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औरतें भी न

दो मिनट की आरामदायक और बच्चों के पसंद की ज़ायकेदार मैगी को छोड़, किचन में गर्मी में तप कर हरी सब्ज़ियाँ बनाती फिरती हैं। बच्चे मुँह बिचकाकर नाराज़गी दिखलाते हैं सो अलग, फिर भी बाज नहीं आती। ये औरतें भी न, जब किसी बात पे दिल दुखे , तो घर मे अकेले में आँसुओं की झड़ी लगा देगी। लेकिन बाहर अपनी सहेलियों के सामने तो ऐसे मुस्कुरायेगी, जैसे उसके जितना सुखी कोई नहीं। ये औरतें भी न, जब कभी लड़ लेगी पति से, तो सोच लेगी अब मुझे तुमसे कोई मतलब नहीं लेकिन शाम में जब घर आने में पति महाशय को देर हो जाये, तो घड़ी पे टक-टकी लगाए रहेगी। और बच्चों से बोलेगी, “फोन कर के पापा से पूछो आये क्यों नहीं अभी तक?”

अरे यार! ये औरतें भी न, तिनका तिनका जोड़कर अपने आशियाने को बनातीऔर सजाती हैं, चलती और ढलती रहती है सबके अनुसार। लेकिन कभी एक कदम भी बढ़ा ले अपने अनुसार, तो “यहाँ ऐसे नहीं चलेगा जाओ अपने घर (मायका) ये सब वहीं करना।”सुन रो रोकर सोचती रहती है, अब मैं इस घर में नहीं रहूँगी। रात भर आँसुओं से तकिया गीला कर, उल्लू की तरह आँखें सूजा लेती हैं। अगले दिन फिर से सुबह उठकर तैयार करने लगती है, बच्चों की टिफिन और सबके के लिए नाश्ता। बदलने लगती है ड्राइंग रूम के कुशन कवर, और फिर से सींचने लगती है अपने लगाए पौधों को। सच में एकदम पागल है! सोचती कुछ है और करती कुछ! ये औरतें भी न… खैर छोड़ो औरतों को समझना इतना आसान नही मेरे दोस्त…!!

“‘औरत’ अटूट साहस और कभी ना हार मानने की प्रतिमूर्ति है।” औरत’ का अर्थ है अदम्य संकल्प और असीम शक्ति का संगम, जो हर परिस्थिति में निरंतर आगे बढ़ने का प्रतीक है।

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