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अविवेक का मूल्य!

एक गांव में उज्वलक नाम का बढ़ई रहता था । वह बहुत गरीब था । ग़रीबी से तंग आकर वह गांव छो़ड़कर दूसरे गांव के लिये चल पड़ा । रास्ते में घना जंगल पड़ता था । वहां उसने देखा कि एक ऊंटनी प्रसवपीड़ा से तड़फड़ा रही है । ऊँटनी ने जब बच्चा दिया तो वह उँट के बच्चे और ऊँटनी को लेकर अपने घर आ गया । वहां घर के बाहर ऊँटनी को खूंटी से बांधकर वह उसके खाने के लिये पत्तों-भरी शाखायें काटने वन में गया । ऊँटनी ने हरी-हरी कोमल कोंपलें खाईं । बहुत दिन इसी तरह हरे-हरे पत्ते खाकर ऊंटनी स्वस्थ और पुष्ट हो गई । ऊँट का बच्चा भी बढ़कर जवान हो गया । बढ़ई ने उसके गले में एक घंटा बांध दिया, जिससे वह कहीं खोया न जाय । 
दूर से ही उसकी आवाज सुनकर बढ़ई उसे घर लिवा लाता था । ऊँटनी के दूध से बढ़ई के बाल-बच्चे भी पलते थे । ऊँट भार ढोने के भी काम आने लगा ।
उस ऊँट-ऊँटनी से ही उसका व्यापर चलता था । यह देख उसने एक धनिक से कुछ रुपया उधार लिया और गुर्जर देश में जाकर वहां से एक और ऊँटनी ले आया । कुछ दिनों में उसके पास अनेक ऊँट-ऊँटनियां हो गईं । उनके लिये रखवाला भी रख लिया गया । बढ़ई का व्यापार चमक उठा । घर में दुधकी नदियाँ बहने लगीं ।

शेष सब तो ठीक था—-किन्तु जिस ऊँट के गले में घंटा बंधा था, वह बहुत गर्वित हो गया था । वह अपने को दूसरों से विशेष समझता था । सब ऊँट वन में पत्ते खाने को जाते तो वह सबको छो़ड़कर अकेला ही जंगल में घूमा करता था ।
उसके घंटे की आवाज़ से शेर को यह पता लग जाता था कि ऊँट किधर है । सबने उसे मना किया कि वह गले से घंटा उतार दे, लेकिन वह नहीं माना ।
एक दिन जब सब ऊँट वन में पत्ते खाकर तालाब से पानी पीने के बाद गांव की ओर वापिस आ रहे थे, तब वह सब को छो़ड़कर जंगल की सैर करने अकेला चल दिया । शेर ने भी घंटे की आवाज सुनकर उसका पीछा़ किया । और जब वह पास आया तो उस पर झपट कर उसे मार दिया ।

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