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जब पं. मदनमोहन मालवीय ने पढ़ी अरबी में लिखी नजीरें

बात उस समय की बात है, जब देश अंग्रेजों का गुलाम था। तब एक बार पंडित मदन मोहन मालवीय को मुकदमे के सिलसिले में एक मौलवी ने अपना वकील बनाया। मुकदमे में कुछ अरबी पुस्तकों से न्यायालय के फैसलों के उद्धरण देने थे जिन्हें मालवीय जी ने अपने हाथ से नागरी लिपि में लिख लिया था।

अदालत में विरोधी पक्ष जब ये उद्धरण देने लगा तो वह शुद्ध उच्चारण नहीं कर पा रहा था। मालवीय जी ने जज से कहा, ‘यह अशुद्ध पढ़ा जा रहा है। अगर आप इजात दें तो मैं इनको ठीक से पढ़ दूं। जज की अनुमति मिलते ही उन्होंने अपने हाथ का लिखा कागज निकाल कर बिना अटके शुद्ध ढंग से उन अरबी में लिखे गये नजीरों को पढ़ कर सुना दिया।’

मालवीय जी की इस प्रतिभा से सभी कायल हुए। इस तरह, उस समय अदालतों को अरबी और फारसी के प्रभाव से मुक्त करने में यह घटना काफी मददगार सिद्ध हुई।

Hindi to English

It was a matter of time when the country was a slave of the British. Then once a magistrate made a lawyer for Pandit Madan Mohan Malviya in connection with the case. In the lawsuit, some Arabic books were to quote the court’s decisions, which Malviya ji wrote in his own native script.

When the opposition party started giving these quotes to the court, she was unable to utter utterance. Malviya ji told the judge, ‘It is being read impure. If you want to, then I should read them properly. As soon as the judge got the permission, he read and read the stories written in Arabic in pure manner without taking out his handwritten paper.

All this proved by the talent of Malviya ji. In this way, this incident proved very helpful in reducing the courts from the influence of Arabic and Persian at that time.

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