Breaking News

साम्बादित्य की कथा

13938429_824302561003485_7022429605833890461_n

द्वारका में भगवान श्री कृष्ण के एक लाख अस्सी पुत्र थे। उनमें साम्ब अत्यंत गुणवान तथा रूपवान थे। एक बार देवर्षि नारद भगवान श्रीकृष्ण के दर्शनार्थ द्वारकापुरी पधारे। उन्हे देखकर सब यादव कुमारों ने प्रणाम करके उनका सम्मान किया, किंतु साम्ब ने अपने सौन्दर्य के गर्व से उन्हें प्रणाम नहीं किया, अपितु उनकी वेषभूषा को देखकर हंस पड़े। साम्ब का यह अविनय देवर्षि को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने भगवान कृष्ण से इसकी शिकायत की।
दूसरी बार जब देवर्षि नारद द्वारका में आए तो भगवान श्री कृष्ण रानियों के मध्य बैठे थे। नारद जी ने बाहर खेल रहे साम्ब से कहा- वत्स भगवान श्री कृष्ण से मेरे आगमन की सूचना दे दो। साम्ब ने सोचा एक बार मेरे प्रणाम ना करने से ये खिन्न हुए थे। यदि आज भी इनका कहना ना मानू तो ये और भी खिन्न होंगे। उधर पिताजी एकांत में बैठे है। अनुपयुक्त समय पर जाने से वो भी अप्रसन्न हो सकते है।
ये सोचकर वे अन्त:पुर में चले गये तथा भगवान कृष्ण को दूर से ही प्रणाम करके नारद जी के आने की सूचना उन्हें दे दी। साम्ब के पीछे पीछे नारद जी भी वहां चले गये।
नारद जी ने रानियों के मन की विकृति ताड़कर भगवान से कहा- साम्ब के अतुल सौन्दर्य से मोहित होने के कारण इनमें चंचलता आ गयी है। यद्यपि साम्ब सभी माताओं को अपनी मां जाम्बवती के सदृश ही देखते थे, तथापि दुर्भाग्यवश भगवान श्री कृष्ण ने उन्हे कुष्ठ रोग से आक्रांत होने का शाप दे दिया। इस घृणित रोग के भय से साम्ब कांप गए और भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करने लगे। भगवान श्री कृष्ण ने पुत्र को निर्दोष जानकर दुर्दैववश प्राप्त इस रोग से मुक्ति के लिए काशी जाकर सूर्य की अराधना करने का आदेश दिया।
साम्ब ने काशी पहुंचकर भगवान सूर्य की अराधना की और एक कुण्ड बनवाया।
भगवान सूर्य के आशीर्वाद से साम्ब शीघ्र ही कुष्ठ मुक्त हो गए। जो पुरुष रविवार को साम्ब कुण्ड में स्नान करके साम्बा दित्य की पूजा करता है, वह रोगों से पीड़ित नहीं होता।

Check Also

khilji

भ्रष्ट्राचारियों के साथ कैसा बर्ताव होना चाहिए?

भ्रष्ट्राचारियों के साथ कैसा बर्ताव होना चाहिए, उसका उदाहरण हमारे इतिहास में घटी एक घटना से मिलता है। यह सजा भी किसी राजा या सरकार द्वारा नही बल्कि उसके परिजन द्वारा ही दी गई।