Breaking News

जिससे सीखा वही गुरु !!

भारतीय संस्कृति में गुरु को अत्यंत महत्त्व दिया गया है स्कंदपुराण में कहा गया है, अज्ञान तिमिरंधश्च ज्ञानांजनशलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नमः।

यानी जो गुरु अज्ञान के अंधकार में दृष्टिहीन बने अबोध शिष्य की आँखों को ज्ञान का अंजन लगाकर आलोकित करता है, उससे अधिक प्रणम्य कौन है।

पिता और माता को शास्त्रों में नैसर्गिक गुरु बताया गया है। ज्ञान देने वाले शिक्षक और लोक-परलोक के कल्याण का रास्ता सुझाने वाले किन्हीं संत या पंडित को भी गुरु की पदवी दी गई है।

गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा है, ‘गुरु की वाणी वह सूर्य है, जो अज्ञान के अंधकार का उन्मूलन कर देती है।’ अवधूत दत्तात्रेय ने तो अपने जीवन में जिनसे भी कुछ सीखा, उस मधुमक्खी, मृग, अजगर, हाथी आदि चौबीस जीवों को गुरु मानकर उनकी वंदना की है।

धर्मशास्त्र में कहा गया है, ‘सदर को ज्ञानमूर्ति के साथ-साथ द्वंद्वातीत लोभ, मोह, आसक्ति और अन्य अवगुणों से सर्वथा मुक्त होना चाहिए। सदाचारी, निर्लोभी, भगवद्भक्त, निरहंकारी गुरु ही शिष्य के लोक परलोक के कल्याण की सामर्थ्य रखता है।

परम विरक्त संत स्वामी रामसुखदास कहा करते थे, ‘सच्चा गुरु वही है, जो शिष्यों को सांसारिक माया जाल के प्रपंच से सावधान कर उसे सदाचार और भक्ति के पथ पर आरूढ़ करने की क्षमता रखता है।

जो गुरु भगवान् की पूजा-उपासना और धर्मशास्त्रों के पठन-पाठन से हटाकर अपनी पूजा-उपासना कराने में प्रवृत्त करे, उससे बचने में ही कल्याण है। सच्चा गुरु भगवान् से अपनी तुलना सहन ही नहीं कर सकता।’

Check Also

pakshi-budiyaa

बेजुबान रिश्ता

आँगन को सुखद बनाने वाली सरिता जी ने अपने खराब अमरूद के पेड़ की सेवा करते हुए प्यार से बच्चों को पाला, जिससे उन्हें ना सिर्फ खुशी मिली, बल्कि एक दिन उस पेड़ ने उनकी जान बचाई। इस दिलचस्प कहानी में रिश्तों की महत्वपूर्णता को छूने का संदेश है।