कई बार बेताल को अपने साथ ले जाने की असफल कोशिश के बावजूद राजा विक्रमादित्य ने हार नहीं मानी थी। इसलिए, राजा विक्रमादित्य फिर से पेड़ के पास पहुंचे और बेताल को अपनी पीठ पर लटका कर ले जाने लगे। अपनी शर्त के अनुसार, बेताल ने फिर से राजा विक्रम को एक कहानी सुनाना शुरू की। इस बार की कहानी है – असली वर कौन।
सदियों पुरानी बात है, उज्जैन नगरी में महाबल नाम का एक राजा राज किया करता है। राजा बहुत पराक्रमी और दयालु था। उसकी एक बेटी थी, जिसका नाम था महादेवी था। महादेवी बहुत सुंदर और सुशील लड़की थी। जब वह विवाह योग्य हुई, तो राजा महाबल ने उसके लिए योग्य वर की तलाश शुरू कर दी।
एक-एक करके कई राजकुमार, राजकुमारी से विवाह करने की इच्छा लिए राजा के पास आए, लेकिन राजा को कोई पसंद नहीं आया। राजकुमारी से विवाह करने के लिए राजा ने एक ही शर्त रखी थी कि उसकी बेटी का होने वाला पति हर चीज में निपुण हो। इस तरह कई दिन बीत गए, लेकिन राजा को कोई अपनी बेटी के लिए योग्य वर नहीं मिला।
एक दिन की बात है, जब राजा अपने दरबार में बैठे थे कि तभी वहां एक राजकुमार आया और उसने कहा, “मैं राजकुमारी महादेवी से विवाह करना चाहता हूं।” यह सुनकर राजा ने कहा, “हे राजकुमार, मैं अपनी बेटी का विवाह उस व्यक्ति से करूंगा, जिसमें सभी गुण हो।” इस पर राजकुमार ने जवाब दिया, “मेरे पास ऐसा रथ है, जिसमें बैठकर क्षण भर में कहीं भी पहुंच सकते हैं।” यह सुनकर राजा ने कहा, “ठीक है तुम कुछ दिन रुको। मैं राजकुमारी से पूछकर तुम्हें जवाब दूंगा।”
कुछ दिनों बाद एक और राजकुमार वहां पहुंचा। उसने राजा ने कहा, “मैं त्रिकालदर्शी हूं और भूत, वर्तमान व भविष्य, तीनों देख सकता हूं। मैं चाहता हूं कि राजकुमारी का विवाह मुझसे हो।” राजा ने उसे भी इंतजार करने को कहा।
कुछ दिनों के बाद राजा महाबल के पास एक और राजकुमार उनकी बेटी का हाथ मांगने आया। राजा ने उससे पूछा कि तुममें ऐसा क्या गुण हैं, जो मैं अपनी पुत्री का विवाह तुम्हारे साथ करूं? राजकुमार ने कहा, “राजन, मैं धनुर्विद्या में निपुण हूं। मेरे जैसा धनुर्धारी दूर-दूर तक कोई नहीं है।” राजा ने उससे कहा, “बहुत खूब! राजकुमार, आप कुछ दिन प्रतीक्षा करें। मैं अपनी बेटी से बात करके आपको जवाब दूंगा।”
अब राजा असमंजस में पड़ गया कि तीनों ही राजकुमार गुणवान हैं, लेकिन वह तीनों से तो राजकुमारी की शादी कर नहीं सकता। तो अब सवाल यह था कि राजकुमारी का विवाह किससे होना चाहिए।
वहीं, दूसरी ओर एक भयानक राक्षस राजकुमारी महादेवी पर नजर लगाए बैठा था और एक दिन मौका मिलते ही वह राजकुमारी को उठाकर ले गया। यह खबर जैसे ही महल में फैली तो राजा, रानी और तीनों राजकुमार एक जगह इकठ्ठा हो गए। त्रिकालदर्शी राजकुमार ने बताया कि वह राक्षस राजकुमारी को विन्ध्याचल पर्वत पर ले गया है। इस पर पहले राजकुमार ने कहा, “मैं अपना रथ लेकर आता हूं। हम सब उस पर बैठकर विन्ध्याचल चल सकते हैं।”
तीसरे राजकुमार ने अपना तीर-कमान निकाला और कहा, “मैं उस राक्षस को मार गिराऊंगा।”
इसके बाद, तीनों राजकुमार रथ पर बैठ कर विन्ध्याचल पर्वत की ओर चल पड़े। उन्हें जैसे ही वह राक्षस दिखा, तो धनुर्धारी राजकुमार ने कुशलता से उसका वध कर दिया और वो राकुमारी को बचाकर फिर से महल ले आए।
इस कहानी को सुनाने के बाद बेताल ने राजा विक्रम से कहा, “राजन, राजकुमारी को बचाने में तीनों राजकुमारों का योगदान था। तो अब तुम मुझे बताओ कि राजकुमारी का विवाह किससे होना चाहिए? राजन, मैंने सुना है कि तू हमेशा न्याय करता है। जल्दी उत्तर दे, वरना तेरे सिर के टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा।”
इस पर राजा विक्रमादित्य ने उत्तर दिया कि राजकुमारी का विवाह धनुर्धारी राजकुमार से होना चाहिए, क्योंकि उसने राक्षस से लड़ाई करके राजकुमारी को बचाया और बाकी दोनों राजकुमारों ने केवल उसकी मदद की।
बस, फिर क्या था! जैसे ही राजा बोला, बेताल उसकी पीठ से उड़ कर फिर से पेड़ पर जा लटका।
कहानी से सीख:
मुश्किल समय में साहस ही काम आता है, इसलिए मुसीबत को देखकर घबराए नहीं। हमेशा साहस दिखाएं।