एक दिन की बात है. पिता ने देखा कि उसका बेटा घर के लॉन में गुमसुम बैठा हुआ है. वह बेटे के पास गया और उससे पूछा, “बेटा, क्या बात है? गुमसुम से क्यों बैठे हो?”
“मैं ये सोच रहा हूँ पापा कि मेरी ज़िंदगी की कीमत क्या है?”
पिता मुस्कुरा उठा और बोला, “अच्छा ये बात है. यदि तुम सच में अपनी ज़िंदगी की कीमत समझना चाहते हो, तो जैसा मैं कहता हूँ वैसा करो.”
बेटा तैयार हो गया.
पिता ने उसे एक पत्थर दिया, जो दिखने में साधारण सा ही था और कहा, “बेटा, इस पत्थर को लेकर बाज़ार जाओ. वहाँ किसी स्थान पर ये पत्थर हाथ में लेकर बैठ जाना. कोई इसकी कीमत पूछे, तो कहना कुछ नहीं. बस अपनी दो उंगलियाँ खड़ी कर देना.”
बेटा बाज़ार चला गया और एक जगह पर हाथ में पिता का दिया हुआ पत्थर लेकर बैठ गया. उसे वहाँ बैठे हुए कुछ समय ही गुज़रा था कि एक बूढ़ी औरत उसके पास आई और पूछने लगी, “बेटा, इस पत्थर की क्या कीमत है?”
लड़का कुछ बोला नहीं, बस अपने पिता के कहे अनुसार अपनी दो उंगलियाँ खड़ी कर दी.
“अच्छा २०० रुपये. ठीक मैं इस पत्थर को २०० रुपये में खरीदने को तैयार हूँ. मुझे ये पत्थर दे दो.” बूढ़ी औरत बोली.
बूढ़ी औरत की बात सुनकर लड़का हैरान रह गया. उसे अंदाज़ा ही नहीं था कि एक साधारण से दिखने वाले पत्थर के लिए कोई २०० रुपये भी दे सकता है. खैर, उसने वह पत्थर बेचा नहीं और घर आ गया.
घर आकर उसने सारी बात अपने पिता को बताई. तब पिता ने उससे कहा, “इस बार तुम एक म्यूज़ियम में जाना. वहाँ भी कोई तुमसे इस पत्थर की कीमत पूछे, तो पहले की तरह दो उंगलियाँ खड़ी कर देना.”
लड़का पत्थर लेकर म्यूज़ियम चला गया. वहाँ एक आदमी ने उसके हाथ में वह पत्थर देखकर पूछा, “इसकी कीमत क्या है?”
लड़का कुछ नहीं बोला. बस, अपनी दो उंगलियाँ खड़ी कर दी.
अच्छा २०,००० रूपये. ठीक है, मैं ये तुमसे २०,००० रूपये में ख़रीद लूंगा.” आदमी बोला.
लड़का यह सुनकर हैरान रह रहा. उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि कोई उस पत्थर के २०,००० रूपये भी दे सकता है. पत्थर बेचने से मना कर वह घर आ गया. वहाँ अपने पिता को उसके सारी बात बताई.
तब पिता ने कहा, “अब मैं तुम्हें आखिरी जगह भेजता हूँ. इस पत्थर को लेकर अब तुम किसी कीमती पत्थरों की दुकान पर जाओ और वहाँ भी कोई तुमसे इसकी कीमत पूछे, तो कुछ कहना मत. पहले की तरह बस दो उंगलियाँ खड़ी कर देना.”
लड़का तुरंत कीमती पत्थरों की एक दुकान में पहुँचा. उसके हाथ में वह पत्थर देख, दुकानदार तुरंत उसके पास आया और बोला, “अरे ये पत्थर तुम्हारे पास कैसे? इसे तो मैं सालों से तलाश रहा हूँ. ये पत्थर तुम मुझे दे दो. बताओ क्या कीमत लोगे इसकी?”
लड़के ने बिना कुछ कहे अपनी दो उंगलियाँ खड़ी कर दी.
“अच्छा! २,००,००० रूपये. ठीक है, मैं अभी तुम्हें २,००, ००० रुपये देकर ये पत्थर तुमसे ख़रीद लेता हूँ.” वह आदमी बोला.
२,००,००० रूपये सुनकर लड़के की आँखें आश्चर्य से फ़ैल गई. यह कीमत तो उसकी सोच से भी बाहर थी. खैर, उसने वह पत्थर नहीं बेचा और घर चला आया.
घर पहुँचकर उसने अपने पिता को बताया, “पापा, यकीन ही नहीं हो रहा कि कोई इस पत्थर के २,००,००० रूपये देने को भी तैयार है. ये कैसा पत्थर है पापा? कोई इसे २०० में खरीदना चाहता है, तो कोई २०,००० में. और तो और इसे २,००,००० रूपये में भी लोग ख़रीदने को तैयार हैं. आखिर, इसकी कीमत क्या है?”
पिता बेटे को समझाते हुए बोला, “बेटा, तुमने अपनी ज़िंदगी की कीमत मुझसे पूछी थी ना. इस पत्थर की जगह अपनी ज़िंदगी को रखो और अंदाज़ा लगाओ अपनी ज़िंदगी की कीमत का. इस पत्थर की कीमत अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग थी. वैसा ही ज़िंदगी के साथ भी है. तुम्हारी ज़िंदगी की कीमत इस बात पर निर्भर करती है कि तुम ख़ुद को कहाँ पर रखते हो. यदि तुम ख़ुद को २०० रुपये वाली जगह पर रखोगे, तो तुम्हारी ज़िंदगी की कीमत २०० रूपये की है. यदि तुम ख़ुद को २,००,००० रूपये वाली जगह पर रखोगे, तो तुम्हारी ज़िंदगी की कीमत २,००,००० रूपये की है. अब ये तुम्हें तय करना है कि तुम ख़ुद को कहाँ रखते हो.”
सीख
लोग हमारा और ज़िंदगी का अलग-अलग मूल्यांकन करते हैं. जो हमसे प्यार करते हैं, हमें अपना समझते हैं, उनके लिए हम सब कुछ होते हैं. लेकिन जो हमें बस इस्तेमाल करना चाहते हैं, हमारा फायदा उठाना चाहते हैं, उनके लिए हम कुछ भी नहीं होते. वास्तव में जीवन अमूल्य है, इसका महत्व समझें ||