Breaking News

ढाई आखर प्रेम का

एक बार सत्संग के दौरान परम भागवत संत अखंडानंद सरस्वती ने अपने गुरु उड़िया बाबा से प्रश्न किया, ‘महाराज, पंडित कौन है?’

उड़िया बाबा ने बताया, ‘शास्त्र में कहा गया है- आत्मज्ञान समारम्भस्तितिक्षा धर्म नित्यता। यमर्थात्रापकर्षन्ति स वै पंडित उच्यते।’ यानी जिन्हें अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान है, जो धर्मानुसार जीवन जीते हैं,

दुःख सहन करते हैं और जो धन के लालच में सही रास्ते से नहीं भटकते, वे ही पंडित कहलाते हैं। एक अन्य श्लोक कहते हुए उड़िया बाबा बताते हैं,

‘जो ढंग से सोच-विचार कर काम करता है, आरंभ करने के बाद किसी भी काम को अधूरा नहीं छोड़ता, समय का दुरुपयोग नहीं करता, जिसने इंद्रियों पर नियंत्रण कर लिया है, वही पंडित है।

उपनिषद् में ज्ञानी (पंडित) की परिभाषा में कहा गया है, ‘सभी प्राणियों के अंदर समान आत्मा है, ऐसा अनुभव करनेवाला किसी भी प्रकार के भेदभाव से मुक्त-समदर्शी व्यक्ति ही सच्चा ज्ञानी है।

इस अवस्था में पहुँचने पर ज्ञानी मनुष्य को आत्मा सर्वःभूतमय की अनुभूति होने लगती है। संत कबीर कहते हैं, ‘ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।’

स्वामी रामतीर्थ ने एक बार कहा था, ‘जिसके हृदय में प्रेम नहीं है, संवेदना नहीं है, जीवों तथा दीन-दुःखियों के प्रति करुणा नहीं है, समदर्शी की भावना नहीं है,

भगवान् के प्रति भक्ति-भावना नहीं है तथा भगवान् के नाम में निष्ठा नहीं है, वह चाहे जितना बड़ा ज्ञानी-पंडित हो, उसका ज्ञान निरर्थक है। आत्मा-परमात्मा का ज्ञान रखने वाला तथा सुख-दुःख में सम रहनेवाला ही सच्चा पंडित है।

Check Also

pakshi-budiyaa

बेजुबान रिश्ता

आँगन को सुखद बनाने वाली सरिता जी ने अपने खराब अमरूद के पेड़ की सेवा करते हुए प्यार से बच्चों को पाला, जिससे उन्हें ना सिर्फ खुशी मिली, बल्कि एक दिन उस पेड़ ने उनकी जान बचाई। इस दिलचस्प कहानी में रिश्तों की महत्वपूर्णता को छूने का संदेश है।