बनके मासूम जो घनश्याम मुस्कुराते हो
तुम्हे मालुम नही कितना सितम ढाते हो
सुनो हे राधिका जो तुम न नजर आती हो
तुम्हे मालुम नही कितना सितम ढाती हो
मुझे क्यों संवारे विस्वाश नही होता है
होके तू साथ मेरे साथ नही होता है
तुम्हे मिलता है क्या जो इतना तुम सताते हो
तुम्हे मालुम नही कितना सितम ढाते हो
बंधा हु राधिका मैं तेरे प्रेम बंधन में
वसी है खुशबु तेरे प्रीत की मेरे मन में
नचाता दुनिया को तुम मुझे नचाती हो
तुम्हे मालुम नही कितना सितम ढाते हो
ये दुनिया जानती है मैं तेरी दीवाणी हु
तू है इतहास मेरा मैं तेरी कहानी हु
हसा के जब भी श्याम मुझको तुम रुलाते हो
तुम्हे मालुम नही कितना सितम ढाते हो……..