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चार मोमबत्तियों की कहानी !!

रात का समय था। चारो तरफ गहरा अँधेरा छाया हुआ था। केवल एक ही कमरे में उजाला था जिसमें चार मोमबत्तियां जल रही थी। चारो मोमबत्तियां एकांत देखकर आपस में बातें करने लगी।

पहली मोमबत्ती बोली, “मैं शांति हूँ। जब मैं इस दुनिया को देखती हूँ तो बहुत दुखी हो जाती हूँ। चारो और आपाधापी, लूटकसोट और हिंसा का बोलबाला है। ऐसे में यहाँ रहना मुश्किल है। अब मैं यहाँ और नहीं रह सकती।” इतना कहकर पहली मोमबत्ती बुझ गई।

दूसरी मोमबत्ती भी अपनी मन की बात कहने लगी, “मैं विस्वास हूँ। मुझे लगता है कि झूठ, धोखा, फरेब और बेईमानी मेरा वजूद खत्म करते जा रहे हैं। यह जगह मेरे लायक नहीं है। मैं भी जा रही हूँ।” इतना कहकर दूसरी मोमबत्ती भी बुझ जाती है।

तीसरी मोमबत्ती दुखी थी। वह कहने लगी, “मैं प्रेम हूँ। मैं हर किसी के लिए हर पल जल सकती हूँ पर अब किसी के लिए मेरे पास वक्त नहीं बचा। स्वार्थ और नफरत मेरी जगह लेते जा रही है। लोगों के मन में अपनों के प्रति प्रेम-भावना नहीं बची। मैं और सहन नहीं कर सकती। मेरे लिए जाना ही ठीक होगा।” यह कहकर तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गई।

तीसरी मोमबत्ती के बुझते ही कमरे में एक बच्चा आता है। मोमबत्तियों को बुझा देखकर उसे बहुत दुख होता है। उसके आँखों से आँसू बहने लगते है। वह दुखी मन से बोला, “इस तरह बीच में ही मेरे जीवन में अँधेरा कर कैसे जा सकती हो तुम। तुम्हे तो अंत तक जलना था लेकिन तुमने मेरा साथ छोड़ दिया। अब मैं क्या करूँगा?”

बच्चे की बात सुनकर चौथी मोमबत्ती बोली, “तुम घबराओ मत, मैं आशा हूँ और मैं तुम्हारे साथ हूँ। जब तक मैं जल रही हूँ तुम मेरी आग से दूसरे मोमबत्तियों को जला दो।”

चौथी मोमबत्ती की बात सुनकर उस बच्चे को विश्वास हो गया। उसने आशा के साथ शांति, विश्वास और प्रेम को फिरसे जला दिया।

जीवन में समय एक सा नहीं रहता, कभी उजाला रहता है तो कभी अँधेरा। जीवन में अँधकार आए, मन अशांत हो जाए, विश्वास डगमगाने लगे और दुनिया पराई लगने लगे तब आशा का दीपक जला लेना। जब तक आशा का दीपक जलता रहेगा जीवन में कभी अँधेरा नहीं हो सकता। इसलिए आशा का साथ कभी न छोड़े।

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