे मित्र रमाकांत और सुयोग रहते थे। वे दोनों सातवीं कक्षा में पढ़ते थे और अधिकतर साथ ही रहते-खेलते थे।
एक दिन स्कूल छूटने के बाद उन्होंने शहद खाने का विचार किया। बाजार से खरीदे हुए शहद मे वह स्वाद नहीं होता था इसलिए दोनों ने मधुमखियों की खोज शुरू कर दी। मधुमखियों को ढूढ़ ने के लिए उन्हें गांव के बाहरी जंगल में जाना पड़ता था। रमाकांत ने सुयोग को बताया कि गांव के थोड़े बाहर चलने के बाद नदी किनारे जंगल में एक पेड़ पर मधुमखियों का घोसला है।
योजना के अनुसार दूसरे दिन दोनों जंगल की ओर चल पड़े। रमाकांत ने अपने साथ एक लम्बी सी लकड़ी भी ले ली थी। सुयोग अपने घर से एक बड़ी सी टोकरी लेके आया था।
जब वे जंगले के नदी किनारे पहुंच गए तो मधुमखियों का घोसला देखकर बहुत खुश हुए। अब वे जल्दी से जल्दी शहद खाना चहते थे।
वे यह भी जानते ये कि मधुमखियां अपनी और अपने शहद की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहती है। संकट आते ही वे संघर्ष करने पर उतारू हो जाती हैं।
सुयोग ने अपनी बड़ी सी टोकरी पेड़ के निचे रख दी और लकड़ी पकड़ने रमाकांत की मदद करने के लिए चला गया। लकड़ी को पकड़कर दोनों बार -बार मधुमखियों के घोसले को चुबने लगे।
थोड़ी ही देर बाद थोड़ा शहद सुयोग के टोकरी में गिरा और दोनों देखकर बहुत खुश हो गए। अब तक तो वहा कोई भी मधुमखियां वहा पर नहीं आयी थी पर जैसे ही सुयोग अपनी टोकरी की ओर गया उस पर मधुमक्खियों के समूह ने हमला कर दिया। कई बार मना करने के बाद भी सुयोग रमाकांत की ओर भागने लगा जो की झाड़ियो के पीछे छुपा था।
कुछ देर बाद चार-पांच मधुमक्खियों ने रमाकांत पर ही अपना हमला चढ़ा दिया। अब रमाकांत और सुयोग एक साथ दर्द से पीड़ित होकर भग्ग रहे थे। न तो सुयोग कुछ कह पा रहा था और न ही रमाकांत। दोनों ही दर्द के मारे भाग रहे थे।
कुछ देर बाद सुयोग का चेहरा सूज कर भारी हो गया। आंखों का पूरी तरह खुल पाना भी मुश्किल था। रमाकांत की जीभ भी सूज कर फूल गई। दोनों मित्र ने अपने जीवन का सबक सिख लिया था और स्वादिष्ट शहद का स्वाद ही नहीं ले पाए क्योंकी सुयोग अपनी टोकरी वही छोड़कर आया था।