एक राजा थे। उनके दरबार में एक विदूषक था। वह बहुत चालाक था वह न सिर्फ अच्छे-अच्छे चुटकुले सुनाता था, बल्कि शासन के कार्यों में भी राजा की सहायता करता था।
वह विदूषक कई बार तो राजा के ऊपर ही किस्से बनाकर सुना देता था। एक दिन राजा को उसकी किसी बात से अपना अपमान महसूस हुआ। वे क्रोधित होते हुए बोले, “सैनिको इस उदंड आदमी को बंदी बना कर कैदखाने में डाल दो।
कल इसे फाँसी दी जाएगी।” अगले दिन विदूषक को दरबार में लाया गया। राजा उससे बोले,”तुम्हें जल्दी ही फाँसी दे दी जाएगी। यदि तुम्हारी कोई अंतिम इच्छा हो तो हमें बताओ?” उसे अवश्य ही पूरा किया जाएगा
यह सुनकर उस चालाक विदूषक ने कहा, “महाराज, मेरी अंतिम इच्छा है कि मैं बुढ़ापे की मौत मरूँ।” उसकी बात सुनकर राजा को हँसी आ गई। उन्होंने उसे माफ कर दिया। इस प्रकार चतुर विदूषक ने चालाकी से अपनी जिंदगी बचा ली।