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मुंशी प्रेमचंद की कहानी : उद्धार!!

आजकल विवाह से जुड़ी प्रथाएं इतनी चिंताजनक हो गई हैं कि कुछ भी समझना मुश्किल हो जाता है। इसमें सुधार जरूरी है, लेकिन कम ही लोग ऐसा कर पाते हैं। ऐसे कम ही मां-बाप होते हैं, जो सात बेटों के बाद भी एक बेटी होने पर उसे प्यार से रखते हैं। जैसे ही एक बेटी पैदा होती है, वो उसकी शादी की चिंता में डूब जाते हैं। दुनिया में इस तरह के मां-बाप भी हैं, जो बेटी की किसी वजह से मृत्यु होने पर खुश होते हैं। उन्हें लगता है कि उनके सिर से परेशानी टल गई। इन सबकी वजह दहेज जैसी कुप्रथा ही है। दहेज की रकम दिन-ब-दिन इतनी बढ़ती जा रही है कि लोग लड़की के विवाह के नाम से ही घबराने लगे हैं। पता नहीं कब यह सब खत्म होगा।

बेटा जितने भी क्यों न हों, उन्हें भार नहीं लगता है। उनकी शादी नहीं भी करेंगे, तो कह देंगे कि बेटा कमाओ और खाओ। फिर मन होने पर शादी कर लेना। बेटा का चरित्र खराब भी हो, तो उसे गलत नहीं समझा जाता, लेकिन बेटी का विवाह करवाना जरूरी है। ऐसा नहीं किया और कुछ गलत घटना उसके साथ घट गई तो समस्या हो जाएगी। अगर इस बात को सबसे छुपा लिया, तो कोई दिक्कत नहीं। अगर नहीं छुपा पाए, तब पूरे समाज में नाक कट जाती है। समाज में ऐसा अपमान होता है, जिसका कोई ठिकाना नहीं। पूरा परिवार किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहता है।

दुख की बात यह है, जिन मां-बाप को अपनी बेटी की शादी में दहेज के कारण लाखों परेशानी झेलनी पड़ती है, वो अपने बेटे के विवाह के समय इन सबको भूल जाते हैं। वो अपने बेटे की शादी के लिए दहेज लेना बिल्कुल नहीं भूलते। उन्हें लड़की के परिवार वालों से बिल्कुल भी सहानुभूति नहीं होती, बल्कि वो अपनी बेटी की शादी में दिए गए दहेज को भी मिलाकर बेटे की शादी में लेने की कोशिश करते हैं। इस दहेज की चिंता के कारण ही कितने मां-बाप अपनी बेटी का विवाह बूढ़ों से कर देते हैं, ताकि उनका पीछा छूटे और कुछ तो बेटियों को विवाह के नाम में कुछ पैसे लेकर किसी के घर भेज देते हैं।

गुलजारी लाल भी एक ऐसे ही पिता थे, जिन्हें अपनी बेटी की शादी की चिंता खाए जा रही थी। यूं तो उनकी आर्थिक स्थिति ठीक थी और वो महीने में दो से ढाई सौ रुपये आसानी से कमा लेते हैं। दो बेटे भी थे, जिन्हें पालना था। ऊपर से बेटी के बड़े होने की टेंशन अलग। बेटी की शादी करने के लिए अच्छा घर भी चाहिए।

होते-होते एक दिन गुलजारी लाल को एक पढ़ा-लिखा योग्य लड़का मिला। उसके पिता आबकारी विभाग में नौकरी करते थे। इन सबके बारे में गुलजारी लाल ने अपनी पत्नी से बात की। फिर उसने कहा कि परेशानी बस ये है, लड़का शादी नहीं करना चाहता है। उसके पिता ने उसे बहुत समझाया, लेकिन वो किसी की नहीं सुनता। उसने कहा है कि वो जीवन में कभी शादी नहीं करना चाहता। समझ नहीं आ रहा है कि वो शादी से इतनी नफरत क्यों करता है।

गुलजारी लाल की पत्नी ने कहा कि एक दिन उसे बुलाकर अकेले में बात कर लो।

उसने पत्नी को बताया कि बुलाया था मैंने। काफी देर तक कारण पूछा, लेकिन वो कुछ नहीं बोला। मैंने रोते हुए उससे आखिर में पूछा, तो वहां से चला गया।

वह भुनभुनाते हुए बोलने लगी कि बेटी की वजह से पता नहीं क्या सब दिन देखना पड़ेगा।

गुजारी लाल बोला, “नहीं, इस जमाने के लड़के होते ही ऐसे हैं। पढ़ लिखकर उन्हें पता नहीं क्या हो जाता है कि वो जिंदगी भर अविवाहित रहना चाहते हैं। वो आजाद अकेले ही रहना चाहते हैं। इसी में अपनी खुशी समझते हैं।
पत्नी बोली, “बात बिल्कुल सही है। अगर तुमने शादी न की होती, तो ये सारी चिंताएं न होती। हम सब खुश होते।”

कुछ वक्त गुजरने के बाद गुलजारी लाल को विवाह के लिए मना करने वाले लड़के की तरफ से एक पत्र आया। उसमें लिखा था –

अंकल प्रणाम,

मैं आपको यह खत काफी दुविधा में लिख रहा हूं। आपके द्वारा मेरे घर रिश्ता लाने के बाद से ही माता-पिता मुझपर शादी का खूब दबाव बना रहे हैं। मां रोती हैं, तो पिता नाराज हैं। उन्हें लग रहा है कि मैं जिद की वजह से शादी नहीं कर रहा हूं, लेकिन मैं इसकी असली वजह उन्हें नहीं बता पाता हूं। अगर उन्हें पता चला तो हो सकता है कि उनके प्राण निकल जाएं। आज मैं अपनी इस गुप्त बात के बारे में आपको बता रहा हूं। इसे राज ही रखिएगा। किसी भी तरह मां-बाप को यह बात पता नहीं चलनी चाहिए। मुझे लग रहा है कि 5-6 महीने से मुझे क्षय रोग यानी टीबी हो गया है। उसी के लक्षण मुझे खुद में दिख रहे हैं। जांच में भी यह स्पष्ट हो गया है कि मैं अधिकतम दो साल तक ही जिंदा रह सकता हूं। ऐसे में अगर मैंने शादी कर ली, तो मेरी पत्नी को और बच्चा होने पर उसे भी यह बीमारी लग जाएगी। अभी मैं खुद इस रोग की पीड़ा को झेलता हूं। विवाह कर लिया, तो सबको दुख होगा। अब मेरा आपसे अनुरोध है कि मुझे किसी तरह के बंधन में मत बांधिए।

सेवक,
हजारी लाल

चिट्ठी पढ़ने के बाद गुलजारी लाल ने अपनी पत्नी से पूछा कि तुम्हें क्या लग रहा है?

उसकी पत्नी ने कहा कि मुझे लगता है कि ये बहाना बना रहा है।

“मुझे भी ऐसा ही लगता है। बीमार इंसान वैसा नहीं दिखता है, जैसा वो दिख रहा था”, जवाब में गुलजारी लाल बोला।

पत्नी बोली कि ठीक है अब भगवान का नाम लेकर शादी कर दो, जो होगा देखा जाएगा।

गुलजारी लाल ने कहा, “ मैं भी ऐसा ही कुछ विचार कर रहा हूं।”

गुलजारी लाल की पत्नी ने फिर कहा कि एक बार आप डॉक्टर को ही दिखा दीजिए। ऐसी बीमारी हुई, तो बेटी अम्बा के साथ बुरा होगा।

गुलजारी एकदम बोल पड़ा, “अरे, तुम इन नौजवान लड़कों को नहीं जानती हो। ये सब ऐसे ही बोल रहा है।”

पत्नी बोली, “फिर जल्दी से शुभ मुहूर्त निकालकर इनका विवाह करवा देते हैं।

इतना सब बताने के बाद भी जब हजारी लाल का विवाह तय हो गया, तो उसे बड़ी हैरानी हुई। उसके मन में हुआ कि अब मैं क्या कर सकता हूं। फिर उसके दिमाग में हुआ कि डॉक्टर का पर्चा इन्हें भेज देता हूं, लेकिन तब लगा कि नकली पर्ची बनाना भी मुश्किल नहीं होता है। ऐसे में वो मेरा विश्वास कैसे करेंगे। उसने सोचा कि सब कुछ जानते हुए भी मैं विवाह करके उस लड़की को विधवा नहीं बनने दे सकता हूं।

परेशान होकर वो अपने पिता के पास चला गया। रात का समय था। उसके पिता चारपाई पर लेटे हुए थे। पिता ने उससे पूछा कि बेटा क्या हुआ तुम परेशान लग रहे हो। हजारी लाल कहा कि मुझे आपसे कुछ कहना है। मैंने लंबे समय से एक बात छुपा रखी है। फिर उसने अपनी बीमारी की सारी बात बता दी और कहा कि मेरी जिंदगी के कुछ ही दिन बचे हैं। डॉक्टर ने भी मुझे विवाह न करने की सलाह दी है।

हजारी लाल के पिता दरबारी लाल ने अपने बेटे की ओर कुछ देर चौंककर देखा। फिर कहा कि बेटा इस स्थिति में तो शादी करना और जरूरी है। भगवान न करे कि तुम्हें कुछ हो जाए, लेकिन विवाह के बाद तुम्हारा बच्चा तो हमारे पास रहेगा। उसका मुंह देखकर ही हम जिंदा रहे लेंगे। डॉक्टर सबकुछ नहीं जानते हैं। क्या पता तुम्हें स्वस्थ बच्चा हो।

हजारी लाल के पास इन सारी बातों का कोई जवाब नहीं था। वो चुपचाप अपने कमरे में आकर लेट गया।

तीन दिन बीत गए, लेकिन वो कुछ नहीं कर सका और बारात की तैयारी होने लगी। उसके मन में हुआ कि कैसे माता-पिता हैं, जो अपनी बेटी को ही इस तरह के रिश्ते में बांध रहे हैं। मेरे मां-बाप भी ऐसे ही हैं। उस बेचारी लड़की का क्या दोष है। यह सब सोचकर हजारी लाल उठा और चुपचाप कहीं चला गया। उस दिन के बाद से किसी ने दोबारा हजारी लाल को नहीं देखा।

उसे ढूंढने के लिए उसके माता-पिता ने क्या कुछ नहीं किया। पुलिस को उसका चित्र दिया, आसपास के कुएं में देखा और अखबारों में विज्ञापन निकाल दिया।

कुछ हफ्ते बीतने के बाद रेलवे के पास से कुछ हड्डियां पड़ी मिलीं। सबको लगा कि हजारी लाल ने रेल के नीचे आकर अपनी जान दे दी है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं था कि वो हड्डियां किसकी हैं।

वक्त गुजारा और तीज आया। अम्बा ने भी अपने पति के लिए व्रत रखा हुआ था। तभी अम्बा के पति ने आकर कहा कि तुम्हारे लिए मुंशी दरबारी लाल के यहां से तीज का तोहफा आया है। फिर उसके पति ने पूछा, “ये तुम्हारे कौन हुए?” अम्बा के मन में हुआ कि यह तो उसी देवता के पिता हैं, जिन्होंने मुझे नरक में जाने से बचाया है। अपने जीवन का बलिदान दे दिया, लेकिन मेरे जीवन को खराब नहीं होने दिया। इतना सब कुछ सोचकर अम्बा ने अपने पति के सवाल के जवाब में कहा कि वो मेरे चचा लगते हैं।

फिर अम्बा के पति ने पूछा कि हजारी लाल कौन हैं। पत्र में उनके नाम का जिक्र है।

जवाब में अम्बा बोली, “यह मुंशी दरबारी के पुत्र हैं।

पति ने पूछा, “अच्छा, तो ये तुम्हारे चचेरे भाई हुए?”

अम्बा ने कहा, “नहीं-नहीं, वो काफी दयालु इंसान थे। मुझे सुखी जीवन का वरदान देने और डूबने से बचाने वाले इंसान थे।”

यह सब सुनकर अम्बा के पति के मन में हुआ कि निश्चित रूप से ही वह कोई देवता होगा।

कहानी से सीख :

इंसान को स्वार्थ में इस तरह से नहीं पड़ना चाहिए कि उसे और कुछ न सूझे। हमेशा दूसरों के हित के लिए ही सोचना चाहिए।

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