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ताऊजी, हमें लेलगाड़ी (रेलगाड़ी) ला दोगे

”ताऊजी, हमें लेलगाड़ी (रेलगाड़ी) ला दोगे? कहता हुआ एक पंचवर्षीय बालक बाबू रामजीदास की ओर दौड़ा।बाबू साहब ने दोंनो बाँहें फैलाकर कहा—”हाँ बेटा,ला देंगे।” उनके इतना कहते-कहते बालक उनके निकट आ गया। उन्होंने बालक को गोद में उठा लिया और उसका मुख चूमकर बोले—”क्या करेगा रेलगाड़ी?”

बालक बोला—”उसमें बैठकर बली दूल जाएँगे। हम बी जाएँगे, चुन्नी को बी ले जाएँगे। बाबूजी को नहीं ले जाएँगे। हमें लेलगाड़ी नहीं ला देते। ताऊजी तुम ला दोगे, तो तुम्हें ले जाएँगे।”

बाबू—और किसे ले जाएगा?”

बालक दम भर सोचकर बोला—”बछ औल किछी को नहीं ले जाएँगे।”

पास ही बाबू रामजीदास की अर्द्धांगिनी बैठी थीं। बाबू साहब ने उनकी ओर इशारा करके कहा—”और अपनी ताई को नहीं ले जाएगा?” बालक कुछ देर तक अपनी ताई की और देखता रहा। ताईजी उस समय कुछ चिढ़ी हुई सी बैठी थीं। बालक को उनके मुख का वह भाव अच्छा न लगा। अतएव वह बोला—”ताई को नहीं ले जाएँगे।”

ताईजी सुपारी काटती हुई बोलीं—”अपने ताऊजी ही को ले जा, मेरे ऊपर दया रख।” ताई ने यह बात बड़ी रूखाई के साथ कही। बालक ताई के शुष्क व्यवहार को तुरंत ताड़ गया। बाबू साहब ने फिर पूछा—”ताई को क्यों नहीं ले जाएगा?”

बालक—”ताई हमें प्याल (प्यार), नहीं कलतीं।”

बाबू—”जो प्यार करें तो ले जाएगा?” बालक को इसमें कुछ संदेह था। ताई के भाव देखकर उसे यह आशा नहीं थी कि वह प्यार करेंगी। इससे बालक मौन रहा।

बाबू साहब ने फिर पूछा—”क्यों रे बोलता नहीं? ताई प्यार करें तो रेल पर बिठाकर ले जाएगा?” बालक ने ताऊजी को प्रसन्न करने के लिए केवल सिर हिलाकर स्वीकार कर लिया, परंतु मुख से कुछ नहीं कहा।

बाबू साहब उसे अपनी अर्द्धांगिनी के पास ले जाकर उनसे बोले—”लो, इसे प्यार कर लो तो तुम्हें ले जाएगा।” परंतु बच्चे की ताई श्रीमती रामेश्वरी को पति की यह चुग़लबाज़ी अच्छी न लगी। वह तुनककर बोलीं—”तुम्हीं रेल पर बैठकर जाओ, मुझे नहीं जाना है।” बाबू साहब ने रामेश्वरी की बात पर ध्यान नहीं दिया। बच्चे को उनकी गोद में बैठाने की चेष्टा करते हुए बोले—”प्यार नहीं करोगी, तो फिर रेल में नहीं बिठावेगा।—क्यों रे मनोहर?” मनोहर ने ताऊ की बात का उत्तर नहीं दिया। उधर ताई ने मनोहर को अपनी गोद से ढकेल दिया। मनोहर नीचे गिर पड़ा। शरीर में तो चोट नहीं लगी, पर हृदय में चोट लगी। बालक रो पड़ा।

बाबू साहब ने बालक को गोद में उठा लिया। चुमकार-पुचकार कर चुप किया और तत्पश्चात उसे कुछ पैसा तथा रेलगाड़ी ला देने का वचन देकर छोड़ दिया। बालक मनोहर भयपूर्ण दॄष्टि से अपनी ताई की ओर ताकता हुआ उस स्थान से चला गया।मनोहर के चले जाने पर बाबू रामजीदास रामेश्वरी से बोले—”तुम्हारा यह कैसा व्यवहार है? बच्चे को ढकेल दिया। जो उसे चोट लग जाती तो?”

रामेश्वरी मुँह मटकाकर बोलीं—”लग जाती तो अच्छा होता। क्यों मेरी खोपड़ी पर लादे देते थे? आप ही मेरे ऊपर डालते थे और आप ही अब ऐसी बातें करते हैं।”

बाबू साहब कुढ़कर बोले—”इसी को खोपड़ी पर लादना कहते हैं?”

रामेश्वरी—”और किसे कहते हैं? तुम्हें तो अपने आगे और किसी का दु:ख-सुख सूझता ही नहीं। न जाने कब किसका जी कैसा होता है। तुम्हें उन बातों की कोई परवाह ही नहीं, अपनी चुहल से काम है।”

बाबू—”बच्चों की प्यारी-प्यारी बातें सुनकर तो चाहे जैसा जी हो, प्रसन्न हो जाता है। मगर तुम्हारा हृदय न जाने किस धातु का बना हुआ है?” बाबू साहब ने सोचा कि मूर्ख स्त्री के मुँह लगना ठीक नहीं। अतएव वह स्त्री की बात का कुछ उत्तर न देकर वहाँ से टल गए। और फिर बाबू साहब मनोहर बच्चों के लिए रेलगाड़ी लेकर आ गये और कुछ रुपये भी दिये, जिसे मनोहर बहुत खुश हुआ ||

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