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उचित दण्ड !!

चोड देश में गोवर्धन नाम का राजा राज्य करता था। वह प्रजा का पालन पुत्रवत् करता। प्रत्येक के सुख-द:ख को अपना सुख-दु:ख समझता। वह बड़ा न्यायप्रिय था। उसने अपने दरबार में सभा मंडप के सामने लोहे के स्तम्भ पर एक घंटा बंधवा दिया था, जिसका नाम न्याय घंटा था। न्याय चाहने वाला उस घंटे को बजा दिया करता। राजा घंटे की आवाज सुनकर समझ जाता। वह सब हाल पूछकर ठीक न्याय करता।

एक बार उसका इकलौता पुत्र रथ पर चढ़कर कहीं बाहर जा रहा था। उसने जान-बूझ कर एक बछड़े को रथ के पहिए से कुचल दिया। जब गाय ने अपना बछड़ा मरा हुआ देखा तो वह डकराती हुई राजदरबार में चली गयी। वहाँ पर पहुँच कर उसने सींग अड़ाकर न्याय-घंटा जोर से बजाया। राजा ने उसके दुःख की पूछताछ की। राजा को सारी बात का पता चल गया। राजा ने अपने राज्य में घोषणा कर दी कि वह अपने इकलौते पुत्र को कल प्रातः ही रथ से कुचल देगा। राजा की इस प्रकार की घोषणा से सभा प्रजाजन दु:खी और भयभीत होने लगे। मंत्रियों तथा दरबारियों ने राजा से निश्चय को बदलने की प्रार्थना की परन्तु राजा ने किसी की भी न सुनी।

राजा ने दूसरे दिन प्रात: ही रथ मँगवाया, पुत्र को सड़क पर लिटा दिया। उसके बाद राजा ने रथ से अपने पुत्र को कुचल कर कहा, ‘वाणी, शरीर और कर्म से प्रजाजन की रक्षा करना और यदि राजा का पुत्र भी प्रजाजनों को वाणी तथा कर्म द्वारा पीड़ित करता है तो उसे सहन न करके पुत्र को उचित दंड देना ‘राजधर्म’ है।’

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