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Mokshada Ekadasi

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मोक्षदा एकादशी महात्मय (Mokṣadaa ekaadashee mahaatmay)

गीता के अनुसार अन्य सभी लोक में मर कर गया हुआ प्राणी पुन: गर्भ में आता है लेकिन जो विष्णु लोक (Vishnu lok) में जाता है वह जीवन चक्र के फेर से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है। यूं तो पृथ्वी पर जितने भी प्रकार के जीव हैं वह सभी परमात्मा के ही अंश हैं परंतु मोहवश कर्म बन्धन में फंस कर जन्म और मृत्यु के दो पाटों में पिसते रहते हैं। शरीर जब छूटता है तब आत्मा को अपने लक्ष्य का बोध होता और वह अफसोस करता है लेकिन जब पुन: प्रभु शरीर प्रदान करते है तो प्राप्त शरीर के कर्म में रम जाता है और अपने परम लक्ष्य से दूर होता चला जाता है। भगवान गीता में कहते हें मन ही कर्म बंधन में बांधने वाला है, इस पर जो काबू पा लेता है कर्म बंधन से मुक्त हो जाता है और सदा सदा के लिए जीवन मृत्यु के च्रक से मुक्त हो जाता है।

प्राचीन मनिषियों, ऋषि-मुनियों एवं संतों ने अपने मन पर काबू रखकर प्रभु नाम की ल मन में जलाकर रखी और कई कई वर्षों तक कठोर तप करके जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्त हो गये। गृहस्थ जीवन में रहकर हम मनुष्य किस प्रकार मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं इसके लिए कृपालु भगवान ने एकादशी व्रत का महात्मय बताया है। यूं तो वर्ष के अन्तर्गत आने वाली सभी एकादशी पुण्यदायिनी है परंतु जो मोक्ष की कामना रखते हैं उनके लिए मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे मोक्षदा एकदशी (Margashirsha Shukla Paksha Ekadashi Mokshda Ekadasi) कहते हैं का व्रत बहुत ही उतम है ऐसा योग योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण कहते हैं।

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा (Mokshda Ekadasi Vrat Katha)

भगवान कहते हैं इस एकादशी का एक दिन का पुण्य प्राणी को नरक से मुक्ति प्रदान करने वाला है। इस संदर्भ में लीलाधारी श्रीकृष्ण ने जो कथा धर्मराज युधिष्ठिर को सुनायी वह यहां उल्लेख करने योग्य है। भगवान कहते हैं एक थे राजा वैखानस उनके राज्य में सभी सुख शांति से रहते थे। योगी, मुनी, सिद्ध संत सहित सभी जीव जन्तु बिना किसी भय के अपने अपने कर्म किया करते थे। इस प्रजापालक राजा ने एक रात स्वप्न में देखा कि पिता नर्क की यातनाएं भोग रहे हैं। राजा अपने पिता की यह दशा देखकर बेचैन हो उठा और सारी रात फिर  सो नहीं सक। सुबह क्षितिज पर सूर्य की लालिमा दिखते ही वह ज्ञानी पंडितों के पास पहुचा और जो कुछ स्वप्न में देखा था कह सुनाया।

राजा की बातें सुनकर पंडितों ने उन्हें त्रिकालदर्शी ऋषि पर्वत के पास जाने की सलाह दी। राजा पर्वत की कुटिया में जा पहुंचा और विनम्रता पूर्वक उनसे अपनी समस्या कह डाली। राजा की अधीरता और बेचैनी को देखकर महाज्ञानी पर्वत ने उन्हें बताया कि आपके पिता अपनी एक ग़लती की सजा भोग रहे हैं। उन्हें नर्क से मुक्त कराने के लिए आपको मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी मोक्षदा एकदशी करनी चाहिए। इस एकादशी का पुण्य आप अपने पिता को देवें तो आपके पिता नर्क से छूट सकते हैं। राजा ने विधि पूर्वक एकादशी का व्रत किया और प्राप्त पुण्य को पिता को अर्पित कर दिया। राजा वैखानस के पिता इस पुण्य से नर्क से मुक्त हो गये और स्वर्ग में उन्हें स्थान प्राप्त हुआ।

मोक्षदा एकादशी व्रत विधि (Mokshda Ekadasi Vrat Vidhi)

मोक्षदा एकादशी का व्रत किस प्रकार करना चाहिए इसके विषय में श्री कृष्ण कहते हैं। दशमी के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए और शुद्ध मन से भगवान दामोदर का नाम स्मरण करते हुए सो जाना चाहिए। सुबह ब्रह्म मुर्हूर्त मे उठकर स्नान करें। भगवान की प्रसन्नता के लिए धूप, दीप, तिल, तुलसी की मंजरी, पंचामृत से लक्ष्मी पति श्री विष्णु की पूजा करें। पूजा के पश्चात विष्णु के अवतारों एवं उनकी कथाओं का श्रवण या पाठ करें। रात्रि जागरण कर भगवान विष्णु का भजन गायें। द्वादशी के दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार पंडितों को भोजन कराएं व दक्षिणा सहित उन्हें विदा करें। अब आप स्वयं अन्न जल ग्रहण करें। इस प्रकार मोक्षदा एकादशी करने से जो पुण्य की प्राप्ति होती है वह वाजपेय यज्ञ से भी अधिक पुण्य देने वाला है।

मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी (Margashirsha Shukla Paksha Ekadasi) हिन्दु ध्रर्मशास्त्र में इसलिए महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योकि ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को योगशास्त्र गीता का ज्ञान दिया था। इस उपलक्ष्य में इस दिन गीता जयन्ती भी मनायी जाती है। वैष्णव सम्प्रदाय को मानने वाले इस दिन धूम धाम से श्रीकृष्णचंद जी की पूजा करते हें और गीता सुनते और सुनाते हैं। इस दिन गंगा स्नान का भी बहुत महत्व बताया गया है। अगर गंगा तट पर जाना संभव नहीं हो तो घर पर नहाने के पानी में गंगा जल मिलाकर  स्नान करना चाहिए।

 

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