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नवरात्र पूजा विधि (Navratri Puja Vidhi)

Navratri Puja
Navratri Puja

नवरात्र पूजा विधि (Navratra Puja Vidhi)

नवरात्र के नौ दिन देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्र व्रत (Navratri Puja Vidhi) की शुरूआत प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना से की जाती है। नवरात्र के नौ दिन प्रात:, मध्याह्न और संध्या के समय भगवती दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। श्रद्धानुसार अष्टमी या नवमी के दिन हवन और कुमारी पूजा कर भगवती को प्रसन्न करना चाहिए।

चैत्र नवरात्र  (Chaitra Navratri )

चैत्र महीने में मनाई जाने वाली नवरात्रि 08 अप्रैल से 16 अप्रैल तक मनाई जाएगी। 08 अप्रैल को सुबह 11:57 मिनट से लेकर 12:48 तक का समय कलश स्थापना के लिए शुभ है।

शारदीय नवरात्र (Shardiya Navratri)

इस बार शारदीय नवरात्र 01 अक्टूबर 2016 से शुरु होंगे। नवरात्र के प्रथम दिन कलश स्थापना कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। 01 अक्टूबर को सुबह 06:17 मिनट से लेकर 07:29 तक का समय कलश स्थापना के लिए शुभ है। नवरात्र व्रत की शुरुआत प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना से की जाती है।

नवरात्र के नौ दिन प्रात:, मध्याह्न और संध्या के समय भगवती दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। श्रद्धानुसार अष्टमी या नवमी के दिन हवन और कुमारी पूजा कर भगवती को प्रसन्न करना चाहिए।

नवरात्र में हवन और कन्या पूजन अवश्य करना चाहिए। नारदपुराण के अनुसार हवन और कन्या पूजन के बिना नवरात्र की पूजा अधूरी मानी जाती है। साथ ही नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा के लिए लाल रंग के फूलों व रंग का अत्यधिक प्रयोग करना चाहिए। नवरात्र में “श्री दुर्गा सप्तशती” का पाठ करने का प्रयास करना चाहिए।

श्रीमद्देवी भागवत के अनुसार नवरात्र पूजा (Navratri Puja Vidhi in Hindi) से जुड़ी कुछ विशेष बातें निम्न हैं:

* यदि श्रद्धालु नवरात्र में प्रतिदिन पूजा ना कर सके तो अष्टमी के दिन विशेष पूजा कर वह सभी फल प्राप्त कर सकता है।
* अगर श्रद्धालु पूरे नवरात्र में उपवास ना कर सके तो तीन दिन उपवास करने पर भी वह सभी फल प्राप्त कर लेता है। कई लोग नवरात्र के प्रथम दिन और अष्टमी एवम नवमी का व्रत करते हैं। शास्त्रों के अनुसार यह भी मान्य है।
* नवरात्र व्रत देवी (Navratri Puja Vidhi) पूजन, हवन, कुमारी पूजन और ब्राह्मण भोजन से ही पूरा होता है।

नवरात्र कलश स्थापना विधि

नवरात्र हिन्दुओं का एक पावन पर्व है। नवरात्र की पूजा नौ दिनों तक चलती हैं। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्र के आरंभ में प्रतिपदा तिथि को कलश या घट की स्थापना की जाती है। कलश को भगवान गणेश का रूप माना जाता है। हिन्दू धर्म में हर पूजा से पहले गणेश जी की पूजा का विधान है इसलिए नवरात्र की शुभ पूजा से पहले कलश के रूप में गणेश को स्थापित किया जाता है।

कलश स्थापना के लिए महत्त्वपूर्ण वस्तुएं (Important Things for Kalash Sthapna)

  • मिट्टी का पात्र और जौ
    · शुद्ध साफ की हुई मिट्टी
    · शुद्ध जल से भरा हुआ सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का कलश
    · मोली (लाल सूत्र)
    · साबुत सुपारी
    · कलश में रखने के लिए सिक्के
    · अशोक या आम के 5 पत्ते
    · कलश को ढकने के लिए मिट्टी का ढक्कन
    · साबुत चावल
    · एक पानी वाला नारियल
    · लाल कपड़ा या चुनरी
    · फूल से बनी हुई माला

 
नवरात्र कलश स्थापना की विधि (Kalash Sthapana Vidhi in Hindi)
भविष्य पुराण के अनुसार कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा स्थल को शुद्ध कर लेना चाहिए। एक लकड़ी का फट्टा रखकर उसपर लाल रंग का कपड़ा बिछाना चाहिए। इस कपड़े पर थोड़ा- थोड़ा चावल रखना चाहिए। चावल रखते हुए सबसे पहले गणेश जी का स्मरण करना चाहिए। एक मिट्टी के पात्र (छोटा समतल गमला) में जौ बोना चाहिए। इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करना चाहिए। कलश पर रोली से स्वस्तिक या ऊं बनाना चाहिए।

कलश के मुख पर रक्षा सूत्र बांधना चाहिए। कलश में सुपारी, सिक्का डालकर आम या अशोक के पत्ते रखने चाहिए। कलश के मुख को ढक्कन से ढंक देना चाहिए। ढक्कन पर चावल भर देना चाहिए। एक नारियल ले उस पर चुनरी लपेटकर रक्षा सूत्र से बांध देना चाहिए। इस नारियल को कलश के ढक्कन पर रखते हुए सभी देवताओं का आवाहन करना चाहिए। अंत में दीप जलाकर कलश की पूजा करनी चाहिए। कलश पर फूल और मिठाइयां चढ़ाना चाहिए।

नवरात्र कलश स्थापना मुहूर्त (Kalash Sthapana Muhurat)

नवरात्र के प्रथम दिन यानि 08 अप्रैल 2016 को कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 11:57 मिनट से लेकर 12:48 मिनट तक का है।

नोटः नवरात्र में देवी पूजा के लिए जो कलश स्थापित किया जाता है वह सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का ही होना चाहिए। लोहे या स्टील के कलश का प्रयोग पूजा में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

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